26 September, 2020
देश में अब रोज़गार नहीं है।
23 September, 2020
बिहार की नई शारदा सिन्हा- नेहा सिंह राठौड़
भोजपुरी महफिल का इतिहासः-
भोजपुरी जगत हमेशा से ही समृद्ध लोक गीतों
की महफिल रही है. यह महफिल की शुरुआत भिखारी ठाकुर से शुरू होकर अनगिनत कलाकारों
के नाम सजाती हुई आगे बढ़ती है. भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी संस्कृति व साहित्य को एक नई पहचान
देन के साथ समाज में फैली कुरीतियों पर जमकर हल्ला बोला। विदेशिया, गबर-घिचोर
के साथ-साथ बेटी-वियोग और बेटी बेंचवा जैसे नाटकों के जरिये उन्होंने समाज में एक
नई चेतना फैलाई। बाल-विवाह, मजदूरी
के लिए पलायन और नशाखोरी जैसे मामलों पर उन्होने उस समय सवाल खड़े किए जब कोई इसके
ओर सोचना तो दूर बोलने को भी तैयार नही था।
इन्हीं कड़ी में 80 के दशक के मशहुर
लोक गीत गायिका शारदा सिन्हा ने भी भोजपुरी, मगही और मैथिली में पारम्परिक लोकगीत
के ऐसा नाम रोशन किया कि शादी-विवाह, छठ पूजा और अन्य धार्मिक पूजन में इनके गीत आज
भी गाये जाते हैं.
बिहार की नई शारदा सिन्हा- नेहा सिंह
राठौड़
इन
लोक कलाकारों का क्रम लगातार जारी है. इन्हीं नामों में एक चर्चित नाम जुड़ा है-
नेहा सिंह राठौर, नेहा सिंह राठौर का जन्म बिहार के भभुआ (कैमुर) के रामगढ़ में
जलदहा गाँव में हुआ था. इनके पिता जी का नाम श्री रमेश सिंह है. इनकी प्रारम्भिक
पढ़ाई अपने जिला में हुआ तत्पश्चात उच्च शिक्षा के लिए कानपुर की ओर प्रस्थान किया
जहाँ वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रेज्युशन पास किया. वर्तमान में कोलकाता में
रहकर संगीत की शिक्षा ले रही है. नेहा ने अपना पहला गीत शारदा सिन्हा की लोकगीत को
गाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, जिसके बदौलत आज सोशल मीडिया पर स्टार बन चुकी
हैं. इसके बोल है-
पटना से बैदा बुलाई दा नजारा गईनी
गुईया.
छोटकी ननदिया है, बड़की सौतनिया....
इसी लोकगीत के बाद नेहा सिंह राठौर ने कोरोना, अप्रवासी मजदूर, बेरोजगारी, दहेज प्रथा, बाल विवाह, मतदान जागरूकता, चुनावी गीत, बाढ़, छात्रों का दर्द किसान का दर्द और अन्य समसमायिक घटनाओं पर लोकगीत के माध्यम से अपनी आवाज उठा रही है. जिससे सोशल मीडिया पर इनके प्रशंसक बढ़कर करीब तीन मिलियन हो गए हैं. इनके कुछ गीतों को दो मिलियन से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं. जो इस बात का प्रमाण है कि भोजपुरी गीतों की अश्लीलता भोजपुरी गीत-गायन परंपरा का स्वाभाविक गुण न होकर एक थोपा हुआ कल्चर है.
भोजपुरी गीतों में अश्लीलता की बाते
गाहे-बेगाहे हर मंच से होती है. इस संबंध में बहुत सारे कलाकारों पर निशाने साधे
जाते हैं. भोजपुरी गीत और कलाकारों के संबंध में The Lallantop लिखता है-
यहाँ यह समझने
की बात है कि लोक-कला वो नहीं है जो लोक की आड़ में अपनी रोटियां सेंकी जाए और लोक
की संस्कृति विकृत हो, बल्कि लोककला तो वो है, जो लोक के पक्ष को कला के माध्यम से
फलक तक ले जाए और लोक की छवि को बेहतर बनाते हुए उसे समृद्ध करे. ऐसे में जो
व्यक्ति अपनी कला की माध्यम से ये करने का बीड़ा उठाता है, वही असली लोक-कलाकार
है.
