गरम रजाई को ओढ़ ।
समझ गए नहीं दे पाओगे
तुम जवाब मुँह तोड़ ।।
घुट घुट कर यूं जीना ।
आर्टिफीशियल लगता है
वो छप्पन इंची सीना ।।
देते रहे यूं शहादत ।
फर्क नहीं पड़ता तुम्हे
यह है तुम्हारी आदत
झूठी हुंकार भरते हो ।
पता नहीं क्या है मन में
बस मन की बातें करते हो ।।
कर ली खूब मुलाकातें ।
तुमने हाथ मिलाया खूब
पर उसने मारी लातें ।।
फिर से एक दौरा कर लो ।
रह गया हो बाकी कुछ तो
फिर से अपनी छाती भर लो ।।
शब्दों के तीर छोड़ .....।
समझ गए नहीं दे पाओगे
तुम जवाब मुँह तोड़ ।।
-अज्ञात