12 September, 2016

हिन्दी हूँ मैं....



निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल.
      उपरोक्त पंक्तियाँ भारतेंदु हरिश्चंद ने हिंदी के बारे में वैसे समय में लिखी, जब उन्हें लगा कि अब हिंदी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है । इसी खतरे को भांपते हुए उतरोत्तर समय में 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी । हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
      वैसे जो ऐसी कल्पनाएं करके ही खुश होते है कि हिंदी दिवस मनाने वाले मानते हैं कि भाषा का संकट है, तो उन्हें अपनी खुशगहमी दूर कर लेनी चाहिए, क्योंकि यह दिन मनाना संकट का घोतक नहीं, बल्कि अपने ही देश में, सैलानियों की तरह रह रहे लोगों को याद दिलाने का तरीका है कि मुखौटे उतारो और सच्ची जबान बोलो ।
      अपनी भाषा बोलने में हिचक होने और आत्म-विश्वास की कमी को कारण हमारे स्वतंत्रता पूर्व और स्वाधीनता प्राप्ति के बाद के शासन की गलत शिक्षा नीतियों के कारण हिंदी उपेक्षा की शिकार रही है । जिस स्वाधीनता संग्राम को भारतीय भाषाओं ने लड़ा, उसी स्वाधीनता के प्राप्ति के बाद उन्हें दरकिनार कर दिया गया । स्वाधीनता प्राप्ति के सारे दस्तावेज ही न केवल अंग्रेजी में हस्ताक्षरित किये गये, बल्कि आधी रात को देश के प्रथम प्रधानमंत्री का स्वाधीनता प्राप्ति का पहला भाषण ही अंग्रेजी में दिया गया । यही वह क्षण था, जहाँ से हिंदी ही नहीं, तमाम भारतीय भाषाओं की दुर्गति शुरू हुई ।
      हमारी हिचकिचाहट हमारी मनोवैज्ञानिक दासता में अंतर्निहित है । उसके ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय कारण उतने नहीं है, जितने मनोवैज्ञानिक और वर्गीय कारण हैं । स्वाधीनता के तत्काल बाद स्वाधीनता संग्राम के उन्हीं नेताओं को, जो नई सरकार में मंत्री बनाए गए । उन्हें लगा कि अब वे जनता से कुछ अलग और विशिष्ट हो गए है, क्योंकि अब वे शासक हो चुके थे । उनके सामने यह समस्या हुई कि वे जनता से अलग दिखने के लिए क्या करे, तो उन्हें पहला हथियार मिला भाषा का । उन्होंने तत्काल अपने कामकाज की भाषा के लिए अंग्रेजी को चुन लिया ।

      एक क्षेत्र-विशेष के प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले कुछ लोग तो राजनितिक रोटियां सेकने में अरसे से हिंदी विरोद्ध का झंडा उठाते रहे हैं । जब यूपीएससी में हिंदी को लागू करने की बात उठी तो एक बार फिर से सक्रिय रूप से उसके विरोध पर उतर आये थे, अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने तक पर उन्हें एतराज है यानि अपने ही देश में हिंदी लगातार विरोध के चक्रव्यूह में फंसती और लड़ती रही है । सरकारी स्तर पर उसे आज तक राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है मगर कमाल यह है कि इतने सबके बाद भी हिंदी न हारी, न टूटी, न मरी, न गई अपितु आज दुनियाभर में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में शुमार है तथा चीनी या मंडारिन के बाद उसका दूसरा स्थान है । भले ही हिंदी उस देश में ठिटकी खड़ी है, जहाँ सब उसके अपने है, पर एक बेगानेपन से त्रस्त होकर भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी है और हिंदी में जबरदस्त वृद्धि हो रही है, उसकी पठनीयता और साहित्य कुलांचे भर रहा है और कह रहा है हिन्दी हूँ मैं

15 August, 2016

हे वीर शहीदों (देशभक्ति गीत)

