भूख मिटाने
के लिये
रोटियां सब की
जरूरत होती है।
कोई मेहनत
करके
पाता है
दो जून की
रोटी,
तो
कोई मेहनत
करने वालों
की पेट काटकर
हासिल करता है
हजारों
दो जून की रोटी
की कीमत
इसी अंतर को
किताबों में
नौकर-मालिक,
गरीब-अमीर,
और
मजदूर और पूँजीपति
कहा जाता है।
लेकिन
किताबों तक
न पहुँचने
वाला इंसान
इस किताब की
भाषा कैसे
समझे?
© जेपी हंस
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धन्यवाद सर, बिल्कुल उपस्थित रहूंगा।
ReplyDeleteकिताबों तक
ReplyDeleteन पहुँचने
वाला इंसान
इस किताब की
भाषा कैसे
समझे? - एक यक्ष प्रश्न .. पाषाण युग में भी हो .. शायद ...
नमन आपको ...
हौसलावर्धक हेतु शुक्रिया...अभी वे पाषाण युग में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
Deleteवाह।अति सुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आपका।
DeleteBahut sundar kavita.
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteबहुत ही मर्मस्पर्शी और यथार्थपूर्ण सृजन ।समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें आपका हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteअपने अमूल्य टिप्पणी से हौसला बढ़ाने के लिए आभार...
Deleteसही कहा...बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteसादर