12 March, 2017
होली की यादें...
एक बार होली में हमारे ननिहाल में नई नवेली मामी आई हुई थी । उस होली के दिन मैंने होली के सुबह धुरखेली के समय गोबर और कीचड़ से बचने के लिए छत पर एक ऐसी जगह बैठा था, जहाँ अभी छत पूरी तरह नहीं बने थे । इस जगह पर इसलिए बैठा था ताकि कोई गोबर और कीचड़ न लगाये। उस दिन जब खाना खाने का समय हुआ तब भी में उसी छत पर बैठा था, लेकिन नानी के बार-बार बुलाने पर छत से किसी तरह उतरा । मेरी नई मामी यह दिलासा देकर छत से उतरवाई की कोई भी गोबर या कीचड़ नहीं लगाएंगे। मै पूरे विश्वास के साथ उतरा और कुआं पर जाकर हाथ- पैर धोने लगा । हाथ- पैर धोने के लिए मेरी नई मामी ने पानी दी थी। मैं ज्योंहि हाथ- पैर धोने के लिए झुका, तब नई मामी ने गोबर के घोल से भरे बाल्टी को मेरे माथे पर उझल दिया। मै पूरी तरह भींग गया। फिर भी बहुत खुश हुआ । यह बात मुझे आज भी होली आने पर यादों को ताजा कर देती है।
जेपी हंस,
जमशेदपुर, झारखंड
18 December, 2016
कहाँ है मेरा भारत देश...
कल रांची में एक छात्रा के साथ गैंग रेप की बुरी तरह रूह को कंपकपाने वाली घटना से मौत हुई..इस पर तड़पती मेरी चंद पंक्तियां...
टूटे दिल,बिखरी इश्क,
रूठे चेहरे, गिरे वेश।
ढूंढ रहा हूँ इन सब में,
कहाँ हैं मेरा भारत देश ।
रूठे चेहरे, गिरे वेश।
ढूंढ रहा हूँ इन सब में,
कहाँ हैं मेरा भारत देश ।
खोटी इंसानियत, लूटते जिस्म,
सोई मानवता, बदलते परिवेश ।
ढूंढ रहा हूँ इन सब में,
कहाँ है मेरा भारत देश।
सोई मानवता, बदलते परिवेश ।
ढूंढ रहा हूँ इन सब में,
कहाँ है मेरा भारत देश।
काली निशा, उजाली उषा,
कोरी कल्पना, बहते उपदेश।
ढूंढ रहा हूँ इन सब में,
कहाँ हैं मेरा भारत देश।
- जेपी हंस
कोरी कल्पना, बहते उपदेश।
ढूंढ रहा हूँ इन सब में,
कहाँ हैं मेरा भारत देश।
- जेपी हंस
24 November, 2016
जमशेदपुर कवि सम्मेलन
दोस्तों, कल मैं एक कवि सम्मेलन में गया था,वहां कवि सम्मेलन के पोस्टर में कवि सम्मेलन की जगह कवि सम्म लेन लिखा हुआ था. इस बात की जानकारी जब मैं सम्मेलन के अध्यक्ष महोदय को दी तो यह गुस्सा बैठे तो मैंने भी मौके का तड़का देख खड़का दिया जो इस प्रकार हैं....
अपनी बातों को वे येन- प्रकारेण कह बैठे,
सम्मेलन को वे सम्म लेन कह बैठे ,
मंच पर जो बैठे थे कविवर मित्र,
दाढ़ी देख कर उन्हें भी लादेन कहां बैठे..
सम्मेलन को वे सम्म लेन कह बैठे ,
मंच पर जो बैठे थे कविवर मित्र,
दाढ़ी देख कर उन्हें भी लादेन कहां बैठे..
इतनी बातों पर पुनः झुंझला गए..जो मैंने इस प्रकार बया किया...
इतनी सी बातों से परेशानी होने लगी,
सुन सुन के मुझे भी हैरानी होने लगी,
उलझ पड़े वो हमसे इस तरह,
बातों ही बातों में पहलवानी होने लगी...
इतनी सी बातों से परेशानी होने लगी,
सुन सुन के मुझे भी हैरानी होने लगी,
उलझ पड़े वो हमसे इस तरह,
बातों ही बातों में पहलवानी होने लगी...
