27 August, 2014

एक छात्र की आत्मकथा


छात्र की गाथा उसके कर-कर्म से मिलता ।
पढ़ने-लिखने के क्रम में, हरदम ना ना करता ।
कभी बाजार की सैर करता, कभी बनता सयाना ।
पढ़न-लिखने के नाम पर, करता हमेशा बहाना ।
सुरज उगा, चिड़िया चहचहाई, हुई पढ़ने जाने की बारी ।
मॉ ने बेलना उठाया, करो स्कूल जाने की तैयारी ।
दुखी मन से बैग उठाया, पहुंचा स्कूल के गेट ।
गुरु जी ने झड़पे सुनाई, तुमको हुई क्यों लेट ।
खड़े रहो तुम एक पैर पर,  पूरी पहली घंटी ।
लेट-लतीफ से आने वालों की,  होती ऐसी गति ।
वर्ग में पहुँचने पर,  मिली अन्तिम सीट ।
पाठ याद न रहने पर,  गुरु जी ने दिया पीट ।
कान पकड़ता हूँ अब मैं,  करूँगा पाठ याद ।
खेलने-कुदने में नहीं मैं,  करूँगा समय बर्बाद ।
जिन्दगी तुम्हें बनाना है,  सुधरों दोस्तों सभी ।
उम्र भर रोना पड़ेगा,  नहीं पढ़ोगे अभी ।
             जे.पी. हंस

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