23 July, 2019
10 July, 2019
04 July, 2019
प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति हो।
माननीय मुख्यमंत्री, बिहार
पटना
विषयः-
सहायक प्रोफेसर की भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा कराने
के संबंध में ।
महोदय,
आप
भारतीय राजनीति के बहुमूल्य मोती रहे हैं, इसलिए बिहार के छात्रों का एक बड़ा समूह
आपसे एक महत्वपूर्ण विषय पर हस्तक्षेप की मांग करते हैं । हम ऐसे छात्र हैं जिनकी
पृष्ठभूमि कई कारणों से 'गोल्डेन' नहीं
है लेकिन हममें अच्छा परिणाम देने का जज्बा है । आप स्वच्छ छवि के प्रशासक हैं ।
मितभाषी स्वभाव आपके नाम के अनुरुप है और परिणाम-उन्मुख कार्यशैली आपकी पहचान है ।
योग्यता के बावजूद पीछे रह जाने की पीड़ा कैसी होती है, आप
हमसे बेहतर जानते हैं । अत: हम आपसे उम्मीद कर रहे हैं कि असिस्टेंट प्रोफेसर की
बहाली में ''डिग्री लाओ, नौकरी पाओ''
की पुरानी परिपाटी को तोड़ डालने की ऐतिहासिक कोशिश के सूत्रधार
बनेंगे । हमारे प्रार्थना पत्र को पढने की कृपा कीजिए और हो सके तो सरकार में
हमारी आवाज बनिए ।
1.
आज के दौर में किसी भी क्षेत्र
में बेहतर प्रतिभा को प्रतियोगिता परीक्षा के द्वारा चुना जाता है । ग्रुप डी के
पदों की बहाली में भी अकादमिक रिकार्ड की गुणवत्ता संदिग्ध मानी जाती है ।
असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया इससे बाहर क्यों रहे !!
2.
यदि सामाजिक न्याय और समावेशी
विकास को वास्तव में नीति में स्थान दिया गया है तो फिर वैसे लोगों की असिस्टेंट
प्रोफेसर की बहाली में स्थान सुनिश्चित करना होगा जो समाज के हाशिए से आते हैं ,
जिनके
पुरखे साधनविहीन हैं, सतर्क नहीं रहे हैं ।
सवर्णों में भी देहातों से आने वाले छात्रों की पृष्ठभूमि ऐसा ही है ।
3.
अकादमिक रिकार्ड के आधार पर
बहाली में उस असमानता का निराकरण कैसे होगा जो अलग- अलग बोर्डों एवं विश्वविधालयों
के मार्किंग पैटर्न की भिन्नता से जन्मी है । बीएचयू में पीजी में जितना अंक मिलता
है उतना मगध विवि, पटना विवि इत्यादि में
नहीं मिलता । साथ ही एक ही विवि के अलग- अलग कालखंड में दिए गए अंकों में भिन्नता
है ।
4.
संविधान सभी भारतीयों को
बराबरी का दर्जा देता है । इसे ब्रह्म वाक्य समझकर बिहारी छात्र दूसरे राज्यों में
इंटरव्यू देने जाता है, खाली
हाथ वापस आता है और बिहार ज्यूडसरी सहित तमाम दूसरे अच्छे पदों पर हम बाहरी को दिल
खोल कर स्वागत करते हैं । आखिर ऐसी उदारता दूसरे प्रांत वाले नहीं दिखाते तो हमारी
सरकार अपने बच्चों का संरक्षण करने का उपाय वैधाधिक, व्यवहारिक
तरीकों से क्यों नहीं करती ? यदि
इंटरव्यू लेने का प्रावधान रखा जाता है तब इंटरव्यू बोर्ड के लिए चुने जाने वाले
सदस्य यूपी, झारखंड,
दिल्ली,
एमपी,
राजस्थान
से न लिये जाएं ।
5.