आज नेहा सिंह राठौर भोजपुरी लोकगीत को बदनामी
की दाग को मिटाने आ गई है..यह लोकगीतों के माध्यम से लोक की आवाज को आवाम तक बखुबी
से पहुँच रहा है और लोक संगीत की साफ-सुथरी छवि को और समृद्ध करने का कार्य कर रही
है. इनका भाषा भोजपुरी, मगही और मैथिली है.
कोरोना महामारी के कारण जब लॉकडाउन हुआ
और मजदूरों का एक शहर से दूसरे शहर हजारों किलोमीटर पैदल जाना हुआ तो नेहा सिंह
गाती है...
“कोरोना महामारी के चलते मजदूर शहर से पैदले आपन गाँव चल
दिहल बाडन...
उनकर शरीर थक
गईल बा चलत-चलत आ मन रोवत बा...”
17 सिंतबर को जब पीएम मोदी का जन्मदिन था उस दिन देश में कई जगह राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के रूप में मनाया गया।
इस क्रम में नेहा सिंह राठौर ने भी भोजपुरी में एक गीत
गाकर बेरोजगारी के मुद्दे को उठाया। इस दौरान नेहा ने कुछ समय अंतराल पर अलग-अलग
वीडियो पोस्ट किया। इसमें वह देश में बेरोजगारी की समस्या को उठाती दिखीं।
‘अच्छा दिन आई गईले हो…’,
‘हाय-हाय रे गवर्नमेंट तोहार काम देख ला,
बबुआ घूमेलन नाकाम देख ला…’
और ‘ बेरोजगारी के आलम में थरिया पीटत बानी, बिहार से बेरोजगार बोलत बानी…’ जैसे शीर्षक के गाने गाए।
मोदी
सरकार ने तमाम विरोध के बावजूद कृषि बिल को संसद में पारित करवा लिया तो नेहा सिंह
लिखती है- मैंने हमेशा कहानियों में यही पढ़ा है कि एक गरीब किसान था. जाने वो दिन
कब आएगा जब कहानियों में एक अमीर किसान था जैसी बातें लिखी जाएंगी.
किसान
पर इनके नए भोजपुरी गीत के बोल है-
भादो
आषाढ़ जाहे जेठ के घाम, केहूं बुझे न कोहीं,
29 August, 2020
ट्विटर पर सहायक प्रोफेसर अभ्यर्थियों ने परीक्षा के लिए अभियान चलाया...
वर्तमान समय में अपने
बातों को सरकार तथा मिडिया तक पहुँचाने में सोशल मिडिया की भूमिका सराहनीय रही है.
बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा निकलने वाली सहायक प्रोफेसर, जिसका
परिनियम राजभवन द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है. हालांकि परिनियम विवादों में आने
के कारण फिर से संशोधन हेतु राजभवन जा चुका है ।
नेट/जेआरएफ संघ द्वारा परीक्षा द्वारा भर्ती की मांग को लेकर हैशटैग #BiharAssistProfessorByExam द्वारा लगातार अभियान चलाया जा रहा है. इस दिशा में अपनी मांगों को लेकर ट्विटर पर अभियान चलाया. इसमें बिहार ट्रेडिंग में यह टॉप रहा. पिछले कुछ दिनों पहले इस संघ ने मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, उपमुख्यमंत्री, राज्यपाल, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, पप्पु यादव, चिराग पासवान, और उपेन्द्र कुशवाहा को मेल करके अपनी मांगों को लेकर गुहार लगाई थी. इससे पहले इस संघ के सदस्यों द्वारा इन सभी नेताओं से मिल कर प्रतिवेदन सौप चुके हैं और अभी भी इन सभी से मिलकर अपनी मांगों को रख रहे हैं.
