आजकल हमारा पुरा देश ही
राजनितिक दलों का अखाड़ा बना हुआ है । चाहे वह लोकसभा चुनाव हो, राज्यसभा,
विधानसभा, विधान परिषद् चुनाव हो या नगरपालिका/नगर निगम के मेयर,
पार्षद का चुनाव या पंचायती चुनाव के मुखिया, सरपंच, पंच या वार्ड सदस्य का हो या
कॉलेज का छात्र संघ चुनाव । सभी में राजनितिक दल अपना प्रत्याशी खड़ा कर पूरी
चुनाव को अखाड़ा बनाने का प्रयास करते हैं ।
लोकसभा, राज्यसभा,
विधानसभा, विधानपरिषद् चुनाव तो सभी राज्य में राजनितिक दलों के आधार पर लड़ा जाता
है पर नगर निगम या पंचायत के चुनाव में कई राज्य में राजनितिक दल प्रत्याशी खड़ा
करते हैं या बिना राजनितिक दल द्वारा प्रत्याशी खड़ा किये भी चुनाव होता है ।
छात्र संघ चुनाव में सभी
राजनितिक दल अपना प्रत्याशी खड़ा करते हैं । अधिकतर छात्र संघ चुनाव राजनितिक दलों
के नाक का विषय बन जाता है, जिसके लिए वे साम-दाम-दंड-भेद की निति अपनाने सी भी
परहेज नहीं करते ।
अभी हाल ही में जमशेदपुर
के कोल्हान विश्वविद्यालय के छात्र संघ का चुनाव सम्पन्न हुआ । छात्र संघ चुनाव
में प्रत्याशियों के सूचि की स्कुटनी में जितना बवाल हुआ, उससे यही लगता है कि आगे
का पटकथा खुद तैयार है । पिछले साल भी इसी तरह चुनाव में या चुनाव के बाद यहाँ के
विश्वविद्यालयों में मार-पिट की घटना घटी थी । यह सब को मालूम है कि छात्र संघ
चुनाव राजनितिक दलों के नये प्रयोग का अखाड़ा है या यो कहे कि एक प्रयोगशाला है ।
छात्र-छात्रों में लड़ाकर चुनाव जीतना इनका काम होता है ।
पंचायत चुनाव या नगर निगम
का चुनाव में भी लगभग यही स्थिति होती है । राजनितिक दल चुनाव जीतने के लिए
तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं ।
मैंने अपने विभाग के
यूनियन का चुनाव देखा है, जहाँ सहमति से प्रत्याशी खड़ा होते हैं । अगर सहमति नहीं
बनी तो एक से अधिक प्रत्याशी खड़ा होते हैं । शांतिपूर्वक मतदान होता है । जीतने
के बाद भी जीतने वाले प्रत्याशी और हारे हुए प्रत्याशी प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं
। लेकिन छात्र संघ चुनाव, जो कि महज एक साल के लिए ही चुने जाते हैं । वह भी धैर्य
और शान्ति का माहौल कायम करने में सक्षम नहीं होते ।
क्या यह बेहतर नहीं होता
कि कम से कम पंचायत चुनाव, नगरपालिका चुनाव या छात्र संघ के चुनाव बिना राजनितिक
दलों के लड़ा जाये ? जिससे राजनितिक दलों का दखलंदाजी बन्द हो ।
राजनितिक दलों का प्रयोगशाला न बने, न ही उनका अखाड़ा बने । जिससे छात्रों के
पढ़ाई बाधित न हो । छात्र एक होकर शांति कायम रख सके ।
भारतीय राजनीतिक में
सम्पूर्ण क्रान्ति के जनक लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि दलविहिन लोकतंत्र
से ही अच्छे भारत का निर्माण हो सकता है ।
क्या यह बेहतर नहीं होता
कि छात्र संघ चुनाव या पंचायत चुनाव या नगर निगम चुनाव में सहमति के आधार पर
प्रत्याशी खड़ा किया जाए । यह दुर्भाग्य की बात है कि कोई भी चुनाव हो राजनितिक दल
चुनाव को जाति या धर्म के आधार पर लोगों में फूट डालकर चुनाव जीतना चाहते हैं । वे
अंग्रेजों की नीति पर ही चलना चाहते हैं- “फूट डालो और राज करो” ।
दुर्भाग्य की बात है कि
हमारा देश आज भी इसी नीति पर चल रहा है । कोई भी चुनाव हो अपने लाभ के लिए हथकंडे
अपनाकर चुनाव जीतते हैं । जो गलत तरीका से चुनाव जीतता है वो अपनी कार्यशैली भी
इसी तरीके से बना कर रखता है ।
वक्त की जरूरत है कि
छात्र संघ का चुनाव हो या पंचायत या नगरपालिका के चुनाव सभी सहमति के आधार पर लड़े
जाए । सभी छात्र मिलकर सर्वसम्मति से एक प्रत्याशी खड़ा करे जो सबको मान्य हो ।
अगर सहमति न बने तो एक से अधिक प्रत्याशी खड़ा किये जाए । चुनाव जीतने के बाद
शांतिपूर्वक से सभी कार्य सुचारू रूप से किया जाये । कोई अशांति की भावना किसी
छात्र-छात्रा के मन में नहीं आना चाहिए ।
धन्यवाद जी...
ReplyDeleteराजनीतिक दल तो दलदल बन बैठे हैं
ReplyDeleteअच्छी विचार प्रस्तुति
सादर आभार कविता जी...आपने हमारे ब्लॉग पर आकर आलेख को पढ़ा और हमे हौसला बढ़ाया...
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