17 August, 2020

बिहार सरकार से नेट/जेआरएफ/पीएचडी उतीर्ण छात्रों की मांग...





  • फोटोः गूगल से संभार.


सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री बिहार
विषयः- सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति में “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” 
      प्रणाली की जगह  प्रतियोगिता परीक्षा आयोजन कराने के संबंध में ।
महोदय,
      पूरी भारत में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति प्रतियोगिता परीक्षा से होती है जिसे आप सत्यापित अपने तरीके से भी कर सकते हैं पर हमारे बिहार राज्य में 'बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग, पटना' ने इस उच्च योग्यता और कुशलता वाले पदों पर नियुक्ति करने हेतु “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” को नियुक्ति का आधार बनाया है, जो किसी भी दृष्टिकोण से सही प्रतीत नहीं हो रहा है । महोदय हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर बिहार में भी सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति, प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर करने की विनम्र मांग करते हैं ।
महोदय “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” प्रणाली भर्ती की सबसे पुरानी पद्धतिओं में से एक है, जिसमे व्याप्त खामियों को देखते हुए प्रत्येक राज्य इसके जगह प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करवाकर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर रहें है । फिर हमारे बिहार में भी क्यों न पुरानी पद्धति को त्याग कर प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा योग्य और बेहतर और समनुकूल पेशेवर का चयन किया जाये इससे बिहार के छात्रों को भी ज्यादा अवसर मिलेगा क्योंकि हम बिहारी विद्यार्थी डिग्री जुटाने के जगह कठिन मेहनत और लगन के लिए जाने जाते रहे है और किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा सफलता हासिल करते आ रहे हैं इसका गवाह यूपीएससी जैसे परीक्षा भी हैं
      महोदय, विभिन्न विश्विद्यालयो के मूल्यांकन प्रणाली और उनके प्राप्तंको में बहुत अंतर है जैसे बिहार के लगभग सभी विश्वविद्यालय भारत में सबसे कम मार्किंग के लिए जाने जाते हैं।
इससे भी बड़ा अंतर सेमेस्टर और ऐनुअल एक्जाम सिस्टम के प्राप्तांकों में है । ग्रेडिंग और नन ग्रेडिंग के बीच प्राप्तांकों में तो और ज्यादा अंतर है- उदाहरणस्वरूप बिहार के सभी विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय (DU), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में जहां 65% पर गोल्ड मेडलिस्ट हो जाता है वहीं बनारस हिन्दी विश्वविद्याल (BHU) में एक सामान्य छात्र भी 80% तक अंक पाता है । ऐसे में प्रतियोगिता परीक्षा के जगह “डिग्री-लाओ-नौकरी पाओ” के आधार पर नियुक्ति घोर अन्यायपूर्ण और अवसर की समानता के खिलाफ है, जिससे मेधावी और कुशल छात्र-छात्राओं के पात्रता भी नहीं बच पा रहा है ।
बिहार में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति में इसी “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” नियम को आधार बनाया जाता रहा है, जिसके कारण बिहारी छात्रों को कम अवसर मिल पाता है । चूंकि बिहार बोर्ड और बिहार के यूनिवर्सिटीज भारत के सबसे कम मार्किंग वाले बोर्ड और यूनिवर्सिंटी है अतः प्रतियोगित परीक्षा के जगह एकेडमिक अंकों पर भर्ती बिहारी छात्रों के प्रति घोर अन्याय है
इसके अलावा लिखित प्रतियोगिता परीक्षा विभिन्न पृष्टभूमि के छात्रों को समान अवसर देता हैं, प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा चुने जाने पर भाई भतीजावाद का अवसर कम रहता है ।
महोदय भारत हीं नही अमेरिका और यूरोप में भी कॉपी पेस्ट किये पीएचडी थिशिस की की बात सामने आई हैं वैसे में इन सन्दिग्ध मानकों के बजाए लिखित परीक्षा द्वारा नियुक्ति सबके लिये न्यापूर्ण अवसर प्रदान कर सकता है ।
लिखित परीक्षा द्वारा आज के बच्चो के जरूरतों के अनुसार शिक्षण अभिरुचि,मनोविज्ञान और विषय आधारित सवालों को सम्मलित करते हुए एक ज्यादा बेहतर समयानुकूल और लचीले शिक्षक का चयन सम्भव है जो एकेडमिक अंक विधि में नहीं सम्भव हैं
इसी कारण मध्यप्रदेश, ओडिसा, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश आदि अन्य अनेक राज्य सहायक प्रोफेसर का चयन खुली प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा करते हैं
अतः हम अपने बिहार राज्य में भी खुली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति की उम्मीद करते हैं ताकि शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन होने के साथ शिक्षा के क्षेत्र में होनेवाली क्रांति में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकेंगे  ।
       अतः हम महोदय से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि आप इस संदिग्ध, दोषपूर्ण और पुरानी पद्धति “डिग्री-लाओ-नौकरी-पाओ” प्रणाली के जगह खुली प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा नियुक्ति कराने की कृपा कर के  न केवल बिहार राज्य का मान बढ़ाने में भागेदारी सुनिश्चित करेंगे अपितु राष्ट्रीय स्तर पर भी मान-सम्मान बढ़ाने में महती भूमिका का निर्वहन कर सकेंगे ।
निवेदक ~
बिहार के सहायक प्रोफेसर के योग्य समस्त छात्र-छात्राएं ।


