25 October, 2014

जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।



जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।       
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
वक्त का ऐसा नजारा था कि वे फिरते थे एक दिन खुले पाँव ।
उसी शख्स के चलते हमने लगा डाला था अपना सारा दाँव ।
दाँव उलटी पड़ी हम पर समझ न पाए हम उनके धंधे ।
जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
                                दुनिया ऐसी कहती है कि यहाँ हर शख्स है मददगार ।
                                उन लोगों से हम पूछतें हैं क्यों हमें दिया  दुत्कार ।
                                दुत्कारना ही था तो हमें अब तक क्यों बनाया अंधे ।
                                जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
                                उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
वक्त फिर ऐसी आएगी
मिलेगी ना एक भी फुटी-कौड़ी ।
वो सब भुगतना पड़गा तुम्हें
जितना किया है हमने भाग-दौड़ी ।
भाग-दौड़ी से फिर पाई है फुरसत
सुन लो ये दुनिया के बंदे ।
जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।    
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
                           - जेपी हंस

No comments:

Post a Comment

अपना कीमती प्रतिक्रिया देकर हमें हौसला बढ़ाये।