13 June, 2016
14 May, 2016
चक्कर @ का
चक्कर कई तरह के होते हैं, जैसे चक्कर खाना, चक्कर खाकर गिर जाना, दफ्तर का चक्कर लगाना, किसी अधिकारी का चक्कर लगाना या पूजा-पाठ के समय देवी-देवताओं का परिक्रमा (चक्कर) लगाना, किसी मन्दिर का परिक्रमा (चक्कर) लगाना । लेकिन इन दिनों बिहार में @ का चक्कर कुछ छात्र-छात्राओं को लगाना पड़ रहा है । दरअसल बात यह है कि बिहार सरकार ने मैट्रिक के रजिस्ट्रेशन नौवी वर्ग से ही शुरू कर दिया है । एक तो जो बच्चे दसवीं में जाने वाले है उन्हें अभी तक नौवीं की परीक्षा नहीं हुआ है । दूसरी इनके मैट्रिक के रजिस्ट्रेशन नौवी से शुरू हो गई है । खैर, रजिस्ट्रेशन कोई बड़ी बात नहीं हैं वो आज या कल होना ही था या नौवीं में हो या दसवीं में, पर खास बात यह है कि नौवी क्लास में होने वाली रजिस्ट्रेशन में व्यक्तिगत जानकारी के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के बैंक खाता संख्या, आई.एफ.एस.सी कोड, मोबाईल नम्बर और ई-मेल आई.डी की मांग की जा रही है । जब तक ये सब उपलब्ध नहीं रहेगें । रजिस्ट्रेशन होगा ही नहीं । इतना तो आप भी जानते है कि बैंक खाता तो ठीक है, खुलवाया जा सकता है, प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अंतर्गत भी खुलवाया जा सकता है साथ ही साथ मोबाईल नम्बर तो हर घर के व्यक्ति-व्यक्ति के पास मौजूद है, भले ही वो चाहे रिक्सा चलाने वाला हो या खोमचा बेचने वाला, पर भला ई-मेल आई.डी कहाँ से लायेंगे । बिहार सरकार के नौवी के छात्र भला ई-मेल आई.डी बनाना कैसे जाने वो भी देहाती क्षेत्र के रहने वाले । शहर के रहने वाले तो ई-मेल आई.डी क्या वो तो दिन भर फेसबुक, ट्विटर, मूषक, वाट्सएप्प की सैर करते रहते हैं । इसी बीच मुझे अपने गाँव से फोन आया । मेरा गाँव देहाती क्षेत्र से संबंध रखता है । बताया गया कि नौवी क्लास में ऑनलाईन फार्म भरा जा रहा है जिसमें ई-मेल आई.डी की मांग की जा रही है । जब उन्हें ई-मेल आई.डी बनाकर मैसेज किया । पहले तो उन्हें मैसेज निकालना नहीं आ रहा था, जब मैसेज निकालना बताया तो चक्कर आ गया @ का । वो @ को जीरो पढ़ते थे । मैंने बार-बार बताया कि यह रोमन लिपि- अंग्रेजी का विशेष चिन्ह है । कम्प्युटर की जानकारी रखने वाले ही जानते है । उन्होंने बताया कि इतने छोटे का इतना लम्बा पढ़ा जाता है, पहली बार सुना है । दरअसल @ को ‘एट दी रेट’ पढ़ा जाता है । खैर नौवी के बच्चे कम्प्युटर सीखे या न सीखे @ चक्कर पड़ ही गया और इसी बहाने थोड़ा कम्प्युटर का ज्ञान भी हो गया ।
11 May, 2016
एक और निर्भया...