अकादमिक रिकार्ड में यूजीसी
रेगुलेशन 2018 के तहत जो भारांक पीएचडी डिग्रीधारियों और नेट पास अभ्यर्थी को दिया
जा रहा है वह बहुत बङी विसंगति है । जब पीएचडी को वरीयता ही देना है तब फिर हरेक
साल दो--दो बार नेट की परीक्षा आयोजित करने का क्या औचित्य है !
6.
पीएचडी की डिग्री की साख पर कई रिपोर्ट सवालिया
निशान लगा चुके हैं । खुद यूजीसी अब 2009 के रेगुलेशन के तहत पीएचडी किए जाने को
अब मान्यता दे रहा है । सवाल है कि जिन्होनें 2009 के रेगुलेशन के पहले ईमानदारी
से पीएचडी किया है, उनके हित कैसे सुरक्षित
रखे जायेंगे ? साथ ही 2009 के रेगुलेशन से
जिन्होनें पीएचडी किया है उन्होनें अपने थिसिस लेखन में कट- पेस्ट- कापी का सहारा
नहीं लिया है , इसकी गारंटी भी नहीं है
।यूजीसी ने हाल ही में इस सम्बंध में सवाल उठाये हैं । यही कारण है कि यूपी सहित
कई राज्य इसकी बहाली प्रतियोगिता परीक्षा के जरिए करते हैं ।
7.
कई सारे तकनीकी पेंचों को
देखते हुए यह ज्यादा जरुरी हो जाता है कि
सभी सम्बद्ध पक्षों का हित यथासंभव सुरक्षित रहे
। इसलिए एक ऐसे माडल पर विचार किया जाए जिसमें कुछ इस तरह प्रावधान हो :-
(क)
70 अंक प्रतियोगिता परीक्षा + 20 अकादमिक भारांक + 10 अंक साक्षात्कार ।
(ख)
70 अंक प्रतियोगिता परीक्षा + 30 अकादमिक भारांक । परीक्षा में आये अंकों और
अकादमिक भारांक के आधार पर मेरिट लिस्ट बनायी जाए । साक्षात्कार नहीं होने से
बहाली की प्रक्रिया बेहद कम समय में पूरी हो सकती है ।
8. प्रतियोगिता परीक्षा में नेट / सेट / बेट /
पुराने - नये सभी पीएचडी को बैठने का मौका मिले ।
9.
प्रतियोगिता परीक्षा की प्रक्रिया बदनामी से मुक्त बेदाग हो, इसके लिए जरुरी है कि परीक्षा हर विषय की वस्तुनिष्ठ 【Objectives】ली
जाए । सब्जेक्टिव में परीक्षक की मर्जी चलने लगती है । परीक्षार्थी की बायोमिट्रिक
आधार आधारित हाजिरी बने । कार्बन कापी वाली उत्तर पुस्तिका हो और हर आप्शन के बगल
में उत्तर का पहला शब्द लिखा जाए ताकि कापी नहीं बदला जा सके , न ही बाद में दूसरों के द्वारा उसमें बदलाव हो । बेहतर मानिटरिंग के लिए
परीक्षा केंद्र केवल पटना हो । विषयवार परीक्षा के लिए अलग-अलग तिथि चुन लिया जाए
। स्ट्रांग रुम पर सीसीटीवी कैमरा की निगरानी चढ जाए । चाहे तो सरकार NTA को परीक्षा लेने की जिम्मेवारी सौंप सकती है ।
10. असिस्टेंट
प्रोफेसर नियुक्त किये जाने के पांच वर्ष के भीतर पीएचडी करना अनिवार्य बनाया जा
सकता है । नेट के साथ पीएचडी करने वाले चयनित असिस्टेंट प्रोफेसर को वेतन में एक
इंक्रिमेंट का लाभ दिया जा सकता है ।
11.
