एक बार होली में हमारे ननिहाल में नई नवेली मामी आई हुई थी । उस होली के दिन मैंने होली के सुबह धुरखेली के समय गोबर और कीचड़ से बचने के लिए छत पर एक ऐसी जगह बैठा था, जहाँ अभी छत पूरी तरह नहीं बने थे । इस जगह पर इसलिए बैठा था ताकि कोई गोबर और कीचड़ न लगाये। उस दिन जब खाना खाने का समय हुआ तब भी में उसी छत पर बैठा था, लेकिन नानी के बार-बार बुलाने पर छत से किसी तरह उतरा । मेरी नई मामी यह दिलासा देकर छत से उतरवाई की कोई भी गोबर या कीचड़ नहीं लगाएंगे। मै पूरे विश्वास के साथ उतरा और कुआं पर जाकर हाथ- पैर धोने लगा । हाथ- पैर धोने के लिए मेरी नई मामी ने पानी दी थी। मैं ज्योंहि हाथ- पैर धोने के लिए झुका, तब नई मामी ने गोबर के घोल से भरे बाल्टी को मेरे माथे पर उझल दिया। मै पूरी तरह भींग गया। फिर भी बहुत खुश हुआ । यह बात मुझे आज भी होली आने पर यादों को ताजा कर देती है।
जेपी हंस,
जमशेदपुर, झारखंड
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