हे वीर शहीदो, हे वीर शहीदों ।
जाने न दूँगा तेरा शहीदी बेकार ।
चाहे धरा पर आँधी आये ।
चाहे तन पर व्याधि आये ।
चाहे राज पर खाज आये ।
चाहे धरा पर बाज आये ।
एक मरे तो करूँगा सौ तैयार ।
हे वीर शहीदो, हे वीर शहीदों ।
जाने न दूँगा तेरा शहीदी बेकार ।
इस गण का तंत्र मै हूँ ।
सब मंत्रों का मंत्र मै हूँ ।
हाथियों का दंत मै हूँ ।
शिवजी सा निलकंठ मैं हूँ ।
वक्त पड़े तो उठा लूँगा सारा संसार ।
हे वीर शहीदो, हे वीर शहीदों ।
जाने न दूँगा तेरा शहीदी बेकार ।
चाहे कुकुर कितनो भौके ।
चाहे सुकर कितनों चौके ।
चाहे सीमा कितनो लाघें ।
चाहे कूटक कितनों बाँधे ।
पलक झपकते ही फैला दूँगा अंधकार ।
हे वीर शहीदो, हे वीर शहीदों ।
जाने न दूँगा तेरा शहीदी बेकार ।

मेरा देश महान

पास्ट हो या फ्यूचर,
फेसबुक हो या ट्विटर,
व्हाट्सएप्प हो या मूषक,
सब में है योगदान ।
मेरा देश महान, हमारा देश महान ।
इस देश का है ऐसा आइडिया,
चाहे वर्ल्ड का कोई हो सोशल मिडिया,
सब पर रखता अभिमान,
मेरा देश महान, हमारा देश महान ।
टी मैन हो या संतरी,
आउटसाईडर हो या मंत्री,
सब होते है यहाँ विराजमान,
मेरा देश महान, हमारा देश महान ।
ब्लैक मैन हो या व्हाईटर,
सब बनते है यहाँ फाईटर,
होते देश के लिए कुर्बान,
मेरा देश महान, हमारा देश महान ।

14 August, 2016

हमारा राष्ट्र पर्व

स्वतंत्रता दिवस है राष्ट्र पर्व,
हम राष्ट्र ध्वज फहराएंगे,
दुश्मनों को छक्के छुड़ाकर,
देश का सम्मान बढ़ाएंगे।
कर्तव्य पथ पर अडिग रहकर,
शीश कभी न झुकाएँगे।
जो थाती मिली है  गर्दिश में,
उसको हम मिलकर बचाएंगे ।
हम ऐसा राष्ट्र बनाएंगे ।
सर्व-धर्म का हित जहां होगा।
स्वतंत्रता, प्रेम और बंधुत्व का,
गुण ही केवल समाहित होगा।
      लेखक-जेपी हंस

