07 December, 2017

भातृत्व प्रेम


        सुमेर ने पिता जी से कहा, पापा, ये क्या हो रहा है?’ यही हर दिन की तरह रगड़ा-झंझट – पिता जी ने झुझलाते हुए कहा । लेकिन, किस बात पर, सुमेर ने बात काटते हुए बोला- पिता जी ने कहा, साड़ियाँ लाये थे श्रुति के गौने के लिए, पर शायद अच्छी नहीं है, इसलिए आसमान सर पर उठाये है दोनो-माँ और बेटी श्रुति सुमेर की सौतेली बहन थी । सुमेर के दो माँ थी । आए दिन उनके बीच बात-बात पर झगड़े होते रहते थे । सुमेर के परिवार में पूरे पौन दर्जन सदस्य थे । कमाने वाला केवल एक ही प्राणी था-सुमेर । खेती थी तो बस पेट भरने के काम में आती थी । सुमेर ने पिता जी से कहा,ठीक है! जाइए... बदलकर दूसरा कपड़ा लेते आइएपिता जी थोड़ा सकपकाते हुए, बेटे पैसे भी तो...उतने ही है....उतने में गौना भी खत्म करना है । श्रुति का विवाह सुमेर ने बड़ी धुम-धाम से करवाया था, लेकिन श्रुति में दिन-प्रति-दिन बढ़ते घमण्ड ने सुमेर को असहज कर दिया था । सुमेर छोटे-बड़े प्राईवेट काम में लगा हुआ था और किसी तरह परिवार का खर्च जुटा रहा था, लेकिन पूरे परिवार को देखभाल करने के लिए सीरियल बड़े भईया की दुल्हनिया से कम नहीं लगा रहता था । दोनों माँ के बीच अनबन और श्रुति को अपनी सौतेली माँ के प्रति व्यवहार से सुमेर और श्रुति के बीच नाराजगी की खाई दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही थी । जब सुमेर से बात असहनीय स्थिति पर पहुँचती तो वह मन मसोस कर रह जाता । नाराजगी को दूर करने के लिए बात का सिलसिला बंद कर दिया था, फिर भी सुमेर अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ निभाते हुए गौना पर बहुत खर्च कर रहा था । वो भी अपने दोस्तों-यारों से पैसे जुटाकर, क्योंकि गौना के दिन एकाएक रखे गए थे । वह जानता था कि पिता जी आखिर गौना का खर्च कैसे उठा पायेगे? सुमेर ने गौने के उस साड़ियों को बदलने के लिए पिता जी को कुछ पैसे दे दिए । अगले दिन पिता जी बाजार से जाकर उससे अच्छी साड़ियाँ लाये तब जाकर श्रुति का मन भरा । फिर भी गौने के सामान में कुछ कमियाँ निकालती रहती था । श्रुति का गौना किसी तरह शान्तिपूर्वक सम्पन्न हुआ और वर अपने ससुराल चली गई । पर ससुराल में भी श्रुति की जी नहीं भर रहा था, क्योंकि वहाँ मैके की तरहे घुमने-फिरने की आजादी नहीं थी । एक दिन माँ को फोन किया, माँ यहाँ मन नहीं लगता है, बहुत काम करना पड़ता है । माँ बोली,बेटी जैसी भी हो, नमक-रोटी खाकर रहना पर यहाँ आने के बारे में मत सोचना। लग रहा है जैसे मैके में युद्ध चल रही हो । श्रुति को मैके में बहुत आराम थी, एकलौती जो थी, इसके कारण सारे काम-काज माँ ही कर देती थी । अब आराम का ससुराल में मजा निकल रहा था । दिन बितता गया, समय बितते गए । श्रुति अब माँ बनने वाली थी । श्रुति के ससुर और पति खेती-बाड़ी और घर का कामकाज संभालते थे । श्रुति भी घर का कार्य संभालती थी । सुमेर की जिंदगी भी आराम से गुजर रही थी । उसे अपने कार्य से संतोष मिल रहा था । उसे इस कार्य के लिए कभी एक शहर से दूसरे शहर में भी जाना पड़ता था । सावन का महिना चल रहा था । कुछ ही दिनों में रक्षाबंधन आने वाला था, पर दोनों भाई-बहन के बीच बात-चित का दौर खत्म हो गया था ।

