पुस की कुँहरे भरी सुबह ।
एक अनजान बालक से मिला
।
आते ही उसने,
सादर प्रणाम किया ।
था वह बेहद खुश ।
लेकिन मैं सकुचाया ।
फिर भी अपनी संस्कार
समझकर ।
हमने अभिवादन स्वीकार
किया ।
अनजान बालक को देखकर ।
मन में हिलोड़ पैदा
होने लगा ।
हिलोड़ भी ऐसी, जो थी
काफी बेजोड़ ।
सोचा-खैर छोड़ो
अपना कार्य करना था
सो अपने कार्य में लगा
मैने सोचा-
आखिर होगा इसी गाँव का
जिस गाँव गया था मैं ।
था वह एक दलित बस्ती ।
केवल एक प्राथमिक
विद्यालय,
पक्की सड़क के किनारे,
बाकी थी सपनों की कश्ती
।
फिर भी विचार और व्यवहार
से,
उसके वार्तालाप में खो
गया ।
बात ही बात में कुछ
पूछा ।
लेकिन न पूछ सका
माँ-बाप का नाम ।
कौन है यह बालक ।
अद्भुत, अदंभ है जिसमें
साहस ।
अंत में वह अपने घर
लाया ।
पहले तो सकुचाया ।
फिर गया
तब पहचान में आया
वह था मेरे गाँव के
मजदूरनी का बच्चा ।
टूटी-फूटी घर ।
बिखरे सामान
लेकिन थे बड़े सपने
नए तराने ।
शायद इस उम्र में ,
मैंने भी ऐसे सपने नहीं
देखे ।
मजदूरनी हमारे गाँव में,
खेती-बाड़ी में कार्य
करता था ।
था वह जाना पहचाना ।
उसने अपने बच्चे के
बारे में
बताया था मुझे,
पर कभी देखा था नहीं,
नहीं सोचा भी था
कि होगा ऐसा साहसी
बच्चा ।
बिना कहे ही उसने,
खुशी-खुशी
अपने सारे प्रमाण-पत्र
लाकर दिखाया ।
मैंने भी हौसले, इरादे
और धैर्य को बढ़ाया
समझाया, बताया ।
उसके माँ के दिल में था
सपना ।
मेरा लाडला एक दिन
इस गरीबी से छूटकारा दे
।
मजदूरी करके भी
दो बेटे और एक
बेटियों को पढ़ाना ।
आज के महंगी की दौर में
कैसी टेढ़ी खीर है ?
फिर भी अजीब हिम्मत
वाली थी वह
खुद फटेहाल रहकर भी,
लाडले को होनहार चाह
रही थी ।
कैसी होती है माँ जो
लाख
कष्ट सहकर भी
पुत्र के सपने साकार
करती है
धन्य है वह माँ...धन्य
है...
जे.पी.हंस
जे.पी.हंस
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