सुनाता हूँ हे मातृभूमि एक दर्द भरी कहानी ।
गम-ए-जदा हम ही नही, हर जन की यही जुबानी ।
कहने को तो कहते सब, एक ईश्वर की है संतान ।
फिर दाता क्यों बनाया, उच्च-नीच का विधान ।
राज करता अदल-बदलकर वहीं केवल ठग से ।
क्या दाता तेरा छूट गया, लगाम अब इस जग से ।
मार-काट व खुन-खराबा, यही है इनकी मर्दानी ।
जात-पात व धर्म-कर्म पर बाँटना, बची यही निशानी ।
आपसी झगड़े जब तक रहेगा या रहेगा बड़ा फर्क ।
इस जिंदगी से बेहतर होता, अगर मिल जाता नर्क ।
इस भूमि की यही कहानी, नरक से भी बदतर है ।
सुनने में आया ये हालात तो अभी कमत्तर है ।
ऐसी रही हालात तो क्या होगा आने वाले दिनो में ।
बम-तोप से मर मिटेंगे, जलेंगे उन्हीं मशीनों में
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteBahut Umda
ReplyDeleteGood jp sir
ReplyDeleteब्लॉग पर पधारने और अपनी कीमती प्रतिक्रिया देकर हौसला बढाने के लिए शुक्रिया...
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