ट्विटर पर अभियान का नेतृत्व कर रहे डॉ राजेश ठाकुर ने लिखा है-
#BiharAsstProfessorByExam #Only_writtenExam
— DrRajesh Thakur (@thakurrajesh007) August 28, 2020
घमंड में खोई हुई #नीतीश सरकार ने कान और आंख दोनों बंद कर लिया है। हमारी मांग केवल #लिखित #परीक्षा से हो भर्ती #asst #professor@NitishKumar@SushilModi @pappuyadavjapl @ABPNews @DainikBhaskar
आखिर ज्यादातर राज्य जब लिखित परीक्षा के जरिये असिस्टेंट प्रोफेसर्स की भर्ती करती है , तो बिहार में क्यूँ नही?
— DrRajesh Thakur (@thakurrajesh007) August 28, 2020
"डिग्री लाओ नौकरी पाओ" ये पालिसी नही चलेगी@NitishKumar @SushilModi @pappuyadavjapl @iChiragPaswan @ZeeNewsBihar
एक सदस्य हरिशंकर कुमार लिखते है कि
आदरणीय @NitishKumar जी NET/JRF/और Ph.D के अभ्यर्थियों की मांग है कि न्यू एजुकेशन पॉलिसी के तहत बिहारी बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए गुणवत्तापूर्ण परीक्षा के माध्यम से बिहार Assistant Professor की भर्ती प्रक्रिया पूर्ण करवाई जाए। जिससे बिहार के छात्रों का भविष्य बन सके।🙏
— Hari Shankar (Transforming India) (@Hariskhumanity) August 27, 2020
एक अन्य सदस्य प्रिंस कुमार पेपर की कटिंग, जिसमें परीक्षा द्वारा भर्ती की मांग लिखा है उसकों टैंग करते हैं.
कई सदस्य परीक्षा से भर्ती को लेकर मीम भी अपनी ट्विट में टैग कर रहे हैं.
इसी तरह अन्य सदस्य कन्हैया झा, प्रिया वर्मा, निरज, सौरभ कुमार, अमृत्यंजय ओझा, विवेक विशाल, राज अमन, भीम सिंह चंदेल, अभिषेक कुमार, प्रिंस कुमार, मणिष कुमार भारदवाज, प्रभाकर, नारायण झा और ब्लॉगर जेपी हंस ने भी ट्विटर पर अभियान चलाया और आगे भी चलाने की तैयारी कर ली है..
हमारे ब्लॉग को पढ़ने के लिए आपका स्वागत। हमारा ब्लॉग कैसा लगा ? अपनी कीमती प्रतिक्रिया देकर हौसला बढ़ाये और आगे शेयर करना न भूले।
28 August, 2020
बिहार सहायक प्रोफेसर नियुक्ति प्रक्रिया से नेट/जेआरएफ अभ्यर्थियों की नाराजगी.
राजभवन पटना द्वारा सहायक प्राध्यापक नियुक्ति परिनियम- 2020 निर्गत कर दिया गया है जिसे प्रायः यू. जी. सी. रेग्यूलेशन - 2018 के आधार पर कहा जा रहा है । पड़ताल करने और समझने की आवश्यकता है कि यह नियम कितना कारगर साबित हो सकता है ! इस परिनियम से कुशल और योग्य प्राध्यापकों की नियुक्ति नहीं करने की ओछी मानसिकता साफ-साफ झलक रहा है ।
सरकार और शिक्षा विभाग को इस परिनियम पर पुनर्विचार कर छात्र-छात्राओं के भविष्य के लिए उचित कदम उठाकर शिक्षा के क्षेत्रों में उचित प्रयास आवश्यक है । बी. पी. एस. सी. 2014 के अनुसार अंको का विभाजन और नियम एकदम सटिक था, जो इसमे भी लागू होना चाहिए । यदि नियम बदलने की जरूरत पड़ी तो स्क्रिनिंग के लिए परीक्षा भी आवश्यक कर देना चाहिए । राजभवन के प्राध्यापक नियुक्ति परिनियम इस प्रकार से कहीँ पर सफल नहीं है, बल्कि कुशल और मेधावी छात्र-छात्राओं के पात्रता को समाप्त कर, शिक्षा के क्षेत्र में गिरावट लाने की साजिश है, जिस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है ।
17 August, 2020
बिहार सरकार से नेट/जेआरएफ/पीएचडी उतीर्ण छात्रों की मांग...
