26 March, 2020
कैद में मौज
07 March, 2020
इतनी आसानी से तो मै तुझे भूला भी नहीं सकता।
26 November, 2019
नई सरकार (व्यंग्य)
मच्छर ने कहा," हमें किसी ई.ए, पी.ए से पूछने की जरूरत नहीं पड़ती, हम साहेब के आदमी है, ओ भी बड़े साहब के।" मैं भी ठहरा संस्कारी, बोला ठीक है, आ ही गए हो तो बैठ जाओ। बताओ क्या बात है, जो इतनी रात को घर आये? उसने बोला, "आपका समर्थन चाहिए सरकार बनाने में।
मैं झिझका तभी बीच में बोल पड़ा, 50 मिलेंगे।
हमने कहा," यह 50 रुपया क्या है? मोटा मच्छर अकड़ दिखाते हुए कहा, " अबे नया है क्या? नहीं जानता है, 50 रुपये नहीं, 50 करोड़। अगर बाप या परिवार का कोई जेल में हो तो तुरन्त पैरोल और सरकार बनने के बाद बेल की गारंटी। यदि कोई घोटाले में लिप्त हो, चाहे कितना भी बड़ा घोटाला हो तब पैसे की जगह घोटाला की जांच रोकने और क्लीनचिट की गारंटी साथ ही मंत्री पद भी। अबकी मच्छर कुछ बोला नहीं, बल्कि अपना रेट-कार्ड मुझे दिया। यह रखिये। रेट-कार्ड भगवा कलर का था। जिसमें ऊपर की सभी बातें साफ-साफ और स्पष्ट शब्दों में लिखा था। तभी मेरे मन में सवाल आया, कुछ बोलने ही वाला ही था, तो मच्छर बोला, पूछिये जो पूछना है, समय ज्यादा नहीं है मेरे पास और किसी और से बात करने की जरूरत नहीं। हमें ही पूरा सेटिंग-गेटिंग का जिम्मा है।
हमने कहा भाई साहेब ये जांच का मामला तो जांच एजेंसी देखती है, ओ सरकारी मुलाजिम होता है, तभी बीच में टोकते हुए कहा, फिक्र नॉट, हमारा सब जगह सेटिंग है, बड़े साहब जो है।
-मैंने बातो में उलझाते हुए सुबह होने तक इंतजार करने को कहा । साथ ही पार्टी प्रमुख जो कहेंगे, वही न! इतने साल से पार्टी की सेवा जो कर रहा हूं।
- वैसे भी आप किस पार्टी के समर्थन के बारे में कह रहे है, आपने बताया नहीं, मैंने पूछा?
मच्छर तपाक से बोल पड़ा, "मेवा मिली क्या आज-तक? आज मेवा खाने का मौका है। किस पार्टी का समर्थन देना है ओ तो शपथ के समय पता चलेगा। अभी केवल सादा कागज पर साइन कीजिये और पार्टी से पूछकर ज्यादा हरिश्चन्द्र बनने की जरूरत नहीं है।
-मैंने दोहराया, फिर सिद्धान्त का क्या होगा?
सिद्धान्त, सिद्धान्त क्या होता है? पार्टी और नेता का कोई सिद्धान्त होता है क्या! सिद्धान्त यही की बहला-फुसलाकर कुर्सी हासिल करो। वैसे भी सिद्धान्त जाए बैगन के खेत में, हमें केवल सरकार बनाना है। ओ भी रातो-रात, नहीं तो सबेरे सब गुड़-गोबर हो जाएगा।
-मैंने अपनी बात फिर रखा, इतनी रात को क्या राज्यपाल जगे होंगे, सबेरे तो होने दीजिये, वैसे भी राजभवन का फैक्स अक्सर खराब ही होते है। इस बार छोटा मच्छर फुदका कहा, "नहीं, सब जुगाड़ फिट है।"
-मैंने सोचा अब बिना बिहारी दिमाग लगाए इससे छुटकारा नहीं।
मैंने चमन की माई को जोर से आवाज लगाई, चमन की माई, तनी तेलवा पिअलका लाठिया लाओ तो, जरा फिर से तेल पिआ के...चमन की माई भी बड़ी भोली है जल्दी ही तेल नहीं मिला तो घीउ पिलाकर लाठी लाई सोची कोई कुत्ता होगा इसी के लिए लठिया मांग रहे है।
यहां लाठी की बात सुनते की दोनों हांफते हुए भागा।
-क्या समझा था, ये गोआ, कर्नाटक और हरियाणा है? ई बिहार हई, हम हई खाँटी अहीर, गोआला के बेटा, यहां दाल नहीं गलीहे। मर जइहें, जेल में सड़ जइहें तइयो समझौता नही।
-सुबह जब उठा तो देखा की बगल की पटरी से अलग रेल पलटी हुई है और दोनों मच्छर भी टकराकर घायल हो गया है। दोनों मच्छरो को ठेले पर लादकर, चुकी बिहार में इतना जल्दी एम्बुलेंस तो मिलता नहीं और हम बिहारी किसी को ऐसे मरते छोड़ नहीं सकते तो ठेले पर लादकर बगल के "तुम्हे मरना होगा" हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया। हमारे यहां हॉस्पिटल में जीने की गारंटी तो नहीं पर मरने का
प्रमाण-पत्र जल्दी मिल जाता है।
-इधर जब अखबार उठाकर पढ़ने लगा तो देखा पहले पन्ने पर लिखा है,"हमारे राष्ट्र में नयी सरकार गठित" पहले कुछ सोचा हमारे देश में तो कब की सरकार बन गयी थी अब फिर... और फिर चश्मा की धूल साफ करते हुए पढ़ा, लिखा था "महाराष्ट में नई सरकार गठित" ओ पढ़ने में गलती से मिस्टेक हो गयी।
04 October, 2019
जोड़ता कौन है?
