लिखते है खैरियत के
अफसाने मे,
रात डाक पड़ा है थाने
में,
कुछ है लीन मात देने
में,
कुछ लगें है सह बचाने
में,
ऊपर-ऊपर है दोस्ती
उनमें,
है दाव-पेंच दरमियाने
में,
यह फैसला लिया गया
लोगों ने,
कल मिल बैठकर मयखाने
में,
मरहवा, तुम बड़े
माहिर निकलें,
काठ की पुतली नचाने
में ।
-अज्ञात
-अज्ञात
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