30 October, 2016
दीपावली के बधाई संदेश...
मेरी दुआ है कि यह पवित्र त्योहार आपके जीवन में उत्साह, खुशियाँ, शांति और प्यार से सदा के लिए आपके जीवन को भर दे!
यह उत्साह वाला पल आपके जीवन को खुशियों से भर दे और दीपों की रोशनी सा आपका जीवन चमक उठे और आपकी सभी तमन्नाएं और सारे सपने पूरे हों!
शुभ दीपावली!
यह उत्साह वाला पल आपके जीवन को खुशियों से भर दे और दीपों की रोशनी सा आपका जीवन चमक उठे और आपकी सभी तमन्नाएं और सारे सपने पूरे हों!
शुभ दीपावली!
28 October, 2016
दिवाली नहीं आते।
लगे है वाइ-फाई जबसे तार भी नहीं आते;
बूढी आँखों के अब मददगार भी नहीं आते;
गए है जबसे शहर में कमाने घर के छोरे;
उनके घर में त्यौहार भी नहीं आते।
बूढी आँखों के अब मददगार भी नहीं आते;
गए है जबसे शहर में कमाने घर के छोरे;
उनके घर में त्यौहार भी नहीं आते।
नोट: जो पर्व-त्योहार में भी अपने माँ-बाप, दादा-दादी से भेट करने नही जाते, उनको समर्पित।
#बेसहारा_माँ
#बूढ़ी_दादी
#बेसहारा_माँ
#बूढ़ी_दादी
अंत में, सभी को शब्द क्रांति की तरफ से हार्दिक शुभकामनाये।
18 September, 2016
धरा की जननी कौन है?
विवश है आज धरा पर नारी,
अपनी अस्मत बचाने को ।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे,
पल-पल उन्हें सताने को ।
अपनी अस्मत बचाने को ।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे,
पल-पल उन्हें सताने को ।
मुद्दे जघन्य है जर्रा-जर्रा पर,
कर्तव्यवान जन क्यों मौन है ?
अब बताओं हे मानव !
धरा की जननी कौन है ?
कर्तव्यवान जन क्यों मौन है ?
अब बताओं हे मानव !
धरा की जननी कौन है ?
पैरों तले लूट जाती इज्जत,
फैलती आसमां तक दूषित विचार ।
धिक्कार है जन्मना उस धरा पर,
जहाँ होती नारी का अपमान ।
फैलती आसमां तक दूषित विचार ।
धिक्कार है जन्मना उस धरा पर,
जहाँ होती नारी का अपमान ।
छाई है चर्चा देश-दुनिया में,
नेतृत्व जन क्यों मौन है ?
अब बताओं हे मानव,
धरा की जननी कौन है ?
भूल गया क्या तु मानव,
धरा पर तुझको किसने लाया ।
तन-बदन पर पीड़ा सहकर,
कतरा-कतरा रक्त किसने बहाया ।
धरा पर तुझको किसने लाया ।
तन-बदन पर पीड़ा सहकर,
कतरा-कतरा रक्त किसने बहाया ।
चर्चा है हर घर-चौपाल पर,
पास-पड़ोस जन क्यों मौन है ?
अब बताओ हे मानव,
धरा की जननी कौन है ?
रोती बिलखती गर्भस्थ गृह से ही,
अपनी जिंदगी बचाने को।
तड़पनी पड़ती है नव मास तक,
हर नर-नारी को जनमाने को ।
अपनी जिंदगी बचाने को।
तड़पनी पड़ती है नव मास तक,
हर नर-नारी को जनमाने को ।
रूह कराहती तब जर्रा-जर्रा में,
पुरूषत्व कहाँ अब मौन है ।
अब बताओ है मानव,
धरा की जननी कौन है ?
कर ऐसी कारीगरी मानव,
मन से कर तु साक्षात्कार ।
भक्षक भक्ष कर, रक्षक रच कर,
नारी का कर सत्कार ।
मन से कर तु साक्षात्कार ।
भक्षक भक्ष कर, रक्षक रच कर,
नारी का कर सत्कार ।
चर्चे है हर जिह्वा-जिह्वा पर,
तरूणमन क्यों मौन है ?
अब बताओ है मानव,
धरा की जननी कौन है ?
-जेपी हंस
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