किसी भी देश की राष्ट्रभाषा वहां की ज्ञान, चेतना और चिंतन की मूल
धुरी होती है । ऐसे मे, हमारे ही घर-परिवारों में हिन्दी की उपेक्षा चिंतनीय है ।
अपनी राष्ट्रभाषा को मान देने की आकांक्षा कहीं गुम है । इसीलिए हर परिवार, हर
नागरिक इसे अपना कर्तव्य समझे । जो राष्ट्रभाषा हिन्दी हमारी अस्मिता और
सम्प्रभुता की प्रतीक है वह अपने आंगन में बेगानी-सी खड़ी है । ऐसे में जरूरी है
कि भाषा को समृद्ध करने का प्रयाश हर भारतीय परिवार करे और समाज भी इसमे सकारात्मक
सहयोग दे ।
राष्ट्रभाषा को मान और सम्मान दिलाने का काम केवल सरकारी प्रयासों और
स्कूलों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता । समाज और परिवार की भूमिका भी बड़ी अहम है ।
हिन्दी हमारी अपनी राजभाषा और मातृभाषा है । यदि हमारे परिवारों में कोई बच्चा
अंग्रेजी शब्द का गलत उच्चारण भी करता है तो घर-परिवार के लोग उसे टोक देते हैं पर
हिन्दी के मामले में इतनी सतर्कता देखने को नहीं मिलती । हमारा देश हिन्दी भाषी
देश है । लेकिन हिन्दी के प्रति जो रवैया हमारे समाज और परिवार में देखने को मिलता
है वह न केवल दुखद है बल्कि चिंतनीय भी है । मात्र स्कूली शिक्षा और सरकारी
प्रयासों और सेमिनारों से हिन्दी को हमारे मन और जीवन में स्थान नहीं दिला सकता ।
हमारे घरों में बेगानेपन का दंश झेल रही हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने की
शुरुआत और सद्प्रयास हमें अपने घरों के भीतर ही करना होगा । आने वाली पीढियों के
मन में अपनी भाषा के लिए सम्मान और प्रेम हो न कि स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होने
के नाते उसे जानने और पढ़ने की विवशता ।