कोई धर्म के नाम पर,
कोई जाति के नाम पर,
पर,
जोड़ता तो एक ही है
वह है,
डॉक्टर!
धर्म, जाति के भेद मिटाकर,
धर्म और जाति के हिंसा,
में झुलसे हुये को,
एक ही वार्ड में,
भर्ती कर,
एक ही बैंडेज पट्टी से,
एक ही तरह की दवा से,
इलाज कर।
27 September, 2019
मृत्यु-दर में कमी।
नया मोटर वेहिकल नियम आयी है।
मृत्यु-दर में कमी आयी है।
इसलिए नहीं की,
सड़कों पर गाड़ियां नहीं चल रहे हैं।
लोग बाइक नहीं चला रहे हैं।
-18 वाले हवा-हवाई नहीं चला रहे हैं।
इसलिए भी नहीं की,
किसी के पास आर.सी नहीं हैं,
किसी के पास पॉल्यूशन नहीं हैं,
किसी के पास डीएल नहीं है,
किसी के पास इन्शुरेंस नहीं हैं।
वे गाड़ियां नहीं चला रहे हैं।
यमराज भी
बड़े दिनों से बे-रोक टोक आ रहे थे।
सभी को बे-टाइम ही ले जा रहे थे।
ऐसा नहीं की,
यमराज के पास,
आने के लिए,
इनके वाहन का,
आर.सी नहीं हैं,
पॉल्यूशन नहीं हैं,
डीएल नहीं है,
इन्शुरेंस नहीं हैं।
सब कुछ है पर,
उनके सर पर भी मुसीबत पड़ी है।
क्योंकि यहाँ हर चौराहे पर पुलिस खड़ी है।
पुलिस के डंडो से,
जिस तरह,
नियम तोड़ने वालो की,
सुताई हुई है।
क्या बच्चे,
क्या बूढ़े,
क्या नौजवान,
यहाँ तक की,
यमराज की आत्मा भी डरी हुई है।
धरती पर आने से,
लोगों को ले जाने से,
आज का यमराज तो वही है।
जो चौक-चौराहे पर डंडा लेकर खड़ी है।
- जेपी हंस
26 September, 2019
खुद से कैसे नजरें मिला पाते हो।
बस यही झूठ बोलता हूँ।
डूबी होगी यही इश्क की नाव हमारी
यही सोचकर मैं दिल की समंदर को
हर रोज टटोलता हूँ।
की गलतियां बेशक मेरी थी
तूने मेरा हाथ बीच मझधार छोड़ दिया।
अरे भरोसा तुझपर इतना कर बैठा
मैंने तो तुझे मोहब्बत दी,
बदले में तूने कुछ और दे दिया।
की सारा जमीर ईमान किनारे करके
तेरी हर तमन्ना पूरी की
सीने से करेजा निकाल
तेरे कदमों पर रख दिया था
और बता तुझे क्या चाहिए था
किसी की जिंदगी से हर रंग छीनकर
हाथों में मेहंदी कैसे लगा पाते हो।
बस एक बात का जवाब दे दो
की आइने के सामने खड़े होकर
खुद से कैसे नजरें मिला पाते हो।
भींगते थे कभी तेरे साथ बारिश में कभी
ओ बरसात का मौसम कितना अच्छा लगता था।
अरे किसी के खोखले किये हुए वादे
कितना सच्चा लगता था।
आंखों में बंधी थी तेरे नाम की पट्टी
तूने मेरा नाता जब दर्द से जुड़वा दिया
तूने मेरा साथ क्या छोड़ा
की मेरा खुद के खुद से रिश्ता भी तुड़वा दिया।
की किसी के सपनो को पैरो से रौंदकर
आंखों में सुरमा कैसे लगा पाते हो
बस एक बात का जवाब दे दो
की आइने के सामने खड़े होकर
खुद से कैसे नजरें मिला पाते हो।
की तुझे जितना मैं जान सका हूँ।
की किसी के साथ उम्र भर साथ निभाने का
वादा भी तूने कर लिया होगा।
बस इस बार इतनी भी तहजीब रखना
की उसके साथ मेरे जैसा सलूक न करना।
की उसने भी तुझे आँखो में भर लिया होगा
की आबाद रहे, गुलजार रहे तू
दुआ मैं इतनी करता हूँ
तेरे साथ मेरा नाम न जोड़ दे कोई
तुझसे मैं इतना डरता हूँ।
मुहब्बत में पड़े लोगों को मेरी सलाह है
की अपनी जिंदगी को सुनसान ढलानों पे
मत मोड़ लेना।
अरे किसी के करीब तो आना पर
इतना भी नहीं की रूह तक से जोड़ लेना।
की तुझसे मेरा आखिरी सवाल है
की जिस्म तो छोड़ो रूह तक से कैसे दगा कर जाते हो।
बस एक बात का जवाब दे दो
की आइने के सामने खड़े होकर
खुद से कैसे नजरें मिला पाते हो।
न पूछो आंखों से उसके लिए अश्क बहाना कैसा था।
होती रही गुफ्तगू और कटती रही राते
न पूछो हाल-ए-दिल बताना कैसा था।
और उसके बच्चे भी लिपट जाते है मामा-मामा कहकर
अरे इन बच्चो की माँ भी कुछ युही लिपट जाती थी
शरमाकर, नजर झुकाकर,
अरे न पूछो उसका अंदाज कातिलाना और साल पुराना कैसा था।
-G Talks से संभार।