जी, हाँ दोस्तों हम उस चीज की बात कर
रहे हैं, जिसका मानव जीवन में अति महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिसकी विद्यार्थी
पूजा भी करते हैं, लेकिन उसे आज तकनीकी युग में बहुत की कम इस्तेमाल किया जा रहा
है । यों तो कहे कि नही के बराबर इस्तेमाल होता है, वह है लेखनी - मतलब कलम ।
अगर
आज के जमाने में महात्मा गाँधी होते तो यह शायद इस बात का अफसोस नहीं होता कि उनकी
हैंडराईटिंग बेहद खराब है । मोती जैसे अक्षर गढ़ने वाले रवींद्रनाथ टैगोर और
लियोनार्दो द विंची भी इस एस.एम.एस और इमेल और चैटिंग के जमाने में जी रहे होते तो
इसके लिखावट की कोई कद्र नहीं होती । जी हाँ, यह तकनीकी का वह दौर है, जिसमें यह
मायने नहीं रखती कि आपकी हैंडराइटिंग कैसी है, क्योंकि हाथ से लिखने का चलन की बात
दिन-प्रति-दिन खत्म होती जा रही है । कार्यालयों में कागज और कलम का उपयोग लगातार
कम होता जा रहा है । मुहावरों की भाषा में कहे कि कंप्यूटर, मोबाईल और टबलेट ने
हमसे हमारी कलम छीन ली है और जब कलम ही नहीं बचेगी तो कलम के जादू का क्या होगा ? कलम का क्या काम है?
लिखना, पर यह तो अब सजने लगी है जेब में, शो-केस में । क्योंकि अब लिखने के लिए
कलम से ज्यादा इस्तेमाल कंप्यूटर के की-बोर्ड का होने लगा है तो क्या खतरे में है
हस्तलिपि का भविष्य ? जब कलम ही नहीं चलेगी तो कैसे चलेगा
कलम का जादू । अब सवाल यह उठता है कि हस्तलिपि का भविष्य क्या होगा? भाषाशास्त्री इस बात के चिंतित तो है कि कंप्यूटर के दखल से कलम की कमान
की-बोर्ड को सौप दी है, जिससे हस्तलिपि का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है पर वह यह
बात भी बताते हैं कि आने वाले दिनों में एक बार फिर लोगों को कलम और हैंडराइटिंग
की याद आएगी । भाषाविद् और केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के पूर्व निदेशक कहते है, “ यह सच है कि अब लोग लिखते नहीं है, उंगलियों से टाइप करते हैं , पर वह
दौर भी लौटेगा, जब कलम सिंर्फ जेब से ताकेगी नहीं, बल्कि बीते दिनों की तरह फिर से
आग उगलेगी ।
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