06 June, 2021
हादसा
22 May, 2021
जनता हुआ निठल्ला
जनता हुआ निठल्ला ।
एक-साथ सब अंधभक्त बोले,
सबकुछ बल्ले-बल्ले ।
साहब, तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ले ।
खत्म हुआ सरकारी नौकरी,
खत्म सरकारी कम्पनी,
युवा सब बेहाल हुए,
भाग्य को कोसे अपनी ।
पग-पग पर पूँजीपति खेले,
लूट का खेल खुल्ला ।
साहब तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ला ।
निजीकरण से खत्म हुये नौकरियाँ,
सरकारीकरण मांगे हर पल ।
रेलवे, एयरपोर्ट सब बेच दिये,
बचा केवल नदी, समुदर के जल ।
महामारी में भी चुनाव कराते,
वाह रे ‘सत्तालोभी पिल्ला’ ।
साहब तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ला ।
साधु-संत-सी डाढ़ी बढ़ाकर,
फेकते जुमला भाषण ।
घड़ियाली आंसु बहाकर,
जनता को कराते ढ़ोगासन ।
काश लोग अब भी कहते
‘मेरा साहब नल्ला’ ।
साहब तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ला ।
निठल्ला- जिसके पास कोई काम-धंधा न हो; बेरोज़गार,
नल्ला- कुछ भी न करने वाला,
लेखक- जेपी हंस
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19 May, 2021
शववाहिनी गंगा
शववाहिनी गंगा
गुजराती-कवयित्री पारुल खख्खर द्वारा रचित यह गीत दरअसल मौजूदा कोरोना-काल के दौरान गंगा में बहायी जा रही बेशुमार लाशों एवं दफनाये गये लाशों को देखकर वर्तमान सरकार की नाकामियों को नंगा करता है.
एक-साथ सब मुर्दे बोले,
‘सब कुछ चंगा-चंगा’
साब, तुम्हारे रामराज में
शववाहिनी गंगा ।
खत्म हुए श्मशान तुम्हारे,
खत्म काष्ठ की बोरी,
थके हमारे कंधे सारे
आंखे रह गयी कोरी;
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा ।
साब, तुम्हारे राजराज में
शववाहिनी गंगा ।
नित्य निरंतर जलती चिताएं
राहत मांगे पल-भर;
नित्य निरंतर टूटती चूडियां,
कुटती छाती घर-घर;
देख लपटों को फिडल बजाते
वाह रे ‘बिल्ला- रंगा’ ।
साब, तुम्हारे राजराज में
शववाहिनी गंगा ।
साब, तुम्हारे दिव्य वस्त्र,
दिव्यत तुम्हारी ज्योति
काश, असलित लोग समझते,
हो तुम पत्थर, न मोती,
हो हिम्मत तो आके बोलो
‘मेरा साहब नंगा’
साब, तुम्हारे रामराज में
शववाहिनी गंगा ।
लेखिका- पारुल खख्खर (गुजराती)
(गुंजराती से अनुवाद- इलियास शेख)
(पारुल खख्खर की विशेष परिचय अगले ब्लॉग में...)
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