03 February, 2015

पार्टी फंड



जीतू इन दिनों काफी परेशान था, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?  जीतू को काफी खुन-पसीना बहाने के बाद एक छोटी-सी नौकरी मिली थी । नौकरी मिलने से वह बहुत खुश था, लेकिन ऑफिस के कर्मचारियों के रवैये से इसे दिन-पर-दिन नफरत-सी होने लगी । जीतू जब-से ऑफिस ज्वाईन किया तब से पार्टी शब्द उसके जेहन को खोखला करता जा रहा था । जीतू गरीब परिवार से था, उसने कभी पार्टी के बारे में ज्यादा जाना-समझा नहीं था । बड़ी मुश्किल से मेहनत करके वह नौकरी प्राप्त किया था । वह समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था, फिजूलखर्ची में विश्वास नहीं करता था, लेकिन ऑफिस में ज्वाईन करने के बाद से उनसे पार्टी मांगने की जैसे होड़ लग गई, कभी इस नाम पर तो कभी उस नाम पर । ऑफिस में स्टॉफ कम होने पर सभी कर्मचारी मिलकर आपस में कुछ पैसे मिलाकर हफ्ते दो हफ्ते में एक बार पार्टी का आयोजन कर ही लिया करते थे । यह सब चीजें जीतू को नापसंद था । उसने सोचा अभी अभी हम नये है, खुलकर बोलने से सभी नाराज हो जायेंगे, लेकिन नहीं बोलने से उसे जब-तब पार्टी के लिए पैसे देने ही पड़ते । जीतू ने मन ही मन एक उपाय सोचा, क्यों न सभी कर्मचारियों से यह कहा जाए कि एक पार्टी फंड बनाई जाए और उससे गरीब-असहाय लोगों की मदद की जाए  । अगले दिन जीतू ने सभी कर्मचारियों की एक मिटिंग बुलाई, कहाँ- हमलोग जो पार्टी कर मौज मस्ती करते है उस पैसे से एक पार्टी फंड बनाई जाए। मेरे मुहल्ले में कुछ गरीब और असहाय लोग रहते है, क्यों न हम सभी मिलकर कुछ पैसे हर महीने जमा करे और उस पैसों से गरीब और असहाय लोगों की मदद की जाए ? सभी इस सुझाव से सहमत हो गए और अगले रविवार को सभी कर्मचारी उस मुहल्ले में दाखिल हुए जहाँ गरीब-असहाय लोगों की बस्ती थी ।

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