- फोटोः गूगल से संभार.
01 August, 2020
फ्रैंडशिप डे FRIENDSHIP DAY एक नजर में...
दोस्ती परिचय-
जब हम जन्म लेते हैं तब से ही किसी न किसी रिश्तों की बागडोर में बंधे चले आते
हैं या हम यों कहे कि हम परिवार में विभिन्न रिश्तों की डोर से बंधे होते हैं
लेकिन पारिवारिक रिश्तों के अलावा एक और महत्वपूर्ण रिश्ता हमारे जीवन में काफी
महत्व रखता हैं और वो रिश्ता होता है दोस्ती अथवा मित्र का रिश्ता, जो विश्वास व
सहयोग के आधार पर टिका होता है, जो हर सुख-दुख के साथी होता है... ये सभी रिश्ते
हमारे समाज में सरोकार बनाये रखने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है...
मित्र,
सखा, दोस्त, फ्रेंड, चाहे किसी भी नाम से पुकारा जाए, दोस्त की कोई एक परिभाषा हो
ही नहीं सकती... इंसान के दो प्रकार के दोस्त होते हैं... पहला वह जो बचपन से
दोस्त होता है, जिसके साथ वो बड़ा होता है और दूसरे प्रकार की दोस्ती वह होती है
जो इंसान को जन्म के बाद में होती है, मतलब स्कूल लाईफ, कॉलेज लाईफ में या
प्रोफेशनल लाईफ में हमें दोस्त मिलते हैं...
कुछ ऐसे भी दोस्त मिल जाते हैं जो कुछ समय
के लिए साथ निभाते हैं और कुछ ऐसे भी दोस्त मिलते हैं जो सारी जिंदगी हमारा साथ
निभाते हैं चाहे सुख हो या दुख वो हमारा कभी साथ नहीं छोड़ते... दोस्ती के बारे
में योहि नहीं कहा गया है कि जिसके जीवन में सच्चा दोस्त नहीं है, उनके जीवन
में सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है...
मोबाइल में रम्मी कैसे खेलते हैं उसकी जानकारी
दोस्ती क्यो?
सभी तरह के बंधन एवं संकीर्णताओं को तोड़कर
आपस में प्रेम, सम्मान और परस्पर सौहार्द बढ़ाने का संदेश देने वाले इस अनूठे
त्योहार की प्रासंगिकता आधुनिक समय में बढ़ती जा रही है, क्योंकि आज मानवीय
संवेदनाओं एवं आपसी रिश्तों की जमीन सूखती जा रही है, साथ ही रोजी-रोजगार के
भागम-भाग में घर से सैकड़ो किलोमीटर दूर, जहाँ अपने रिश्ते वाले नहीं होते हैं ।
ऐसे समय मे एक दूसरे से जुड़े रह कर जीवन को खुशहाल बनाना और दिल के जादुई
संवेदनाओं को जगाने का रिश्ता दोस्ती ही करती आ रही है...
दोस्ती खून का रिश्ता तो नहीं होती है लेकिन
उससे भी बढ़कर होती है... दोस्ती एक ऐसी चीज होती है जो हमारे हर अच्छे-बुरे काम
में हमारे साथ होती है और हम अपनी पर्सनल बातें हर किसी के सामने शेयर नहीं सकते
लेकिन दोस्त को हम बेझिझक अपने दिल की हर बात बता देते हैं और वह हर बार हमारी हर
बात पर हमारे साथ खड़ा होता है... वास्तव में मित्र उसे ही कहा जाता है, जिसके मन
में स्नेह की रसधार हो, स्वार्थ की जगह परमार्थ की भावना हो...ऐसे मित्र संसार में
बहुत दुर्लभ है.. जैसे कृष्ण और सुदामा और
राम और हनुमान...
“दोस्ती का मतलब एक प्यारा सा दिल,
जो कभी नफरत नहीं करता..
