18 March, 2016

ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?

ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?
किस तरह ठोकरे खाकर पाषाण की तरह हूँ खड़ा ।
आँधी आई, तुफान आया, फिर भी घुट-घुट कर हूँ पड़ा ।
ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?
लाजिमी सोच-सोच में अभी मैं जिंदा हूँ ।
बातों को सुन-सुन के कातिल की तरह शर्मिदा हूँ ।
गर्दिश-ए-शर्मिंदगी को कैसे भगाऊँ जरा ।
ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?
सोचते है वे मैं लगता नाजूक सी कली हूँ ।
पर आँधियों के बीच मोम की तरह जली हूँ ।
जलती हुई मोम को कैसे बुझाऊं जरा ।
ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?
हालात मेरे ऐसे है जैसे खुन से लथपथ काया ।
देखकर फिर भी न खुली किसी की निर्भिक माया ।
उनके निर्भिक काया को कैसे समझाऊँ जरा ।
ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?
बड़ी जतन से इस तन-मन को किसी ने है पाला-पोसा ।
भले अरमान की खातिर किसी अपने वारिश-ए-कमान सौपा ।
उनके अरमान को कैसे भूल जाऊँ जरा ।
ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?
वो ठोकरे मारता रहा मैं ऊँची सीढियाँ चढ़ता गया ।
कंटिली झाड़ियों का आया कारवाँ फिर भी बढ़ता गया ।
कंटिली झाड़ियों में उन्हें उलझा सकता था जरा ।
ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?
लाख ठोकर खाया फिर भी न किया उनका विरोध ।
उनके ही कुशल कृत्यों से हमने किया नया शोध ।
मेरे ही शोध पर उनके घर जगमगाऐ जरा ।
ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?


02 March, 2016

जब पढ़ाई में मन न लगे तो क्या करें....



अगर पढ़ाई में मन नहीं लगता है तो ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है । आप धैर्य रखे, आप जैसे कई बच्चे है, जिनका पढ़ाई में मन नहीं लगता । यह सर्वविदित है कि ईश्वर जब जन्म देता है तो उसके कर्म क्षेत्र को भी निर्धारित कर देता है । हालांकि कोई यह नहीं देखना चाहता है कि बच्चे चाहते क्या हैं, क्या किसी ने प्यार से इसके बारे में जानने की कोई कोशिश की है ? घर-परिवार के लोग, यहाँ तक कि माँ-बाँप भी नहीं समझ पाते या नहीं समझना चाहते कि उनका बच्चा आखिर चाहता क्या है ? प्रथम दृष्टया तो अभिभावक या माता-पिता को यह तहकीकात करना चाहिए कि कहीं बच्चों किसी गलत की संगति में तो नहीं आ गया है, अगर इस तरह कुछ जानकारी प्राप्त होती है तो उसे आध्यात्मिक शिक्षा दे । तब उसे पाठ्यक्रमिक शिक्षा की ओर लाना चाहिए । अगर फिर भी पढ़ाई में मन नहीं लगता हो तो कुछ तो ऐसा होगा जिसमें बच्चों का मन लगता होगा या फिर जिसे करना उसे अच्छा लगता होगा जैसे खेलना, घूमना, एक्टिंग, मिमिक्री करना, पेंटिंग करना, गाना-बजाना इत्यादि । इनमें से कोई या कुछ और भी । सोचें और अपने मन का काम तलाशें । जल्दीबाजी में कुछ न करें । अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए । घर में जो प्रिय हो या जो आपके बात को अच्छी तरह से सुनता समझता हो, उससे इसके बारे में बात करना चाहिए । जो भी चीज अपने मन का लगे, उसी में पूरी तरह डूब कर आगे बढ़ने का प्रयास करें । आप जिस क्षेत्र में अच्छा करेंगे तो चमत्कारी उपलब्धियाँ देखने को मिल सकती हैं । आप साधारण से असाधारण बनने की ओर अग्रसर हो सकते है ।