वक्त बदला, सत्ता बदली,
न बदला कोई आचार-व्यवहार ।
पहले दिल्ली फिर केरल,
नारी शक्ति हुई शर्मसार ।
अन्तर सिर्फ इतना रह गया,
सत्ता और तंत्र का ।
नहीं कोई काम आया,
बदले सरकार के मंत्र का ।
कही सोशलिस्ट, कही कम्युनिस्ट,
कही संघ की सरकार कहते ।
जाति, धर्म की ठेकेदारी देखकर,
मिडिया भी उफान भरते ।
पार्टी-पोल्टिस, पुलिस, पडोसी,
वक्त देखकर दंभ भरते ।
बारी आती जब क्रांति की,
शांति की कहानी गढ़ते ।
न कोई यहाँ सोशलिस्ट,
कम्युनिस्ट, संघी के पंख है ।
मानो तो मानो मेरी बात मानो,
सबके सब ढपोरशंख है ।
सभ्य, शिक्षित प्रांत में कैसी,
दरिंदगी की कोमल काया ।
पशु भी इतना निर्मम न होती,
रहती उनकी हृदय में दया ।
दरिंदों का न होता जाति, पंथ,
न रहती कोई हृदय में माया ।
कितने निर्भया ने जान गवाई,
हमने अबतक क्या कर पाया ।
जागो नारी पंथ आक्रोश भरो,
जगाओ लहू में चिंगारी ।
कोई न पर पुरुष छूं सके ।
न बन सके कोई व्याभिचारी ।
लिंग भेद का मर्म समझकर,
मत पहने रहो तुम चूड़ी ।
दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनो,
ताकि सब बनाये रखे कुछ दूरी ।
-जयप्रकाश नारायण उर्फ जेपी हंस
न बदला कोई आचार-व्यवहार ।
पहले दिल्ली फिर केरल,
नारी शक्ति हुई शर्मसार ।
अन्तर सिर्फ इतना रह गया,
सत्ता और तंत्र का ।
नहीं कोई काम आया,
बदले सरकार के मंत्र का ।
कही सोशलिस्ट, कही कम्युनिस्ट,
कही संघ की सरकार कहते ।
जाति, धर्म की ठेकेदारी देखकर,
मिडिया भी उफान भरते ।
पार्टी-पोल्टिस, पुलिस, पडोसी,
वक्त देखकर दंभ भरते ।
बारी आती जब क्रांति की,
शांति की कहानी गढ़ते ।
न कोई यहाँ सोशलिस्ट,
कम्युनिस्ट, संघी के पंख है ।
मानो तो मानो मेरी बात मानो,
सबके सब ढपोरशंख है ।
सभ्य, शिक्षित प्रांत में कैसी,
दरिंदगी की कोमल काया ।
पशु भी इतना निर्मम न होती,
रहती उनकी हृदय में दया ।
दरिंदों का न होता जाति, पंथ,
न रहती कोई हृदय में माया ।
कितने निर्भया ने जान गवाई,
हमने अबतक क्या कर पाया ।
जागो नारी पंथ आक्रोश भरो,
जगाओ लहू में चिंगारी ।
कोई न पर पुरुष छूं सके ।
न बन सके कोई व्याभिचारी ।
लिंग भेद का मर्म समझकर,
मत पहने रहो तुम चूड़ी ।
दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनो,
ताकि सब बनाये रखे कुछ दूरी ।
-जयप्रकाश नारायण उर्फ जेपी हंस
03 April, 2016
प्रत्यूषा बनर्जी पर एक गजल।
जमशेदपुर शहर के मशहूर टीवी कलाकार प्रत्यूषा बनर्जी का असमय गुजरने पर जमशेदपुर शहर में रहने वाले जेपी हंस की कलम भला कैसे चुप रह सकता । प्रस्तुत है एक गजल।
कम उम्र की जिंदगी मे कोई दीवाना न होता।काश ये जिंदगी बीच छोड़कर जाना न होता।
बहुत काँटे है जिंदगी के इस सफर में।
हर कांटों पर गुजरना सबको गवारा न होता।
वादे किये थे बहुत जहां सवारने को ।
इस तरह छोड़ने से उजाला न होता।।
चाहने वालों के दिल पर चर्चा है आपकी।
काश इनके सपनों को कोई सवांरा होता।
गम छाए है बहुत इस शहर में।
काश दुबारा जन्म लेकर यहाँ आना होता।
-जेपी हंस
बहुत काँटे है जिंदगी के इस सफर में।
हर कांटों पर गुजरना सबको गवारा न होता।
वादे किये थे बहुत जहां सवारने को ।
इस तरह छोड़ने से उजाला न होता।।
चाहने वालों के दिल पर चर्चा है आपकी।
काश इनके सपनों को कोई सवांरा होता।
गम छाए है बहुत इस शहर में।
काश दुबारा जन्म लेकर यहाँ आना होता।
-जेपी हंस
प्रत्यूषा बनर्जी से एक सवाल