एक प्यारी मुस्कान, जो फीकी नहीं पड़ती,
एक एहसास जो कभी दुख नहीं देता,
और एक रिश्ता जो कभी खत्म नहीं होता..”
मोबाइल ऐप के साथ मुफ्त में रम्मी कैसे खेलें?
दोस्ती दिवस की शुरुआत:
मित्रता दिवस या दोस्ती दिवस या इसे
फ्रैंडशिप डे कहे, यह दो अनजान लोगों के पहचान को बताती है... यह अगस्त माह के
पहले रविवार को मनाया जाता है... सर्वप्रथम मित्रता दिवस 20 जुलाई, 1958 ई में
पराग्व में डॉ रमन आर्टिमियों द्वारा प्रस्तावित किया गया था.. दोस्ती के बारे में कहा
जाता है कि इंसान अपने परिवार, रिश्तेदारों को नहीं चुन सकता लेकिन वो अपने लिए
दोस्त चुन सकता है...
दुनिया के अलग-अलग देशों में इसे अलग-अलग
दिन मनाया जाता है... 27 अप्रैल 2011 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में 30
जुलाई को आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस के रूप में घोषित किया गया जबकि
भारत समेत अन्य देशों में इसे अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है...
जिंदगी के बाकी सभी रिश्तों के साथ हम पैदा
होते हैं पर दोस्ती ही एक मात्र रिश्ता है जिसे हम खुद बनाते हैं.. यह वह रिश्ता
है जो एक दूसरे की मदद के लिए वक्त-बेवक्त हाजिर रहते हैं और जिंदगी की तमाम
मुश्किलों से लड़ने की ताकत और हिम्मत हमें देते हैं..
एक सर्व प्रचलित
बाते हैं-
“दोस्ती कोई खोज नहीं होता,
दोस्ती किसी से हर रोज नहीं होती,
जिदंगी में मौजूदगी उनकी बेवजह नहीं होती,
क्योंकि पलकें आंखों पर कभी बोझ नहीं होती.”
1.
हमारी सबसे बेहतरीन किताब 100 दोस्तों के बराबर होती हैं लेकिन एक बढ़िया दोस्त एक लाइब्रेरी के बराबर होता है- डॉ अब्दुल कलाम
2.
दोस्ती एक बेहतर ही सुखद
जिम्मेदारी है, अवसर नहीं- खलील जिब्रान
3.
जीवन का सबसे बड़ा उपहार
दोस्ती है और यह मुझे सौभाग्य से मिलता है- ह्यावर्ट हम्फ्री
4.
सच्चा दोस्त वहीं होता है
जो तब हमारा साथ देता है जब सब साथ छोड़ देते हैं.
5.
मूर्ख मित्र से बुद्धिमान
शत्रु हर स्थिति में अच्छा होता है.
6.
ज्ञानवान मित्र ही जीवन का
सबसे बड़ा वरदान है.
7.
मित्र वे दुर्लभ लोग होतें
हैं, जो हमारा हालचाल पूछते हैं और उतर सुनने को रूकते भी है.
8.
सच्चा मित्र वह है जो दर्पण
की तरह तुम्हारें दोषोंको तुम्हें दिखाए, जो तुम्हारें अवगुणों को गुण बताए वह तो
खुशामदी है.
9.
तुम्हारा अपना व्यवहार ही
शत्रु अथवा मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है.
10.
अपने मित्र को एकात में
नसीहत दो, लेकिन प्रशंसा खुलेआम करों.
11.
मित्रता करने में धैर्य से काम लो, किंतु जब
मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और दृढ़ होकर निभाओ.
12.
दोस्त वो होते हैं, जो हर
समय अपने दोस्त का साथ निभाते है, चाहे दोस्त किसी भी परिस्थिति में हो..
13.
आप भले ही दुनिया की सारी
दौलत लगा लो आप सच्ची दोस्ती नहीं खरीद सकते.. पर जिसके पास सच्चा दोस्त है, वो
दुनिया का सबसे अमीर इंसान है.
14.
विदेश में विद्या मित्र
होता है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगी का मित्र औषधि और मृतक का मित्र धर्म
होता है.