14 May, 2016

चक्कर @ का

चक्कर कई तरह के होते हैं, जैसे चक्कर खाना, चक्कर खाकर गिर जाना, दफ्तर का चक्कर लगाना, किसी अधिकारी का चक्कर लगाना या पूजा-पाठ के समय देवी-देवताओं का परिक्रमा (चक्कर) लगाना, किसी मन्दिर का परिक्रमा (चक्कर) लगाना । लेकिन इन दिनों बिहार में @ का चक्कर कुछ छात्र-छात्राओं को लगाना पड़ रहा है । दरअसल बात यह है कि बिहार सरकार ने मैट्रिक के रजिस्ट्रेशन नौवी वर्ग से ही शुरू कर दिया है । एक तो जो बच्चे दसवीं में जाने वाले है उन्हें अभी तक नौवीं की परीक्षा नहीं हुआ है । दूसरी इनके मैट्रिक के रजिस्ट्रेशन नौवी से शुरू हो गई है । खैर, रजिस्ट्रेशन कोई बड़ी बात नहीं हैं वो आज या कल होना ही था या नौवीं में हो या दसवीं में, पर खास बात यह है कि नौवी क्लास में होने वाली रजिस्ट्रेशन में व्यक्तिगत जानकारी के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के बैंक खाता संख्या, आई.एफ.एस.सी कोड, मोबाईल नम्बर और ई-मेल आई.डी की मांग की जा रही है । जब तक ये सब उपलब्ध नहीं रहेगें । रजिस्ट्रेशन होगा ही नहीं । इतना तो आप भी जानते है कि बैंक खाता तो ठीक है, खुलवाया जा सकता है, प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अंतर्गत भी खुलवाया जा सकता है साथ ही साथ मोबाईल नम्बर तो हर घर के व्यक्ति-व्यक्ति के पास मौजूद है, भले ही वो चाहे रिक्सा चलाने वाला हो या खोमचा बेचने वाला, पर भला ई-मेल आई.डी कहाँ से लायेंगे । बिहार सरकार के नौवी के छात्र भला ई-मेल आई.डी बनाना कैसे जाने वो भी देहाती क्षेत्र के रहने वाले । शहर के रहने वाले तो ई-मेल आई.डी क्या वो तो दिन भर फेसबुक, ट्विटर, मूषक, वाट्सएप्प की सैर करते रहते हैं । इसी बीच मुझे अपने गाँव से फोन आया । मेरा गाँव देहाती क्षेत्र से संबंध रखता है । बताया गया कि नौवी क्लास में ऑनलाईन फार्म भरा जा रहा है जिसमें ई-मेल आई.डी की मांग की जा रही है । जब उन्हें ई-मेल आई.डी बनाकर मैसेज किया । पहले तो उन्हें मैसेज निकालना नहीं आ रहा था, जब मैसेज निकालना बताया तो चक्कर आ गया @ का । वो @ को जीरो पढ़ते थे । मैंने बार-बार बताया कि यह रोमन लिपि- अंग्रेजी का विशेष चिन्ह है । कम्प्युटर की जानकारी रखने वाले ही जानते है । उन्होंने बताया कि इतने छोटे का इतना लम्बा पढ़ा जाता है, पहली बार सुना है । दरअसल @ को ‘एट दी रेट’ पढ़ा जाता है । खैर नौवी के बच्चे कम्प्युटर सीखे या न सीखे @ चक्कर पड़ ही गया और इसी बहाने थोड़ा कम्प्युटर का ज्ञान भी हो गया ।

11 May, 2016

एक और निर्भया...

वक्त बदला, सत्ता बदली,
न बदला कोई आचार-व्यवहार ।
पहले दिल्ली फिर केरल,
नारी शक्ति हुई शर्मसार ।
अन्तर सिर्फ इतना रह गया,
सत्ता और तंत्र का ।
नहीं कोई काम आया,
बदले सरकार के मंत्र का ।
कही सोशलिस्ट, कही कम्युनिस्ट,
कही संघ की सरकार कहते ।
जाति, धर्म की ठेकेदारी देखकर,
मिडिया भी उफान भरते ।
पार्टी-पोल्टिस, पुलिस, पडोसी,
वक्त देखकर दंभ भरते ।
बारी आती जब क्रांति की,
शांति की कहानी गढ़ते ।
न कोई यहाँ सोशलिस्ट,
कम्युनिस्ट, संघी के पंख है ।
मानो तो मानो मेरी बात मानो,
सबके सब ढपोरशंख है ।
सभ्य, शिक्षित प्रांत में कैसी,
दरिंदगी की कोमल काया ।
पशु भी इतना निर्मम न होती,
रहती उनकी हृदय में दया ।
दरिंदों का न होता जाति, पंथ,
न रहती कोई हृदय में माया ।
कितने निर्भया ने जान गवाई,
हमने अबतक क्या कर पाया ।
जागो नारी पंथ आक्रोश भरो,
जगाओ लहू में चिंगारी ।
कोई न पर पुरुष छूं सके ।
न बन सके कोई व्याभिचारी ।
लिंग भेद का मर्म समझकर,
मत पहने रहो तुम चूड़ी ।
दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनो,
ताकि सब बनाये रखे कुछ दूरी ।
  -जयप्रकाश नारायण उर्फ जेपी हंस