कहा जाता है कि एक अच्छा ऐक्टर अपनी ऐक्टिंग से कुछ भी छुपा सकता है, पर उसकी हैंडराइटिंग उसके सारे भेद खोल सकती है । हैंडराइटिंग से व्यक्तित्व और भविष्य बांचने की कला कई सौ साल पुरानी है । अब जब हाथ से लिखना कम होता जा रहा है, तो ऐसे में हस्तलिपि में अटपटापन आएगा ही । लेखन का ताल्लुक आत्मा से है, व्यक्तित्व से है । अब चिट्ठियों को ही ले लीजिए । हाथ से लिखी सामग्री को पढ़ने पर लगता है कि शब्द प्रेम की चाशनी में घुलाकर कागज पर सहेज दिए गए हैं । पर अफसोस कि अब चिठ्ठियों लिखने की परंपरा खत्म हो रही है । अपराध और फॉरेंसिक साइंस के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैंडराइटिंग भी है । जिस तरह शातिर का सुराग कभी डीएनए टेस्ट, तो कभी फिंगर प्रिंट से लगाया जाता है, वैसे ही जरूरत पड़ने पर फॉरेसिंक साइंस एक्सपर्ट मौका-ए-वारदात पर मिली हैंडराइटिंग से अपराधी का पता लगाते हैं या किसी पेचीदा केस को सॉल्व करते हैं । पर हाथ की लिखावट तो अब गुम हो रही है । जो लोग लिख भी रहे हैं, तो उनकी हैंडराइटिंग में एकरूपता नहीं रहती ।
याद कीजिए उस दिन को जब मास्टर जी हर रोज सुलेख लिखवाते थे । वह भी नरकट की कलम से, जी हॉ, कोई 20-25 साल पहले क्लासरूम में बॉलपेन रखना बस्ते में बम रखने के समान था । दरअसल नरकट की कलम से लिखना हैंडराइटिंग अच्छी करने का सबसे कारगर तरीका होता है । क्लास में जिसकी राइटिंग सबसे अच्छी होती थी, उसके भाव चढ़े रहते थे । खराब हैंडराइटिंग वाला न सिर्फ हीनता बोध से ग्रस्त रहती थी, बल्कि इम्तिहान में नंबर भी कम आते थे । हैंडराइटिंग में फिसड्डी आशिक अपने प्रेमपत्र तक दूसरों से लिखवाते थे । अब प्रेमी और प्रेमिका भी अब हैंडराईटिंग वाले प्रेमपत्र नहीं के बराबर भेजते है । क्योंकि उनके जगह एस.एम.एस ने जगह बना लिया है । अब व्हाट्सऐप, टेलिग्राम, हाईक जैसे मैसेजिंग एप ने जगह अपना लिया है । इन एपों के माध्यम से पल-पल का हाल बिना प्रेमपत्र लिखे ही जान जाता है । बहरहाल, दौर बदला, तो कलम भी बदल गई । नरकट की जगह पहले वॉलपेन ने ली और अब कंप्यूटर और मोबाइल वॉलपेन को भी छीनने पर आमदा है ।
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