बीपीएससी की परीक्षाओं में पूछे गए
सवालों में से के कुछ के विकल्पों के सही-गलत को लेकर हाईकोर्ट जाने का रिवाज रहा
है । इसके लिए प्रश्न पत्र बनाने वालों की यूपीएससी परीक्षा पद्धति से अपडेट न
रहना है । अत: विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली के लिए होने वाली प्रतियोगिता
परीक्षा को इस विवाद से बचाना होगा । विवादास्पद सवालों से बचने के लिए यूपीएससी
की 2011 के पहले की आप्शनल पेपर के पीटी एक्जाम के सवालों, नेट के विषयवार पेपर के सवालों को चुना जा सकता है ।
श्रीमान, बहाली वैसे भी अनियमित रहती है । इतनी बड़ी रिक्तियां आने वाले निकट भविष्य
में बिहारी छात्रो को प्राप्त नही होगी ।
यह हम मेधावी किंतु बैकग्राउंडलेस बिहारियों के लिए उच्च शिक्षा में
प्राप्त सबसे बड़ा अवसर होगा । अत: आप हस्तक्षेप अवश्य करें । आपका हस्तक्षेप नई
शिक्षा नीति की भावना के अनुरुप होगा ।
निवेदक
(जेपी हंस)
अध्यक्ष, बिहार राज्य नेट-पीएचडी उतीर्ण छात्र
संघ, पटना
28 June, 2019
बिहार की सहायक प्रोफेसर के अभ्यर्थियों की मांग ।
सम्पूर्ण भारत में सहायक
प्रोफेसर की भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा से होती है पर हमारे बिहार राज्य ने इस अति
उच्च योग्यता वाले पद को भरने में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” को भर्ती का आधार बनाया है । हमारे देश में कई बोर्ड और कई विश्वविद्यालय
है, जिनके मार्किंग पैटर्न में बहुत अंतर है- जैसे कठिन सिलेबस के कारण बिहार
बोर्ड के टॉपर को भी सी.बी.एस.ई (C.B.S.E) बोर्ड और
आई.सी.एस.ई (I.C.S.E) बोर्ड के औसत छात्रों से भी 20% तक कम नम्बर मिलता है । इसके वजह से सहायक प्रोफेसर की बहाली में बिहार
के विद्यार्थियों को कम अवसर मिलता है । बिहार के लगभग सभी विश्वविद्यालय भी भारत
में सबसे कम मार्किंग के लिए जाने जाते हैं । इससे भी बड़ा अंतर समेस्टर और ऐनुअल
एक्जाम सिस्टम के प्राप्तांकों में है । ग्रेडिंग और नन ग्रेडिंग के बीच
प्राप्तांकों में तो और ज्यादा अंतर है- उदाहरणस्वरूप बिहार के विश्वविद्यालय,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) और
जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में जहां 65% पर गोल्ड मेडलिस्ट
हो जाता है वहीं बनारस हिन्दी विश्वविद्याल (BHU) और जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में एक सामान्य छात्र भी 80% तक अंक पाता है । ऐसे में प्रतियोगिता परीक्षा के जगह “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” के आधार पर भर्ती घोर
अन्यायपूर्ण और अवसर की समानता के खिलाफ है ।
“डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” प्रणाली भर्ती की सबसे पुरानी पद्धतिओं में से एक है, जिसका प्रत्येक
राज्य इनमें व्याप्त खामियों को देखते हुए इसके जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित
करवा रहें है । फिर हमारा राज्य क्यों न पुरानी पद्धति को त्याग कर नयी पद्धति- प्रतियोगिता
परीक्षा को अपनाये, क्योंकि बिहारी कठिन मेहनत और लगन के लिए जाने जाते है और किसी
भी प्रतियोगिता परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा सफलता हासिल करते हैं ।
मध्यप्रदेश, ओडिसा, हरियाणा, उत्तरप्रदेश,
राजस्थान और हिमाचल प्रदेश आदि अन्य अनेक राज्य खुली प्रतियोगिता
परीक्षा का आयोजन करवाते है एवं अपने-अपने राज्य का डोमिसाईल
नीति भी लागू करते है, जिससे वहां
के मूल निवासी को नियुक्ति में ज्यादा अवसर मिलता है । उसी तरह अपने राज्य बिहार
