जनता हुआ निठल्ला ।
एक-साथ सब अंधभक्त बोले,
सबकुछ बल्ले-बल्ले ।
साहब, तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ले ।
खत्म हुआ सरकारी नौकरी,
खत्म सरकारी कम्पनी,
युवा सब बेहाल हुए,
भाग्य को कोसे अपनी ।
पग-पग पर पूँजीपति खेले,
लूट का खेल खुल्ला ।
साहब तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ला ।
निजीकरण से खत्म हुये नौकरियाँ,
सरकारीकरण मांगे हर पल ।
रेलवे, एयरपोर्ट सब बेच दिये,
बचा केवल नदी, समुदर के जल ।
महामारी में भी चुनाव कराते,
वाह रे ‘सत्तालोभी पिल्ला’ ।
साहब तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ला ।
साधु-संत-सी डाढ़ी बढ़ाकर,
फेकते जुमला भाषण ।
घड़ियाली आंसु बहाकर,
जनता को कराते ढ़ोगासन ।
काश लोग अब भी कहते
‘मेरा साहब नल्ला’ ।
साहब तुम्हारे राम राज में,
जनता हुआ निठल्ला ।
निठल्ला- जिसके पास कोई काम-धंधा न हो; बेरोज़गार,
नल्ला- कुछ भी न करने वाला,
लेखक- जेपी हंस
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