एक अप्रैल को बालिका वधु में आनंदी के नाम से हर घर मे छाने वाली प्रत्यूषा बनर्जी ने आत्महत्या कर अपनी जिंदगी समाप्त कर ली। प्रत्यूषा जमशेदपुर शहर के सोनारी के रहने वाली थी। मैं भी प्रत्यूषा के आवास से चंद कदमो की दूरी पर डेढ़ साल रहा । अभी भी जमशेदपुर मे ही हूँ ।
प्रत्यूषा की आत्महत्या पर इनके चाहने वाले बस एक ही लब्ज कह रहे है।
प्रत्यूषा की आत्महत्या पर इनके चाहने वाले बस एक ही लब्ज कह रहे है।
"हमें गम है शिकवे भी है,हजारों उन परवानो से।
कैसे बनू फैन उनके जो छोड़ चले जाते है जमाने से।
कैसे बनू फैन उनके जो छोड़ चले जाते है जमाने से।
23 March, 2016
हमारा नया वर्ष आया है ।
आत्मीयता का विश्वास लेकर ।
मधुरता का पैगाम लेकर ।
दरिद्रता का अन्न लेकर ।
आज धरा पर आया है ।
हमारा नया वर्ष आया है ।
नवजीवन
में मुस्कुराहट लेकर ।
खिले
मन सा सुमन लेकर ।
वनिता
का सिंदूर लेकर ।
भाई-भाई
का प्रेम लेकर ।
आज
धरा पर आया है ।
हमारा
नया वर्ष आया है ।
विषम समाज की समता लेकर ।
दीर्घायू जनतंत्र की कामना लेकर ।
झगड़े-फसाद का कवच लेकर ।
अक्षय भंडार का वसुंधरा लेकर ।
आज धरा पर आया है ।
हमारा नया वर्ष आया है ।
नव
रश्मि में उजाला लेकर ।
निर्बल
का निराकरण लेकर ।
धवल
नवल सा प्रभात लेकर ।
चेहरे
का चमकी मुस्कान लेकर ।
आज
धरा पर आया है ।
हमारा
नया वर्ष आया है ।
सुरक्षा का सुदृढ़ आधार लेकर ।
मधुर बंधुत्व का विस्तार लेकर ।
आतंकी हमले से मुक्ति का प्रचार लेकर ।
अमन-चैन का उपहार लेकर ।
आज धरा पर आया है ।
हमारा नया वर्ष आया है ।
-जेपी हंस
20 March, 2016
होली आई रे होली आई ।
होली आई रे होली आई ।
पहला होली उनका संग मनाई।
जो गिर पड़े है पउआ चढ़ाई।
पकड़ के उनका ऐसा नली मे गिराई।
जिसका गंध कोई न सह पाई।
होली आई रे होली आई ।
दूजे होली उनका संग मनाई।
जो फ़ूहड़ फ़ूहड़ दिन-रात गाना बजाई।
बहू-बेटी देखकर सीटी बजाई।
पकड़ के उनका ऐसा बंदर बनाई।
जिसका रूप मां-बाप न पहचान पाई।
होली आई रे होली आई ।
तीजे होली उनका संग मनाई।
जो रंग के नाम पर करते है लड़ाई।
पकड़ के उनका सतरंगी बनाई।
सतरंगी रूप मे आब समझ जाइ।
होली आई रे होली आई ।
चौथे होली उनका संग मनाई।
जिनका आपसे कभी नाता न रहाई।
पकड़ के उनका रंग-अबीर लगाई।
प्रेम,सद्भाव से प्रीत बधाई।
होली आई रे होली आई ।
पंचम होली उनका संग मनाई।
जो राग-द्वेष छोड़ गले लगाई।
पकड़ के उनका रंगोली बनाई।
जिसके प्रेम से भेदभाव मिट जाइ।
होली आई रे होली आई ।
-- जेपी हंस
पहला होली उनका संग मनाई।
जो गिर पड़े है पउआ चढ़ाई।
पकड़ के उनका ऐसा नली मे गिराई।
जिसका गंध कोई न सह पाई।
होली आई रे होली आई ।
दूजे होली उनका संग मनाई।
जो फ़ूहड़ फ़ूहड़ दिन-रात गाना बजाई।
बहू-बेटी देखकर सीटी बजाई।
पकड़ के उनका ऐसा बंदर बनाई।
जिसका रूप मां-बाप न पहचान पाई।
होली आई रे होली आई ।
तीजे होली उनका संग मनाई।
जो रंग के नाम पर करते है लड़ाई।
पकड़ के उनका सतरंगी बनाई।
सतरंगी रूप मे आब समझ जाइ।
होली आई रे होली आई ।
चौथे होली उनका संग मनाई।
जिनका आपसे कभी नाता न रहाई।
पकड़ के उनका रंग-अबीर लगाई।
प्रेम,सद्भाव से प्रीत बधाई।
होली आई रे होली आई ।
पंचम होली उनका संग मनाई।
जो राग-द्वेष छोड़ गले लगाई।
पकड़ के उनका रंगोली बनाई।
जिसके प्रेम से भेदभाव मिट जाइ।
होली आई रे होली आई ।
-- जेपी हंस
Subscribe to:
Posts (Atom)