      श्रुति अब अपने बच्चे को जन्म देने वाली थी । वह पैसे की कमी के कारण सरकारी अस्पताल में भर्ती थी । सरकारी अस्पताल की हालत इन दिनों खराब चल रही थी, अधिकांश डॉक्टर किसी न किसी कारण गायब रहते थे । श्रुति का दर्द बढ़ता जा रहा था । उसके पति के पास इतना पैसा नहीं था कि उसे नजदिक के किसी अच्छे प्राईवेट अस्पताल में ले जाये । सुमेर
अपने काम से उसी शहर में आया हुआ था । श्रुति के हालत पल-पल खराब होती जा रही थी, अस्पताल के सभी स्टॉफ बेचैन थे, कही फिर न बदनामी झेलना पड़े । अस्पताल को आये दिन अनगिनत मौते प्रसव पीड़ा के कारण होती रहती थी, लेकिन अस्पताल के डॉक्टर सुविधाओं की कमी का कारण कुछ में करने में असमर्थ थे । अस्पताल के बाहर भी श्रुति के खराब हालात के खबरे फैलने लगी थी । तभी कही से घुमता हुआ सुमेर आया । उसे बात समझते देर न लगी, फिर क्या था, भाई की ममता ही अलग होती है । आखिर एक समय श्रुति ने भी तो सुमेर को राखी बाँधकर जीवन की रक्षा की भीख माँगी थी, पर पारिवारिक कारणों से बात बंद थी । सुमेर ने जल्द ही एटीएम से पैसे निकालकर श्रुति के पति को दिया और साथ मिलकर अच्छे प्राईवेट अस्पताल में भर्ति कराया । जहाँ श्रुति ने एक नन्हे बालक को जन्म दिया । कुछ देर बात सुमेर श्रुति से मुलाकात करने गया । जहाँ श्रुति अपनी गलती का अहसास कर फुट-फुट कर रोने लगी, वही, सुमेर ने ढ़ाढस बाँधते हुए नयी जिंदगी की दिलासा दिया । नन्हा बालक भी एक टक से अपने मामा को इस तरह निहार रहा था, मानो उसकी बहन से ज्यादा उसे ही जाना पहचाना हो । आज भातृत्व-प्रेम के कारण एक बहन की जान बची, अन्यथा सरकारी अस्पताल में बदनामी में एक की बढ़ोतरी दर्ज होती । तीसरे दिन रक्षाबंधन का पर्व था । श्रुति ने राखी मंगवाकर भाई को भी लम्बी उम्र की कामना करते हुए राखी बाँधी ।

11 November, 2017

सदाबहार-3

जिस हाल में हूँ उस हाल में रहने दो।
हाथो मे चाकू न दो कलम भी रहने दो।
सताया हूँ इस कदर उसके दिल का।
जितना बहना है आँसू बहने दो।
                  जेपी हंस

सदाबहार-2

कभी रेत पर लिखी थी हम दोनों की जिंदगानी।
आँधियाँ आई, तूफान आया मिट गयी निशानी।
मुलाकातों को दौर चलता है चलता भी रहेगा।
बस होंठो में मुस्कान और लेकर आंखो में पानी।
                            जेपी हंस

10 November, 2017

सदाबहार-1

स्मार्टफोन की इस दुनिया में,
कैसा कैसा भूकंप आता है।
घर परिवार में अगर मचे भूकंप तो,
मोदी से पहले ट्रम्प को पता चल जाता है।
                                    जेपी हंस

11 May, 2017

सपने थे हजार (गजल)



सपने थे हजार उनके मन में,
पर कोई उजाला ला न सका ।
भटकता रहा दर-दर पगडंडियों पे,
पर कोई सामने आ न सका।
हजार रास्ते बनाये रहमो-करम ने,
पर कोई रास्ता पहुँचा न सका ।
ढोता रहा सपनों का बोझ,
पर कोई उसे उठा न सका ।
सहता रहा हजार जुल्मों-सितम,
पर कोई कहर का जवाब दे न सका ।
सपने थे हजार उनके मन में,
पर कोई उजाला ला न सका ।
               -जेपी हंस

काश तु मिलती (गजल)





काश तु मिलती तो एक दिन ।
आखें फड़फड़ाके कहती है ।
दो जिस्म एक जान होती ।
धड़कने  पुकार कर कहती है ।
झुठ नहीं बोलती वो नयन ।
जो गिड़गिड़ा के कहती है ।
जग जाहिर ही होते है वो ।
सपने जिनके कामयाब होती है ।
आँखों के आसुँ से भर गये गागर ।
गागर की लहरे उफान भरके कहती है ।
काश तु मिलती तो एक दिन ।
आखें फड़फड़ाके कहती है ।