से भी खुली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति की मांग
करते हैं ताकि शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हो सके, साथ ही अपने राज्य की डोमिसाईल नीति को लागू किया जाये, जिससे यहाँ के मूल निवासी को नियुक्ति में ज्यादा से ज्यादा अवसर मिल सकें
। बिहार में अब तक जितने सहायक प्रोफेसर की भर्ती हुई है, उसमें
बिहार के बाहर के विद्यार्थी ज्यादा से ज्यादा नियुक्त हुए हैं । वें एक बार
नियुक्त तो होते हैं पर इस ताक में रहते हैं कि अपने स्टेट में किस तरह जाऊं,
वे मन से यहां ड्यूटी भी नहीं करते हैं और अततः वें यहाँ के
भैकेन्सी बर्बाद कर अपने स्टेट चले जाते हैं । अगर डोमिसाईल नीति लागू होता है तो
बिहार के विद्यार्थियों को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेगा और वे मन से यहां ड्यूटी
भी करेंगे । कहीं और जगह जाने की ताक में भी नहीं रहेंगे । बिहार के विद्यार्थी
अहिंदी-भाषी राज्यों में जा ही नहीं सकते, क्योंकि वे मूल
भाषा का ज्ञान माँगते हैं और बाकि बचे हुए हिंदी-भाषी राज्य भी मूल निवासियों को
प्राथमिकता देते हैं । यहाँ तक कि राज्य के बाहर के छात्रों के लिए उम्र अत्यंत कम
रखी जाती है । ऐसे में बिहारी छात्र जाएँ तो कहाँ जाएँ? क्या मज़दूर बनने को ही हम अपनी नियति मान लें? अगर डोमिसाईल नीति लागू होती हैं तो यहाँ के छात्रों को ज्यादा से ज्यादा
अवसर मिलेगा और यहाँ के बेरोजगार युवकों की समस्या भी दूर होगी ।
अंत
में, जो एकेडमिक में कम मार्क्स प्राप्त करते हैं, क्या उनमें गुणवता की कमी होती
है ? वे भी उच्च मार्क्स प्राप्त करने वाले की भाँति इस क्षेत्र में कुछ करना
चाहते है, लेकिन पूर्व में ली गई भर्ती प्रणाली(एकेडमिक सिस्टम) से ऐसे कई गुणवता
वाले विद्यार्थियों को छँटनी कर दी गई थी । अगर
बिहार सरकार इस पुरानी पद्धति “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” प्रणाली के जगह खुली प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा भर्ती करती है तो बिहार
के अभ्यर्थियों को इस नियुक्ति में ज्यादा
से ज्यादा अवसर मिल सकती है ।
24 June, 2019
सहायक प्रोफेसर की भर्ती में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” सिस्टम की जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजन कराने के संबंध में ।
माननीय ......................................
.....................................................
विषयः-
सहायक प्रोफेसर की भर्ती में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
सिस्टम की जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजन कराने
के संबंध
में
।
महोदय,
सम्पूर्ण भारत में सहायक प्रोफेसर की
भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा से होती है पर हमारे बिहार लोक सेवा आयोग ने इस अति
उच्च योग्यता वाले पद को भरने में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
को भर्ती का आधार बनाया है । महोदय, हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर बिहार में
भी सहायक प्रोफेसर की भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर करने की मांग करते हैं
।
1.
महोदय, हमारे देश में कई बोर्ड
और कई विश्वविद्यालय है, जिनके मार्किंग पैटर्न में बहुत अंतर है- जैसे कठिन
सिलेबस के कारण बिहार बोर्ड के टॉपर को भी सी.बी.एस.ई
(C.B.S.E) बोर्ड और आई.सी.एस.ई (I.C.S.E)
बोर्ड
के औसत छात्रों से भी 20% तक
कम नम्बर मिलता है । इसके वजह से सहायक प्रोफेसर की बहाली में बिहार के
विद्यार्थियों को कम अवसर मिलता है ।
2.
