जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
वक्त का ऐसा नजारा था कि वे फिरते थे एक दिन खुले पाँव ।
उसी शख्स के चलते हमने लगा डाला था अपना सारा दाँव ।
दाँव उलटी पड़ी हम पर समझ न पाए
हम उनके धंधे ।
जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
दुनिया ऐसी कहती है कि यहाँ हर शख्स है मददगार ।
उन लोगों से हम पूछतें हैं क्यों हमें दिया दुत्कार ।
दुत्कारना
ही था तो हमें अब तक क्यों बनाया अंधे ।
जिन-जिन
लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
उन्हीं
लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
वक्त फिर ऐसी आएगी
मिलेगी ना एक भी फुटी-कौड़ी ।
वो सब भुगतना पड़गा तुम्हें
जितना किया है हमने भाग-दौड़ी ।
भाग-दौड़ी से फिर पाई है फुरसत
सुन लो ये दुनिया के बंदे ।
जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे । - जेपी हंस
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