11 May, 2017

सपने थे हजार (गजल)



सपने थे हजार उनके मन में,
पर कोई उजाला ला न सका ।
भटकता रहा दर-दर पगडंडियों पे,
पर कोई सामने आ न सका।
हजार रास्ते बनाये रहमो-करम ने,
पर कोई रास्ता पहुँचा न सका ।
ढोता रहा सपनों का बोझ,
पर कोई उसे उठा न सका ।
सहता रहा हजार जुल्मों-सितम,
पर कोई कहर का जवाब दे न सका ।
सपने थे हजार उनके मन में,
पर कोई उजाला ला न सका ।
               -जेपी हंस

काश तु मिलती (गजल)





काश तु मिलती तो एक दिन ।
आखें फड़फड़ाके कहती है ।
दो जिस्म एक जान होती ।
धड़कने  पुकार कर कहती है ।
झुठ नहीं बोलती वो नयन ।
जो गिड़गिड़ा के कहती है ।
जग जाहिर ही होते है वो ।
सपने जिनके कामयाब होती है ।
आँखों के आसुँ से भर गये गागर ।
गागर की लहरे उफान भरके कहती है ।
काश तु मिलती तो एक दिन ।
आखें फड़फड़ाके कहती है ।


13 March, 2017

हमारी नव वर्ष आई है।

छटा धुंध कुहासा हटी
फागुनी रूप निखराई है।
प्रकृति दुलहनि रूप धरकर
स्नेह सुधा बरसाई है ।
हमारी नव वर्ष आई है।
शस्य- श्यामला धरती माता
घर-घर खुशहाली लाई है।
चैत- शुक्ल की प्रथम तिथि
नव तरंग फैलाने आई है।
हमारी नव वर्ष आई है।
मरु तरु श्रृंगारित होकर
बहारे आँचल में फागुन आई है।
आर्यावर्त की पावन भूमि पर
होली की तान सुनाई है।
हमारी नव वर्ष आई है।
        - जेपी हंस
होली और नव वर्ष की आपको और आपके पूरे परिवार को हार्दिक बधाई....

12 March, 2017

होली की शुभकामनाएं...

होली की हर्षित बेला पर, खुशियां मिले अपार।
यश,कीर्ति, सम्मान मिले, और बढे सत्कार।।
शुभ रहे हर दिन हर पल, शुभ रहे विचार।
उत्साह बढे चित चेतन में, निर्मल रहे आचार।।
सफलतायें नित नयी मिले, बधाई बारम्बार।
मंगलमय हो काज आपके, सुखी रहे परिवार।।
आप और आपके परिवार को "होली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं"....
जयप्रकाश नारायण उर्फ जेपी हंस

होली की यादें- भाग-2

बात आज से 18-19 वर्ष पहले की है, जब मैँ अपने ननिहाल में रहता था । होली में हमलोग गोबर और कीचड़ को एक- दूसरे पर फेककर मजे लेते थे । कोई भी व्यक्ति इस दौरान खाली नहीं जाता था । होली के दिन सुबह में हमलोग बाल्टी में गोबर घोलकर रखते थे । मेरे ननिहाल में नाना जी के घर के बगल से गली गुजरती है । इस गली से दूसरे गाँव के व्यक्ति अपने गाय, भैस, बैल को नदी में धोने के लिए ले जाते थे। सब हमारे नाना जी के घर से होकर जाते थे। मैं अपने ममेरे भाइयों के साथ छत से गली से गुजरने वाले सभी व्यक्तियों को गोबर घोरकर पराते थे, जिसे हम लोगों को बड़ा मजा आता था। हद तब हो गयी जब एक ऐसे व्यक्ति पर गोबर के घोल फेक दिया जो नदी से अपने जानवर को धोकर और खुद स्नान करके आ रहा था । फिर क्या था, हम लोग नाना जी के पिटाई के डर से छिप गए, लेकिन शाम को डांट सुननी ही पड़ी ।
जयप्रकाश नारायण
रामनगर, जमशेदपुर, झारखंड

होली की यादें- प्रभात खबर में प्रकाशित