दोस्तो नमस्कार,
कुछ खट्टे मिठ्ठे शायराना अंदाज में शेर प्रस्तुत है ।
बिन दिये पानी गुलाब में,
कली नहीं खिल सकती ।
असेम्बली में सीट भले ही मिल जाए ।
बस में सीट नहीं मिल सकती ।
ओ सुपुत्र के नाम पर कसम खाने वाले धरनेबाज ।
ईमानदारी के लिए इस तरह फाइट करते नहीं देखी ।
गुजरे जमाने की शायद याद नहीं,
आधी अंधेरी रात में ब्लैक को वाईट भी करते नहीं देखी ।
सुना है जमान की मिल्कियत में
तरबदर हुश्न भी बिक जाती है ।
थोड़ा सब्र रख जमाने की मलिका ।
तेरे स्वागत में जेठ की दोपहरी में भी घटा छा जाती है ।
कुछ खट्टे मिठ्ठे शायराना अंदाज में शेर प्रस्तुत है ।
बिन दिये पानी गुलाब में,
कली नहीं खिल सकती ।
असेम्बली में सीट भले ही मिल जाए ।
बस में सीट नहीं मिल सकती ।
ओ सुपुत्र के नाम पर कसम खाने वाले धरनेबाज ।
ईमानदारी के लिए इस तरह फाइट करते नहीं देखी ।
गुजरे जमाने की शायद याद नहीं,
आधी अंधेरी रात में ब्लैक को वाईट भी करते नहीं देखी ।
सुना है जमान की मिल्कियत में
तरबदर हुश्न भी बिक जाती है ।
थोड़ा सब्र रख जमाने की मलिका ।
तेरे स्वागत में जेठ की दोपहरी में भी घटा छा जाती है ।
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