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19 April, 2020

बहुत याद आती है तेरी


 

   डियर ऑफिस बहुत याद आती है तेरी

वो ऑफिस पहुँचकर

सबको दुआ-सलाम करना,

बगल में लगे,

माँ सरस्वती को चरण स्पर्श करना,

आई.टी.बी.ए पर वर्क करना,

कितना अच्छा लगता था न ।

 

पानी की बोतल उठाकर,

गटक-गटक कर पीना,

कभी कैंटीन निकल जाना,

चाय ऑफि में रहते हुए भी,

बाहर जाकर चाय पीना,

कितना अच्छा लगता था न ।

 

फिर दोस्तों के साथ लंच

करते-करते

गप्पे करना

काम के लिए,

कभी उस साहब के पास,

तो कभी इस साहब के

 पास जाना ।

कितना अच्छा लगता था न ।

-    जेपी हंस


26 March, 2020

कैद में मौज

यू ही खाली नहीं है दूर-दूर की सड़कें,
कोरोना का खौफ सब के जेहन में है।
कल जो एक-दूसरे को कत्ल को उतारू थे,
वे भी कोरोना के डर से घर में कैद है।

यू तो नहीं देखा ऐसा बंदी किसी जमाने में।
शहर-दर-शहर बंद है इंसान को बचाने में।
तकलीफ होती है घर पर रहकर बर्तन मांजने में,
टूटने दो लॉकडाउन, देखना, कितनी भीड़ जुटती है पउआ के दुकानों पे।

आशिको के जख्मों का हिसाब कौन करेगा।
निठल्ला बैठा हूँ घर पे हाल-ए-बया कौन करेगा।
इस लॉकडाउन में रिचार्ज के दुकान भी बंद है,
होती थी दिन भर बातें बिन-बात के कौन मरेगा।
                                -जेपी हंस

07 March, 2020

इतनी आसानी से तो मै तुझे भूला भी नहीं सकता।



खो भी नहीं सकता तुझे और पा भी नहीं सकता।
किस कशमकश में उलझा हूँ तुझे बता भी नहीं सकता।
छुपा भी नहीं सकता और बता भी नहीं सकता।
है कितना दर्द सीने में किसी को बता भी नहीं सकता।
हर मोड़ पर टकराएगी तुझसे यादें मेरी
इतनी आसानी से तो मै तुझे भूला भी नहीं सकता।

बड़ी शिद्दत से चाहा था मैंने तुझे,
इतनी आसानी से तो भूला नहीं सकता।
चाहे तेरा प्यार झूठा था,
पर मेरे सच्चे प्यार का तू कर्ज कभी चुका भी नहीं सकता।
तेरे दिल में बोझ बनकर रहूंगा।
तेरे याद में हर रोज बनकर रहूंगी।
जिंदगी से तो निकाल दिया मुझे पर दिल से कभी निकाल नहीं पाओगे।
जब दर-बदर तुझे भी धोखे मिलेंगे
तो तू खुद भी संभाल भी नहीं पाएगी।
जैसे मुझे चुप कर दिया करता था,
अब तू मेरे तरह किसी और को समझा भी नहीं सकता
इतनी आसानी से तो मैं तुझे भुला नहीं सकता।

चाहे कुछ भी कह देते है
पर दिल से आज भी तेरे खुशियों की दुआ मांगते है।
अब तो हम अपना हाल-ए-दिल किसी को सुना भी नहीं सकता।
पर इतनी आसानी से तो मैं तुझे भुला भी नहीं सकता। 
                                        -गूंज चांद
   

24 September, 2019

आभारी हूँ मैं।





दर्द मुहब्बत के सह लू ,
जख्मों का अधिकारी हूँ मैं।
पीठ पर जिसने खंजर घोंपे,
उन सब का आभारी हूँ मैं।

23 July, 2019

पुल




चाहा था बनाऊंगा एक पुल तेरे दिल तक पहुचने को।
तुम्हें क्या पता कितना दर्द होता है प्यार में अपनों का।
मर-मिटने की कसमें खायी थी उस दिन,
आज बड़ी शिद्दत से जरूरत पड़ी है दिल तोड़ने का।