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01 August, 2020

फ्रैंडशिप डे FRIENDSHIP DAY एक नजर में...




दोस्ती परिचय-

जब हम जन्म लेते हैं तब से ही किसी न किसी रिश्तों की बागडोर में बंधे चले आते हैं या हम यों कहे कि हम परिवार में विभिन्न रिश्तों की डोर से बंधे होते हैं लेकिन पारिवारिक रिश्तों के अलावा एक और महत्वपूर्ण रिश्ता हमारे जीवन में काफी महत्व रखता हैं और वो रिश्ता होता है दोस्ती अथवा मित्र का रिश्ता, जो विश्वास व सहयोग के आधार पर टिका होता है, जो हर सुख-दुख के साथी होता है... ये सभी रिश्ते हमारे समाज में सरोकार बनाये रखने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है...

      मित्र, सखा, दोस्त, फ्रेंड, चाहे किसी भी नाम से पुकारा जाए, दोस्त की कोई एक परिभाषा हो ही नहीं सकती... इंसान के दो प्रकार के दोस्त होते हैं... पहला वह जो बचपन से दोस्त होता है, जिसके साथ वो बड़ा होता है और दूसरे प्रकार की दोस्ती वह होती है जो इंसान को जन्म के बाद में होती है, मतलब स्कूल लाईफ, कॉलेज लाईफ में या प्रोफेशनल लाईफ में हमें दोस्त मिलते हैं...

      कुछ ऐसे भी दोस्त मिल जाते हैं जो कुछ समय के लिए साथ निभाते हैं और कुछ ऐसे भी दोस्त मिलते हैं जो सारी जिंदगी हमारा साथ निभाते हैं चाहे सुख हो या दुख वो हमारा कभी साथ नहीं छोड़ते... दोस्ती के बारे में योहि नहीं कहा गया है कि जिसके जीवन में सच्चा दोस्त नहीं है, उनके जीवन में सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है...

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दोस्ती क्यो?

      सभी तरह के बंधन एवं संकीर्णताओं को तोड़कर आपस में प्रेम, सम्मान और परस्पर सौहार्द बढ़ाने का संदेश देने वाले इस अनूठे त्योहार की प्रासंगिकता आधुनिक समय में बढ़ती जा रही है, क्योंकि आज मानवीय संवेदनाओं एवं आपसी रिश्तों की जमीन सूखती जा रही है, साथ ही रोजी-रोजगार के भागम-भाग में घर से सैकड़ो किलोमीटर दूर, जहाँ अपने रिश्ते वाले नहीं होते हैं । ऐसे समय मे एक दूसरे से जुड़े रह कर जीवन को खुशहाल बनाना और दिल के जादुई संवेदनाओं को जगाने का रिश्ता दोस्ती ही करती आ रही है...