महोदय, बिहार के लगभग सभी
विश्वविद्यालय भी भारत में सबसे कम मार्किंग के लिए जाने जाते हैं । इससे भी बड़ा
अंतर समेस्टर और ऐनुअल एक्जाम सिस्टम के प्राप्तांकों में है । ग्रेडिंग और नन
ग्रेडिंग के बीच प्राप्तांकों में तो और ज्यादा अंतर है- उदाहरणस्वरूप बिहार के
विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
(DU) और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में जहां 65%
पर
गोल्ड मेडलिस्ट हो जाता है वहीं बनारस हिन्दी विश्वविद्याल (BHU)
और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में
एक सामान्य छात्र भी 80% तक
अंक पाता है । ऐसे में प्रतियोगिता परीक्षा के जगह “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
के आधार पर भर्ती घोर अन्यायपूर्ण और अवसर की समानता के खिलाफ है ।
3.
महोदय, बिहार में सहायक
प्रोफेसर की नियुक्ति में इसी “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
नियम को आधार बनाया जाता रहा है, जिसके कारण बिहारी छात्रों को कम अवसर मिल पाता
है । चूंकि बिहार बोर्ड और बिहार के यूनिवर्सिटीज भारत के सबसे कम मार्किंग वाले
बोर्ड और यूनिवर्सिंटी है ।
4.
महोदय, “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
प्रणाली भर्ती की सबसे पुरानी पद्धतिओं में से एक है, जिसका प्रत्येक राज्य इनमें
व्याप्त खामियों को देखते हुए इसके जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करवा रहें है ।
फिर हमारा राज्य क्यों न पुरानी पद्धति को त्याग कर नयी पद्धति- प्रतियोगिता
परीक्षा को अपनाये, क्योंकि हम बिहारी कठिन मेहनत और लगन के लिए जाने जाते है
और किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा सफलता हासिल करते हैं ।
अतः
हम महोदय से प्रार्थना करते हैं कि इस पुरानी पद्धति “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
प्रणाली के जगह खुली प्रतियोगिता परीक्षा
द्वारा भर्ती कराने की कृपा करें, ताकि बिहार के सभी विद्यार्थियों को इस
नियुक्ति में ज्यादा से ज्यादा अवसर मिल सकें।
निवेदक
निवेदक
बिहार
के सहायक प्रोफेसर के योग्य समस्त छात्र-छात्राएं
26 May, 2019
सहायक प्रोफेसर की भर्ती में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” प्रणाली की जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजन कराने एवं डोमिसाइल नीति लागू करने के संबंध में ।
माननीय...................
बिहार
विषयः- सहायक प्रोफेसर की भर्ती में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
सिस्टम
की जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजन कराने एवं
डोमिसाईल
नीति लागू करने के संबंध में ।
महोदय,
सम्पूर्ण भारत में सहायक प्रोफेसर की
भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा से होती है पर हमारे बिहार लोक सेवा आयोग ने इस अति
उच्च योग्यता वाले पद को भरने में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
को भर्ती का आधार बनाया है । महोदय, हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर बिहार में
भी सहायक प्रोफेसर की भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर करने एवं बिहार की
अपनी डोमिसाईल नीति लागू करने की मांग करते हैं ।
1.
महोदय, हमारे देश में कई बोर्ड
और कई विश्वविद्यालय है, जिनके मार्किंग पैटर्न में बहुत अंतर है- जैसे कठिन
सिलेबस के कारण बिहार बोर्ड के टॉपर को भी सी.बी.एस.ई
(C.B.S.E) बोर्ड और आई.सी.एस.ई (I.C.S.E)
बोर्ड
के औसत छात्रों से भी 20% तक
कम नम्बर मिलता है । इसके वजह से सहायक प्रोफेसर की बहाली में बिहार के विद्यार्थियों
को कम अवसर मिलता है ।
2.
