भारतीय मजदूर,
सदियों से शोषित,
वर्षों से पीड़ित रहने वाला,
कभी जमींदारों के गुलाम,
कभी पूजीपतियों के गुलाम,
गुलामी ही जिसका नसीब
वहीं जंजीर हूँ न !
हाँ, मैं मजदूर हूँ न !
बंजर खेतों को उपजाऊं बनाकर,
हरे-भरे फसल लहराकर,
मोटे-मोटे अन्न उपजाने वाला,
मालिकों का पेट भरकर,
भुखे पेट सोने वाला
वहीं बदनसीब
भूखा पेट सुलाने,
परिवार को आतुर हूँ न !
हाँ, मैं मजदूर हूँ न !
वोटो के समय,
नोटों के गड्डियों से
तौला जाने वाला,
जीतने के बाद,
पर्वत सी,
झूठी वादे सुनकर
अपने रहमोकरम पर रहकर,
जीने वाला,
हादसे का
कब्रिस्तान हूँ न !
हाँ, मैं मजदूर हूँ न !
फैक्ट्री मालिकों के
फिर से गुलाम बनकर,
बात-बात में भठियों में
फेकने की गालियां
सहने वाला,
पगार काटने की धमकी,
सहते-सहते
पत्थर दिल बनने वाला,
वाला इंसान हूँ न !
हाँ, मैं मजदूर हूँ न !
तपती धूप में
पत्थर तोड़ने वाला,
सर्द दिनों में कम कपड़ों
में रात-दिन एक कर
कम्पनी का उत्पादन
बढ़ाने वाला,
मेहनतकस काम
के पक्के उसूल
हूँ न!
हाँ, मैं मजदूर हूँ न !
पापा पेट को भरने,
घर-गाँव-दुआर छोड़कर
शहर आने वाला
वक्त-बे-वक्त अपने
रहमोकरम पर रहकर,
झुठे ढाढस दिलाये जाने वाला
बदस्तूर हूँ न !
हाँ, मैं मजदूर हूँ न !
-जेपी हंस