05 April, 2020

हर उस जमात को मैं बुरा मानता हूँ ।



 

हर उस जमात को मैं बुरा मानता हूँ ।

जो कर न सके खुद की हिफाजत, अधुरा मानता हूँ ।

वक्त भी उसकी रहमत करेगी जो खुद डरे,

वरना कायामत को आये कोरोना को पूरा मानता हूँ ।

 

हर उस जमात को मैं बुरा मानता हूँ ।

जो कर न सके खुद की हिफाजत, अधुरा मानता हूँ ।

 

 

मैं ईश्वर को मानता हूँ, तुम अल्लाह को मानते हो ।

बढ़े वैसे कदम जहाँ, हर शख्स को जानता हूँ ।

फिर छलके न आँसू किसी आफत पर

वैसे आँसु को अधुरा मानता हूँ ।

 

हर उस जमात को मैं बुरा मानता हूँ ।

जो कर न सके खुद की हिफाजत, अधुरा मानता हूँ ।

 

मैं मंदिर में फँसा हूँ, वे मस्जिद में छिपे हैं ।

हजारों सालों से यही दकियानुसी दलदल में धसे हैं ।

चले करने जिस करामात को, हर करामात जानता हूँ ।

करे ऐसे करामात जो उसे बेहुदा मानता हूँ ।

 

हर उस जमात को मैं बुरा मानता हूँ ।

जो कर न सके खुद की हिफाजत, अधुरा मानता हूँ ।

 

कुछ धर्म का नशा पिलाते हैं, कुछ मर्म का नशा पीते हैं ।

पिलाकर नशा वे बड़े खुशगहमी में जीते हैं ।

उसके हर एक खुशगहमी को मैं कुराफात मानता हूँ ।

ऐसे करने वाले हर शख्स को जानता हूँ ।

 

हर उस जमात को मैं बुरा मानता हूँ ।

जो कर न सके खुद की हिफाजत, अधुरा मानता हूँ ।

                        -जेपी हंस

 

 

 

 

 

 


6 comments:

  1. बिल्कुल सर ऐसी बहुत सी आवाज है परन्तु सब लोग पंक्तिबद्ध नहीं कर सकते ऐसे सभी लोगों का आप प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।इसके लिए बहुत -बहुत आभार सर।शत-शत नमन।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7-4-2020 ) को " मन का दीया "( चर्चा अंक-3664) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  3. सुंदर रचना

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    1. हौसला बढ़ाने हेतु आभार...

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