महोदय, बिहार के लगभग सभी
विश्वविद्यालय भी भारत में सबसे कम मार्किंग के लिए जाने जाते हैं । इससे भी बड़ा
अंतर समेस्टर और ऐनुअल एक्जाम सिस्टम के प्राप्तांकों में है । ग्रेडिंग और नन
ग्रेडिंग के बीच प्राप्तांकों में तो और ज्यादा अंतर है- उदाहरणस्वरूप बिहार के
विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
(DU) और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में जहां 65%
पर
गोल्ड मेडलिस्ट हो जाता है वहीं बनारस हिन्दी विश्वविद्याल (BHU)
और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में
एक सामान्य छात्र भी 80% तक
अंक पाता है । ऐसे में प्रतियोगिता परीक्षा के जगह “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
के आधार पर भर्ती घोर अन्यायपूर्ण और अवसर की समानता के खिलाफ है ।
3.
महोदय, बिहार में सहायक
प्रोफेसर की नियुक्ति में इसी “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
नियम को आधार बनाया जाता रहा है, जिसके कारण बिहारी छात्रों को कम अवसर मिल पाता
है । चूंकि बिहार बोर्ड और बिहार के यूनिवर्सिटीज भारत के सबसे कम मार्किंग वाले
बोर्ड और यूनिवर्सिंटी है ।
4.
महोदय, “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
प्रणाली भर्ती की सबसे पुरानी पद्धतिओं में से एक है, जिसका प्रत्येक राज्य इनमें
व्याप्त खामियों को देखते हुए इसके जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करवा रहें है ।
फिर हमारा राज्य क्यों न पुरानी पद्धति को त्याग कर नयी पद्धति- प्रतियोगिता
परीक्षा को अपनाये, क्योंकि हम बिहारी कठिन मेहनत और लगन के लिए जाने जाते है
और किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा सफलता हासिल करते हैं ।
5.
महोदय, मध्यप्रदेश, ओडिसा,
हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश आदि अन्य अनेक राज्य खुली प्रतियोगिता
परीक्षा का आयोजन करवाते है एवं अपने-अपने राज्य का डोमिसाईल नीति भी लागू
करते है, जिससे वहां के मूल निवासी को नियुक्ति में ज्यादा अवसर मिलता है, उसी तरह
हमारा राज्य बिहार से भी खुली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर सहायक प्रोफेसर की
नियुक्ति की उम्मीद करते हैं ताकि शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हो सके,
साथ ही अपने राज्य की डोमिसाईल नीति को लागू किया जाये, जिससे यहाँ के मूल निवासी
को नियुक्ति में ज्यादा से ज्यादा अवसर मिल सकें ।
6.
महोदय, बिहार में अब तक जितने
सहायक प्रोफेसर की भर्ती हुई है, उसमें बिहार के बाहर के विद्यार्थी ज्यादा से
ज्यादा नियुक्त हुए हैं । वें एक बार नियुक्त तो होते हैं पर इस ताक में रहते हैं
कि अपने स्टेट में किस तरह जाऊं, वे मन से यहां ड्यूटी भी नहीं करते हैं और अततः
वें यहाँ के भैकेन्सी बर्बाद कर अपने स्टेट चले जाते हैं । अगर डोमिसाईल नीति लागू
होता है तो बिहार के विद्यार्थियों को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेगा और वे मन से
यहां ड्यूटी भी करेंगे । कहीं और जगह जाने की ताक में भी नहीं रहेंगे ।
7.
महोदय, हमलोग अहिंदी-भाषी राज्यों
में जा ही नहीं सकते, क्योंकि वे मूल भाषा का ज्ञान माँगते हैं और बाकि बचे हुए
हिंदी-भाषी राज्य भी मूल निवासियों को प्राथमिकता देते हैं । यहाँ तक कि राज्य के
बाहर के छात्रों के लिए उम्र अत्यंत कम रखी जाती है । ऐसे में हम बिहारी छात्र
जाएँ तो कहाँ जाएँ? क्या मज़दूर बनने को ही
हम अपनी नियति मान लें?