26 February, 2016

पोमपोर की घटना पर कायराना हरकत



आप जो तस्वीर देख रहे है वह 24 फरवरी, 2016 के दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण की कटिंग है ।
      जिसमें 23 फरवरी को जम्मू के पोमपोर के एक इमारत में छिपे आतंकियों पर हुई कार्रवाई  का जिक्र है । साथ ही इस कटिंग में जो बातें पढिएगा उससे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएगा ।
      जी, हाँ दोस्तों, मैं उस बात का जिक्र कर रहा हूँ जिसमें हमारे भारतीय सेना जान जोखिम में डाकर सौ से ज्यादा लोगों को उस इमारत से बाहर निकाला जिसमें आतंकी छिपे थे । सेना ने आतंकियों को मार गिराया । उक्त कार्रवाई में हमारे जाबाज सैनिक भी शहीद हुए, लेकिन वहाँ के कुछेक नवयुवकों ने सैनिक बल पर पत्थर फेके साथ ही आसपास स्थित बहुत से मस्जिदों से पाकिस्तान के समर्थन में नारे भी लगाए गए ।
     वाह, यह कौन सा देश है, जिसके सैनिक आपके लिए जान देने के लिए तैयार रहे और आप उलटे उसे हतोत्साहित करें और पथवार करें । हमारे देश में इस तरह की घटना को कुछेक नवयुवकों की भ्रमित मानसिकता बताकर छोड़ दिया जाता है । मस्जिदों से सेना को हतोत्साहित करने वाले नारे लग रहे थे । क्या उसपर कोई कार्रवाई होगी ? होगी भी नहीं क्योंकि इस तरह की बातों को विचारों की अभिव्यक्ति कहा जाता है ।
      अगर बचाव में कोई सैनिक हवाई फायरिंग करता है और किसी नागरिक की मौत हो जाती है तब तो हमारे देश के ढपोरसंखी सेकुलर जमात के लोग छाती पीट-पीट कर विधवा विलाप करेंगे, क्योंकि वे उनके वोट बैंक है । वो देश के साथ कुछ भी करे सब माफ है । किसी राजनेता ने तो यहाँ तक कहा है कि सैनिक तो सीमा पर मरने के लिए जाते हैं । यह कोड़ा बकवास है । हाँलाकि यह बात सच है कि इंसान तो जन्म ही इसलिए लेता है कि उनका एक दिन मृत्यु जरूर होगा, लेकिन कायरों की भाँति नहीं, वीर शहीदों की भाँति। अगर किसी भी देश में सबसे ज्यादा विश्वास रहता है तो वह सरकार से ज्यादा सेना पर होता है । सेना बल किसी भी परिस्थिति में हमारे मदद के लिए तैयार रहता है अगर इसी तरह आतंकियों को महिमामंडित किया जाता रहा तो वह दिन भी दूर नहीं होगा जब पूरा भारतवर्ष आतंकियों को गढ़ बन जाएगा ।
     तभी मेरे मन से यही उद्गार उत्पन्न होता है ।
न हमें डर है मस्जिद के इन नारों से,
न हमें डर है तिरगे के बदले लहराने चाँद तारों से,
न डर है नेता जी के आरोप-प्रत्यारोप के वारों से,
हमें तो डर है देश में छिपे छद्म ढपोरसंखी गद्दारों से ।
                                                                                                                                           
हमें न नक्सलवाद प्यारा है और न हमें तेरे ढपोरसंखी सेकुलरवाद प्यारा है ।
हमारे रगों में जिसका बहता है खून, उस मातृभूमि का राष्ट्रवाद प्यारा है ।

                                    जय हिन्द
                                    जेपी हंस


05 January, 2016

आराम करो महाशय जी...

#कॉपी_पेस्ट
आराम करो  महाशय जी
गरम  रजाई को ओढ़ ।
समझ गए नहीं दे पाओगे
तुम जवाब मुँह तोड़ ।।
बर्दास्त नहीं अच्छे दिनों में
घुट घुट कर यूं जीना ।
आर्टिफीशियल लगता है
वो छप्पन इंची सीना  ।।
मरते जाएँ सैनिक अपने
देते रहे  यूं  शहादत ।
फर्क नहीं पड़ता तुम्हे
यह है तुम्हारी आदत
मंचो पर जब भी आते
झूठी हुंकार भरते हो ।
पता नहीं क्या है मन में
बस मन की बातें करते हो ।।
प्रेमपत्र तुमने भी भेजे
कर ली खूब मुलाकातें ।
तुमने हाथ मिलाया खूब
पर उसने मारी लातें  ।।
अब भी खून न खौला हो तो
फिर से एक दौरा कर लो ।
रह गया हो बाकी कुछ तो
फिर से अपनी छाती भर लो ।।
ट्विटर पर  हुंकार लो फिर से
शब्दों के तीर छोड़ .....।
समझ गए  नहीं दे पाओगे
तुम जवाब मुँह तोड़   ।।
                       -अज्ञात

साथी घर जाकर मत कहना...




