कर्मचारी हूँ मजदूर बनने का इंतजार क्यों कर रहे हो।
सैलरी, डी.ए काटकर क्या मन नहीं भरा साहब।
कटे गले को हलाल करने का उपाय क्यों कर रहे हो।
एक से अधिक पेंशन लेकर कोई मौज कर रहा।
नेतृत्व घरानों पर इतना मेहरबान क्यों कर रहे हो।
महामारी की धुंध से छाई है मन में पहले से सन्नाटा।
दिल बहलाने के खातिर इतना कद्रदान क्यों बन रहे हो।
टूटे दिल की कश्ती बनाकर लड़ रहे योद्धाओं को।
अब फिर दिल टूटने का इंतजार क्यों कर रहे हो।
मत करों बेबस साहब की सड़क पर आ जाऊं।
जिंदगी में पहली बार ऐसा पालनहार क्यों बन रहे हो।
-जेपी हंस
ये सरकार सुनने वाली नहीं है सर।पर हमसब भी सुनाकर हीं दम लेंगे।बहुत बढ़िया सर ऐसे हीं हमलोगों का हिम्मत बढ़ाते रहिए।
ReplyDeleteसुनाने का हरसंभव प्रयास करेंगे...धन्यवाद...
DeleteBahut achha...
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