11 May, 2016

एक और निर्भया...

वक्त बदला, सत्ता बदली,
न बदला कोई आचार-व्यवहार ।
पहले दिल्ली फिर केरल,
नारी शक्ति हुई शर्मसार ।
अन्तर सिर्फ इतना रह गया,
सत्ता और तंत्र का ।
नहीं कोई काम आया,
बदले सरकार के मंत्र का ।
कही सोशलिस्ट, कही कम्युनिस्ट,
कही संघ की सरकार कहते ।
जाति, धर्म की ठेकेदारी देखकर,
मिडिया भी उफान भरते ।
पार्टी-पोल्टिस, पुलिस, पडोसी,
वक्त देखकर दंभ भरते ।
बारी आती जब क्रांति की,
शांति की कहानी गढ़ते ।
न कोई यहाँ सोशलिस्ट,
कम्युनिस्ट, संघी के पंख है ।
मानो तो मानो मेरी बात मानो,
सबके सब ढपोरशंख है ।
सभ्य, शिक्षित प्रांत में कैसी,
दरिंदगी की कोमल काया ।
पशु भी इतना निर्मम न होती,
रहती उनकी हृदय में दया ।
दरिंदों का न होता जाति, पंथ,
न रहती कोई हृदय में माया ।
कितने निर्भया ने जान गवाई,
हमने अबतक क्या कर पाया ।
जागो नारी पंथ आक्रोश भरो,
जगाओ लहू में चिंगारी ।
कोई न पर पुरुष छूं सके ।
न बन सके कोई व्याभिचारी ।
लिंग भेद का मर्म समझकर,
मत पहने रहो तुम चूड़ी ।
दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनो,
ताकि सब बनाये रखे कुछ दूरी ।
  -जयप्रकाश नारायण उर्फ जेपी हंस

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