28 August, 2020

बिहार सहायक प्रोफेसर नियुक्ति प्रक्रिया से नेट/जेआरएफ अभ्यर्थियों की नाराजगी.


      फोटोः गुगल से संभार...

राजभवन पटना द्वारा सहायक प्राध्यापक नियुक्ति परिनियम- 2020 निर्गत कर दिया गया है जिसे प्रायः यू. जी. सी. रेग्यूलेशन - 2018 के आधार पर कहा जा रहा है । पड़ताल करने और समझने की आवश्यकता है कि यह नियम कितना कारगर साबित हो सकता है ! इस परिनियम से कुशल और योग्य प्राध्यापकों की नियुक्ति नहीं करने की ओछी मानसिकता साफ-साफ झलक रहा है ।

मालूम हो कि भारत सरकार वर्ष में दो बार यू. जी. सी. नेट-जेआरएफ परीक्षा आयोजित कर, प्राध्यापक अहर्ता हेतु प्रमाण-पत्र निर्गत करती है, लेकिन इस सहायक प्राध्यापक नियुक्ति प्रक्रिया में नेट वालें अभ्यर्थी 100 अंक में मात्र 35 से 47 के बीच हीं रह रहे हैं, अभ्यर्थी लोंग इस नियुक्ति प्रक्रिया में अपनी पात्रता को भी नहीं बचा पा रहे हैं । जहाँ अब स्वयं सरकार, स्वयं द्वारा निर्गत प्रमाण-पत्र को रद्दी की टोकड़ी में फेकने हेतु प्रेरित कर रही है, क्योंकि बी.पी.एस.सी. द्वारा 2014 के नियुक्ति में नेट अनिवार्य था, जो आधार क्वालिफिकेशन के रूप में रखा गया था और पीएचडी के लिए अधिभार अंक 10 था । जहाँ अब राजभवन द्वारा निर्गत परिनियम- 2020 में नेट के प्राथमिकता को समाप्त करते हुए पीएचडी के लिए 30 अंक दे कर, नियुक्ति के लिए प्रभावी कर दिया गया है, जिसका आधार यू. जी. सी. रेग्यूलेशन 2018 बताया जा रहा है । लेकिन गौर करने की बात यह है कि यू. जी. सी. रेग्यूलेशन 2018 के अनुसार प्राध्यापक नियुक्ति के लिए पीएचडी को आधार रूप में प्रभावी होने की तिथि जुलाई 2021 है । अन्य राज्य के प्राध्यापक नियुक्ति प्रक्रिया को देखा जाए तो वहाँ इस प्रकार के प्रकिया को नहीं अपनाया गया है ।


मैट्रिक और इन्टर के अंकों के लिए अधिभार को भी समाप्त कर, अंक वितरण प्रणाली को भी बदल दिया गया है । अन्य राज्य में अंकों के आधार, परीक्षा के आधार और इन्टरव्यू के आधार पर भी नियुक्ति किया जाता है, लेकिन यहाँ सिर्फ पीएचडी वालों के लिए हीं यह परिनियम बनाया गया है जो नेट किये हुए मेधावी छात्र-छात्राओं के साथ भविष्य के साथ खिलवाड़ है । बिहार जैसे राज्यों में कितने दिनों के बाद नियुक्ति प्रकिया आती है, उसमें भी इस प्रकार के नियम को बनाकर मानसिक प्रताड़ना देना कहाँ तक उचित है ।


जहाँ देश में शिक्षा के स्तर को सम्बर्धित करने के लिए इतने प्रयास हो रहे हैं, वहीँ मात्र पीएचडी डिग्री के आधार पर नियुक्ति करना कितना श्रेयस्कर होगा । भारत सरकार द्वारा निर्गत नेट-जेआरएफ का प्रमाण अब कौड़ी के भाव का भी नहीं रह गया है और मेधावी छात्र-छात्राओं के साथ यह राजनीति ठीक नहीं है । उदाहरण के रूप में देखा जाए तो एक प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए बीटेट करवाती है, हाईस्कूल के शिक्षक के लिए एसटेट करवाती है, जिसके बिना आप फॉर्म तक नहीं भर सकते और साथ में प्रशिक्षण की डिग्री आवश्यक है । लेकिन यहाँ सरकार यू. जी. सी. नेट-जेआरएफ किये हुए लोंगों को मानसिक रोगी बनाने के लिए मजबूर कर रही है ।

सरकार और शिक्षा विभाग को इस परिनियम पर पुनर्विचार कर छात्र-छात्राओं के भविष्य के लिए उचित कदम उठाकर शिक्षा के क्षेत्रों में उचित प्रयास आवश्यक है । बी. पी. एस. सी. 2014 के अनुसार अंको का विभाजन और नियम एकदम सटिक था, जो इसमे भी लागू होना चाहिए । यदि नियम बदलने की जरूरत पड़ी तो स्क्रिनिंग के लिए परीक्षा भी आवश्यक कर देना चाहिए । राजभवन के प्राध्यापक नियुक्ति परिनियम इस प्रकार से कहीँ पर सफल नहीं है, बल्कि कुशल और मेधावी छात्र-छात्राओं के पात्रता को समाप्त कर, शिक्षा के क्षेत्र में गिरावट लाने की साजिश है, जिस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है ।


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3 comments:

  1. बिल्कुल सर शत प्रतिशत सुधार की आवश्यकता है।
    मैं आपके इस विचार से पर्णतः सहमत हूँ।

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  2. Ji bina exam ke assistant professor ki niyukti durbhagyapurn hai

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  3. बगैर गुणवत्तापूर्ण परीक्षा के बिहार में शिक्षा व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता है।

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