हिन्दी की संस्कृत
के अति क्लिष्ट स्वरूप और अरबी, फारसी जैसी विदेशी और पाली, प्राकृत जैसी देसी भाषाओं के मिश्रण ने व्यापक आधार प्रदान
किया है । जिस भाषा को इतनी सारी बोलियां और भाषाएं सीचें, उसके गठन की मजबूती का
अंदाजा लगाया जा सकता है । देखा जाए तो पुरातन हिन्दी का अपभ्रंश के रूप में जन्म
400 ई. से 550 ईं. में हुआ जब वल्लभी के शासन धारसेन ने अपने अभिलेश में अपभ्रंश
साहित्य का वर्णन किया । प्राप्त प्रमाणों में 933 ईं. की श्रावकवर नामक पुस्तक
अपभ्रंश हिन्दी का पहला ग्रंथ है परन्तु अमीर खुसरो हिन्दी के वास्तविक जन्मदाता
थे, जिन्होंने 1283 में खड़ी बोली हिन्दी
को इसका नाम हिन्दवी दिया । बस, तब से ही यह हिन्दवी, हिन्दी बनती गई, बढ़ती चढ़ती
गई है और पूरी दुनिया में निरंतर पल्लवित-पुष्पित हो रही है ।
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