मेहंदी





मेहंदी
मेरे नाम की लगने वाली थी।
फूल सपनों की खिलने वाली थी।
बीत गयी सोलह सावन देखते-देखते,
आज उनके घर पराये की शहनाई बजने जा रही थी।

11 November, 2017

सदाबहार-3

जिस हाल में हूँ उस हाल में रहने दो।
हाथो मे चाकू न दो कलम भी रहने दो।
सताया हूँ इस कदर उसके दिल का।
जितना बहना है आँसू बहने दो।
                  जेपी हंस

सदाबहार-2

कभी रेत पर लिखी थी हम दोनों की जिंदगानी।
आँधियाँ आई, तूफान आया मिट गयी निशानी।
मुलाकातों को दौर चलता है चलता भी रहेगा।
बस होंठो में मुस्कान और लेकर आंखो में पानी।
                            जेपी हंस

10 November, 2017

सदाबहार-1

स्मार्टफोन की इस दुनिया में,
कैसा कैसा भूकंप आता है।
घर परिवार में अगर मचे भूकंप तो,
मोदी से पहले ट्रम्प को पता चल जाता है।
                                    जेपी हंस

28 October, 2016

दिवाली नहीं आते।

लगे है वाइ-फाई जबसे​ ​तार भी नहीं आते​​;​​
​बूढी आँखों के अब मददगार भी नहीं आते​​;​​
​​गए है जबसे शहर में कमाने घर के छोरे;​​
​​उनके घर में त्यौहार भी नहीं आते।
नोट: जो पर्व-त्योहार में भी अपने माँ-बाप, दादा-दादी से भेट करने नही जाते, उनको समर्पित।
#बेसहारा_माँ
#बूढ़ी_दादी
अंत में, सभी को शब्द क्रांति की तरफ से हार्दिक शुभकामनाये।

03 April, 2016

प्रत्यूषा बनर्जी से एक सवाल

एक अप्रैल को बालिका वधु में आनंदी के नाम से हर घर मे छाने वाली प्रत्यूषा बनर्जी ने आत्महत्या कर अपनी जिंदगी समाप्त कर ली। प्रत्यूषा जमशेदपुर शहर के सोनारी के रहने वाली थी। मैं भी प्रत्यूषा के आवास से चंद कदमो की दूरी पर डेढ़ साल रहा । अभी भी जमशेदपुर मे ही हूँ ।
प्रत्यूषा की आत्महत्या पर इनके चाहने वाले बस एक ही लब्ज कह रहे है।
"हमें गम है शिकवे भी है,हजारों उन परवानो से।
कैसे बनू फैन उनके जो छोड़ चले जाते है जमाने से।

20 March, 2016

शायरी

ये दुनिया ये महफिल बड़े काम का है।
मेरे टेबल पर रखा दवा जुकाम का है ।
खा न लेना दिल के दर्द का दवा समझकर,
ये मत समझना की तेरे जन्नत-ए-इंतजाम का है।
                                -- जेपी हंस

17 September, 2015

शायरनामा

दोस्तो नमस्कार,
                 कुछ खट्टे मिठ्ठे शायराना अंदाज में शेर प्रस्तुत है ।


बिन दिये पानी गुलाब में,
                  कली नहीं खिल सकती ।
असेम्बली में सीट भले ही मिल जाए ।
                  बस में सीट नहीं मिल सकती ।


ओ सुपुत्र के नाम पर कसम खाने वाले धरनेबाज ।
ईमानदारी के लिए इस तरह फाइट करते नहीं देखी ।
गुजरे जमाने की शायद याद नहीं,
आधी अंधेरी रात में ब्लैक को वाईट भी करते नहीं देखी ।


सुना है जमान की मिल्कियत में
तरबदर हुश्न भी बिक जाती है ।
थोड़ा सब्र रख जमाने की मलिका ।
तेरे स्वागत में जेठ की दोपहरी में भी घटा छा जाती है ।