पठानकोट .........
जब वो युद्ध में घायल हो जाता है तो अपने साथी से बोलता है :
“साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरी माता पूछे तो, जलता दीप बुझा देना!
इतने पर भी न समझे तो, दो आंसू तुम छलका देना!!"
“साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरी बहना पूछे तो, सूनी कलाईदिखला देना!
इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ देखा देना !!"
“साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो, मस्तक तुम झुका लेना!
इतने पर भी न समझे तो, मांग का सिन्दूर मिटा देना!!"
“साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरे पापा पूछे तो, हाथो को सहला देना!
इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना!!"
“साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो, सर उसका तुम सहला देना!
इतने पर भी ना समझे तो, सीने से उसको लगा लेना!!"
“साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरा भाई पूछे तो, खाली राह दिखा देना!
इतने पर भी ना समझे तो, सैनिक धर्म बता देना!!"
#जय_हिन्द
                                        -अज्ञात

पठानकोट कैम्प पर हमले के विरोध में देशभक्ति गीत

01 January, 2016

मेरा परिचय




गौरवशाली बिहार राज्य के जहानाबाद जिला (इससे पहले गया जिला कहलाता था) से कटकर सन् 1999 में बने अरवल जिला के करपी थाना अन्तर्गत दनियाला गाँव में हुआ । दनियाला गाँव तो करपी थाना में तीन-तीन है व भी सब सटा हुआ । मेरा गाँव पश्चिमी दनियाला या जिसे बड़की दनियाला कहते हैं । आबादी में सबसे छोटा लेकिन ज्यादा नौकरी और शिक्षित होने के कारण बड़की दनियाला कहलाता है । आज भी बड़की दनियाला और छोटकी दनियाला में confusion  हो जाता है । अब तो मेरा गाँव का नाम हलखोरी चक हो गया है । मेरे गाँव के सबसे पहले व्यक्ति स्व. हलखोरी सिंह थे । उन्हीं के संतान आज सभी गाँववासी है । बाहरी एक भी नहीं । सीधे कहें तो स्व. हलखोरी सिंह ही हमारे पूर्वज थे जिसने हमारे गाँव को बसाया था ।

      मेरा जन्म वर्ष का पुरा पता नहीं लेकिन माँ कहती है कि दीपावली के अगले दिन गाय-डाढ़ का समय था, उसी दिन मेरा जन्म हुआ था । चाचा और गाँव के कई लोग गाय-डाढ़ का मेला देखन के लिए जा रहे थे ।

      पहला क्लास से तीसरा क्लास तक अपने गाँव में टाट पर बैठकर पढ़ा । आगे अपने ननिहाल मसौढ़ी थाना कै दुधिचक में आ गया । वहां चौथा पढ़ा, पाँचवा नहीं सीधे हाई स्कूल पितवाँस में छठा से सातवाँ तक पढ़ा । तत्पश्चात् नौबतपुर थाना के पिपलावा गाँव में एक प्राईवेट स्कूल Bright Future Academy में आठवाँ, नवमां और दसवाँ क्लास में पढ़ा । यह स्कूल फूस और खपरैल का बिना मान्यता प्राप्त स्कूल था, लेकिन पढ़ाई में बहुत सख्त ।

      हाई स्कूल पास करने के बाद पटना आया, जहाँ स्कूल और ट्यूशन करके आगे की पढ़ाई जारी रखा । तत्पश्चात इन्टर पास किया । 2010 में दिल्ली नगर निगम में क्लर्क के पद पर नौकरी ज्वाईन किया । फिर 2014 में इनकम टैक्स पटना के अन्तर्गत झारखंड के जमशेदपुर में नौकरी की । वर्ष 2018 में पटना इनकम टैक्स में ट्रान्सफर हुआ । इस उपरान्त नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना से बी.ए (हिन्दी), एम.ए (हिन्दी) पास किया । आगे Phd की तैयारी है । वर्ष 2013 से ब्लॉगिंग कर कुछ न कुछ लिखता आ रहा हूँ । पूर्वी दिल्ली से प्रकाशित पूर्वालोक,  आयकर विभाग राँची से प्रकाशित आयकर जोहार, आयकर विभाग, पटना से प्रकाशित आयकर विहार, ऑनलाईन वेब पत्रिका पुष्पवाटिक टाईम्स, ब्लॉग-बुलेटिन, अनुभव एवं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाऐ तथा निरंतर साहित्यिक कार्य जारी है ।