15.
सच्चे मित्र हीरे की तरह
कीमती और दूर्लभ होतें है, झूठे मित्र पतझड़ की पत्तियों की तरह हर कही मिल जाते
हैं.
4 Steps To Play Rummy on Indian Websites For Extra Income
10 May, 2020
मजदूरों के मौत के दोषी
नमस्कार दोस्तो, कोरोना जैसे महामारी के दौर में हमारी देश की
अर्थव्यवस्था भले ही पटरी से बाहर हो गया हो पर देश की आम मजदूर पटरियों पर आ गया
है. तभी तो 16 मजदूरों की मौत पटरी के नीचे आने से हो गयी. मतलब ये लोग ट्रेन पर
नहीं चढ़ पाये लेकिन ट्रेन इन पर चढ़ गई.
अब प्रश्न उठता है कि इनके मौत के लिए कौन जिम्मेवार है ? सरकार के बारे में आप सोच रहे हैं तो सरकार तो बिल्कुल भी
नहीं, सरकार ने तो इनके लिए बस और ट्रेन शुरू कर चुकी थी.. यहाँ तक की रोड, ट्रेन
की पटरी और सड़क की पगडंडियों को भी खोल दिया गया था.. अब इनको केवल पुलिस के डंडो
से बचकर आना था... अब इनमें सरकार का क्या दोष ? वो भला हो सरकार का जिसने इतनी तंगहाली
अर्थव्यवस्था में ट्रेन से आये मजदूरों से 600-700 रूपये ट्रेन भाड़ा लेकर मरने
वाले को पाँच-पाँच लाख रुपये दे रही है.. जिसका खर्चा सरकार दारू बेचकर निकाल रही
है फिर पर कुछ लोग सरकार को ही दोष पर दोष दिये जा रही है...
तो क्या आपको लगता है कि इसके लिए मिडिया दोषी है ? नहीं, जी. बिल्कुल भी नही... हमारी मिडिया तो देशभक्त
मिडिया है, जिनको पाकिस्तान की भुखमरी, बदहाली, तंगहाली दिखाई देती है वो हमारे
देश के भुखमरी, बदहाली, तंगहाली, मजदूरों का पलायन और वो लोग जो हजारों किलोमीटर पटरियों
पर, कुछ सड़क की पगडंडियों पर तो कुछ साईकिल से चलकर अपने घर पहुँच रहे हैं,
उन्हें दिखाकर अपनी राष्ट्र भक्ति पर ऊगली उठाना थोड़े ही है.. हमारी मिडिया
राष्ट्रवादी मिडिया है वो इन खबरों पर डिबेट कर अपनी राष्ट्र भक्ति कैसे भूल सकती
है? भला मजदूरों को कोई धर्म होता है, जिनको अपने चैनल पर डिबेट कराये, उनके हालात को दिखाये..
तो क्या इसके लिए कोरोना जैसी महामारी जिम्मेवार है? न, वो भी नहीं । भला
कोरोना मजदूरों को क्यों मारे ? मजदूरों को मारने
के लिए यहाँ पहले से ही सैकड़ों वायरस मौजूद है, तभी तो हमेशा मजदूरों का ही शोषण,
दोहन और मरना होता है... कभी भूख से, प्यास से, पैदल चलने से, ट्रक से कुचलकर,
ट्रेन से कटकर, कानूनों से दबकर, सेठों के अत्याचारों से परेशान होकर, इनको मारने
के लिए और कई वायरस है ही तो कोरोना क्यों मारे ?
एक बार हमारी सरकार ने कहाँ था कि हमारा सपना है कि हवाई चप्पल पहनने वाला हवाई जहाज पर घुमे । अब जब सरकार का ही सपना पूरा नहीं हुआ तो भला मजदूरों का सपना कैसे पूरा हो सकता है ? हालाकि मजदूरों के हवाई चप्पल अभी भी पटरी पर पड़े हैं, सरकार चाहे तो पर उन्हें मरणोपरान्त सम्मान दे सकती है...जय भारत, जय भारती....
-जेपी
हंस