चाह नहीं मैं आम जनों के
पैरों में पहना जाऊँ
चाह नहीं मैं बस ट्रकों
के
पीछे ही लटकाया जाऊँ
चाह नहीं मैं मोची बाबू
के थैलों में पड़ा रहूँ
चाह नहीं घरों की दीवार के
सामने ही लटकाया जाऊँ
मुझे पहन लेना ओ क्रोधी
उस जन पर देना तू फेंक
अपने वतन की नाक काटने
जिस मंच विराजे भीड़
अनेक
जे.पी. हंस
जे.पी. हंस
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