14 November, 2014

धारा पर धारा


मंच पर बैठे-बैठे
बहुत देर हो गई थी,
हमारी एक टांग भी
सो गई थी ।
सो हम उठे ।    
एक कवि मित्र पूछ बैठे-
                   -कहाँ ?
हमने अपनी कन्नी उंगली उठाई-
                   -वहाँ
और मंच से उतर आए ।
उतर आए तो सोचा
हो भी आएं,
चलो इस तरफ से भी
राहत पा जाए
फिर मंच के पिछवाड़े घूमने लगे
कोई उचित, सही-सी स्थान
ढूंढने लगे ।
चलते-चलते
एक गली के मोड़ तक आ गए
सही जगह पा गए
और जब हम गुनगुनाते हुए.....करने लगे
किसी ने कमर में डंडा गड़ाया
मुड़कर देखा तो
सिपाही नजर आया
हम हैरान,
उसके चेहरे पर क्रूर मुस्कान
डंडा हटा के गुर्राया-
          चलो एक तो पकड़ में आया ।
हमने कहा-
          क्या मतलब?
वो बोला-
          मतलब के बच्चे
          पब्लिक प्लेस पर
          ............करना मना है
हमने कहा-
          ऐसा कोई कानून नहीं बना है ।
उसने कहा-
          जबान लड़ाता है
          अबे हमीं को कानून पढ़ाता है
          चल थाने ।
और हम लगे हकलाने-
सि........सि........सि.......सिपाही जी
हम कवि है,
कविताए सुनाते है
आपने गलत आदमी को छेड़ा है
वो बोला-
          पिछले दो भी
अपने आप को कवि बता रहे थे
इसलिए छोड़ा है
तुझे नहीं छोड़ूंगा
हो जा मुस्तैद
दिल्ली पुलिस ऐक्ट सैक्शन पिचानवै
सौ रूपया जुर्माना
आठ दिन की कैद
हल्ला मचाएगा
बानवै लग जाएगी,
तू तड़ाक बोलेगा
तिरानवै लग जाएगी
हमने कहा-
सिपाही जी
ये बानवै, तिरानवै, पिचानवै
क्या बलाएं हैं ?
वो मूंछो पर हाथ घुमाते हुए बोला
कानून की धाराए हैं ।
हमने सोचा-
          वाह वाह रे कानून हमारा
          अरे, धारा बहाने पर भी धारा
-         अशोक चक्रधर (हास्य कवि)



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