महोदय, अगर डोमिसाईल नीति लागू होती हैं तो यहाँ के छात्रों को ज्यादा से ज्यादा
अवसर मिलेगा और यहाँ के बेरोजगार युवकों की समस्या भी दूर होगी ।
अतः
हम महोदय से प्रार्थना करते हैं कि इस पुरानी पद्धति “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ”
प्रणाली के जगह खुली प्रतियोगिता परीक्षा
द्वारा भर्ती कराने एवं बिहार की अपनी डोमिसाईल नीति
लागू करने की कृपा करें, ताकि बिहार के निवासी को इस नियुक्ति में ज्यादा से
ज्यादा अवसर मिल सकें ।
निवेदक
निवेदक
बिहार
के सहायक प्रोफेसर के योग्य समस्त छात्र-छात्राएं
06 May, 2019
रिश्ते, समाज और हम
हमारे
समाज में ऐसे कई मौके आते है जिसमें मिलने-जुलने का अवसर मिलता है जैसे-
शादी-विवाह, बर्थ-डे पार्टी, मैरेज एनिवर्सरी, गृह-प्रवेश, मुंडन समारोह, मृतक-भोज
कार्यक्रम तथा पर्व-त्योहार । यह वह वक्त होता है जिसमें आप अगर सरकारी कार्यालय
में भी कार्यरत हो तो छुट्टी मिलने की गुजाईश रहती है ।
अभी
शादी-विवाह का मौसम चल रहा है । यह वह समय है जब एक-दूसरे रिश्तेदारों से भेट-मुलाकात
हो सकता है । इस समारोह में जाने से नये दोस्त और नये रिश्तेदारों के साथ अपने
पुराने दोस्त, पास-पड़ोसियों और रिश्तेदारों से मिलकर खोयो आत्मीय रिश्तों को
रिचार्ज कर सकते हैं । रिश्तों में दरार का एक ही कारण हो सकता है- आपसी मन-मुटाव
या अपने आप को बड़ा महसुस करना, जिसे अहम भाव पैदा हो जाना भी कह सकते हैं । जब दो
रिश्तों के बीच जब अहम भाव पैदा हो जायेंगे या मन-मुटाव कायम रहता तो इन आत्मीय
रिश्तों को कभी रिचार्ज नहीं कर पायेगे और इस डोर को जुड़ने का फिर से वर्षों इंतजार
करना पड़ेगा ।
रिश्तेदारों
और पड़ोसियों में टकराव इस कदर हो रहा है कि छोटी-छोटी बातों पर मुंह मोड़ लिया जा
रहा है । जिस किसी व्यक्ति का गाँव-घर उसके कार्यस्थल से एक-दो किलोमीटर दूर है वो
पारिवारिक कलह की वजह से कार्य-स्थल का सफर पाँच-सात किलोमीटर दूर से जाना मुनासिब
समझ रहा है, लेकिन पारिवारिक कलह को दूर करने का कोई प्रयास नहीं कर पा रहा है ।
कई
परिवार तो मुझे ऐसे मिले जो पास-पड़ोस और परिवार में बदले माहौल की वजह से अपने
बच्चे और खुद गाँव-घर से दस-बीस किलोमीटर दूर रहते हैं । वहीं से घर आकर अपनी
खेती-गृहस्थी की देखभाल करते और परिवार चलाते है । उनका कहना यहीं होता है कि
गाँव-घर का माहौल बदला हुआ है । पहले जैसा माहौल अब नहीं रहा, जब एक-दूसरे से
प्रेम पूर्वक मिलना जुलना होता था, एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी होते थे, आज यह
प्रचलन लगभग खत्म हो रहा है ।
आखिर
रिश्ते, रिश्तेदार, गाँव-घर में बदले माहौल के लिए कौन जवाबदेह है ? उन्हें सुधारने की जिम्मेदारी किसकी है ? कोई इसे सुधार करने के लिए आगे क्यों नहीं आ पा
रहा है ? हमारे समाज में हर तरह की व्यवस्थायें मौजूद है,
वो भी पहल क्यों नहीं कर पा रहा है ? हम कब तक इंतजार
करेंगे, कही ऐसा न हो इंतजार करते-करते इतना देर हो जाए कि फिर इन्हें सुधरने की
गुजाईश ही न हो । कहीं हमारे अकेले मस्त रहने की आदत हम पर ही भारी न पड़ने पड़
जाये ।
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