“बहुत हेल्प हो रहा
है बाबू, बहुत, बड़े-बड़े घरों के लोग आ रहे हैं, जिसको जो बुझा रहा है हेल्प कर
रहे हैं.“ बुढ़ी सी दिखने वाली महिला ने कहा. यह किसी
उपन्यास या कथा की शुरूआत नहीं, बल्कि एक अग्निकांड का आंखों देखी वर्णन है. मेरे
कार्यालय में शनिवार और रविवार को छुट्टी रहती है. मेरे बगल के बस्ती में आग लग
गया था. शनिवार को मैं देखने के लिए पहुँचा. यह जगह मेरे फ्लैट से नजदिक था. वहाँ
पहुँचने पर देखा कि एक नाले के बगल में झोपड़-पट्टी था, जहाँ करीब 25 परिवार रहते थे.
21 दिसम्बर, 2017 को अपराह्न तीन बजे एक पत्नी का अपने पति से झगड़ा हो गया था.
इसलिए उस औरत ने केरोसिन तेल छिड़कर आग लगी ली. नीचे चटाई होने के कारण घर आग पूरे
घर सहित बस्ती में फैल गई. घर पर सोयी एक दिव्यांग महिला की जलने के मौत हो गई.
वही आत्मदाह के लिए खुद को आग लगाने वाली महिला और उसके चार वर्ष के बच्चे को
गम्भीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती किया गया है.
मैं घटना के तीन-चार दिन
बाद पहुँचा था. इस दिन सुबह में अखबार की एक पूरी पृष्ठ में इसी अग्निकांड का
वर्णन था. मैं भी वहाँ जाकर देखा. बच्चे इन खबरों से बेखबर कपड़ो के ढेर पर
उछल-कुद कर रहा था. कोई पुराने कपड़ा का ढेर रख कर गया था, पहनने के लिए, बच्चे
इसी पर खेल रहे थे.
हमारे शहर में जिस तरीके
से गाड़ियों की रफ्तार चलती है. उससे कम नहीं थे मदद करने वालों की रफ्तार. जले
हुए घर के परिवार को एक-एक चौकी सोने के लिए दिया गया था. कम्बल भी घटना के दिन
बँट चुके थे. आज भी कम्बल, खाने के पैकेट, ब्रेड, कोई महिलाओं को कपड़े, कोई
बच्चों को बिस्कुट के पैकेट दिये जा रहे थे. बहुत से बच्चों को खुशी-खुशी बिस्कुट
और ब्रेड खाते देखा. जले हुए स्थान को साफ करने में बहुत से संगठन मदद कर रहें थे.
अब उन स्थानों पर बांस और फटी से फिर सी घर बन रहे थें. प्रत्येक पार्टी के सदस्य
पहुँच कर राहत सामग्री, खाद्य- सामग्रियों के साथ बर्तन दे रहे थे. कई सिख युवकों
की टोली ने सभी के लिए खाने की व्यवस्था कर रहा था. बड़े-बड़े घर के महिलाएं,
लड़कियाँ पुराने कपड़े और खाने के चीजों को दे रही थी. जब युवकों की टोली से खाने के
लिए लोगों के एकजुट कर रहा था. तभी बुढ़ी महिला ने कहाँ बाबू यहाँ तो अभी शाम को
किसी ने पुलाव-पुरी दी है सो अभी रखा टब में.
मुझे आज बहुत शुकुन लगा.
अक्सर अखबार में गरीबी-अमीरी के बीच खाईयां, लोगों के बीच झगड़े की खबर पढ़ते हैं,
लेकिन जब बात मानवता की आती है तो सभी एकजुट होकर मदद करते हैं. मुझे देखकर ऐसा
लगा कि यहाँ मदद करने वालों का मेला लगा हुआ है. मतबल कि आज भी हमारे देश और समाज
में दया का भावना में कोई कमी नहीं आई है. धन्य है मेरा देश और धन्य है हमारे
भारतवासी.