      दोस्ती खून का रिश्ता तो नहीं होती है लेकिन उससे भी बढ़कर होती है... दोस्ती एक ऐसी चीज होती है जो हमारे हर अच्छे-बुरे काम में हमारे साथ होती है और हम अपनी पर्सनल बातें हर किसी के सामने शेयर नहीं सकते लेकिन दोस्त को हम बेझिझक अपने दिल की हर बात बता देते हैं और वह हर बार हमारी हर बात पर हमारे साथ खड़ा होता है... वास्तव में मित्र उसे ही कहा जाता है, जिसके मन में स्नेह की रसधार हो, स्वार्थ की जगह परमार्थ की भावना हो...ऐसे मित्र संसार में बहुत दुर्लभ है.. जैसे कृष्ण और सुदामा और राम और हनुमान...

            दोस्ती का मतलब एक प्यारा सा दिल,

            जो कभी नफरत नहीं करता..

            एक प्यारी मुस्कान, जो फीकी नहीं पड़ती,

            एक एहसास जो कभी दुख नहीं देता,

            और एक रिश्ता जो कभी खत्म नहीं होता..”

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दोस्ती दिवस की शुरुआत:

      मित्रता दिवस या दोस्ती दिवस या इसे फ्रैंडशिप डे कहे, यह दो अनजान लोगों के पहचान को बताती है... यह अगस्त माह के पहले रविवार को मनाया जाता है... सर्वप्रथम मित्रता दिवस 20 जुलाई, 1958 ई में पराग्व में डॉ रमन आर्टिमियों द्वारा प्रस्तावित किया गया था.. दोस्ती के बारे में कहा जाता है कि इंसान अपने परिवार, रिश्तेदारों को नहीं चुन सकता लेकिन वो अपने लिए दोस्त चुन सकता है...

      दुनिया के अलग-अलग देशों में इसे अलग-अलग दिन मनाया जाता है... 27 अप्रैल 2011 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में 30 जुलाई को आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस के रूप में घोषित किया गया जबकि भारत समेत अन्य देशों में इसे अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है...

      जिंदगी के बाकी सभी रिश्तों के साथ हम पैदा होते हैं पर दोस्ती ही एक मात्र रिश्ता है जिसे हम खुद बनाते हैं.. यह वह रिश्ता है जो एक दूसरे की मदद के लिए वक्त-बेवक्त हाजिर रहते हैं और जिंदगी की तमाम मुश्किलों से लड़ने की ताकत और हिम्मत हमें देते हैं..

एक सर्व प्रचलित बाते हैं-

     

                 दोस्ती कोई खोज नहीं होता,

                  दोस्ती किसी से हर रोज नहीं होती,

                  जिदंगी में मौजूदगी उनकी बेवजह नहीं होती,

                  क्योंकि पलकें आंखों पर कभी बोझ नहीं होती.



दोस्ती पर विभिन्न विचारकों के राय-

1.

       हमारी सबसे बेहतरीन किताब 100 दोस्तों के बराबर होती हैं लेकिन एक बढ़िया दोस्त एक लाइब्रेरी के बराबर होता है- डॉ अब्दुल कलाम

2.       दोस्ती एक बेहतर ही सुखद जिम्मेदारी है, अवसर नहीं- खलील जिब्रान

3.       जीवन का सबसे बड़ा उपहार दोस्ती है और यह मुझे सौभाग्य से मिलता है- ह्यावर्ट हम्फ्री

4.       सच्चा दोस्त वहीं होता है जो तब हमारा साथ देता है जब सब साथ छोड़ देते हैं.

5.       मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु हर स्थिति में अच्छा होता है.

6.       ज्ञानवान मित्र ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है.

7.       मित्र वे दुर्लभ लोग होतें हैं, जो हमारा हालचाल पूछते हैं और उतर सुनने को रूकते भी है.

8.       सच्चा मित्र वह है जो दर्पण की तरह तुम्हारें दोषोंको तुम्हें दिखाए, जो तुम्हारें अवगुणों को गुण बताए वह तो खुशामदी है.

9.       तुम्हारा अपना व्यवहार ही शत्रु अथवा मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है.

10.   अपने मित्र को एकात में नसीहत दो, लेकिन प्रशंसा खुलेआम करों.

11.    मित्रता करने में धैर्य से काम लो, किंतु जब मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और दृढ़ होकर निभाओ.

12.   दोस्त वो होते हैं, जो हर समय अपने दोस्त का साथ निभाते है, चाहे दोस्त किसी भी परिस्थिति में हो..

13.   आप भले ही दुनिया की सारी दौलत लगा लो आप सच्ची दोस्ती नहीं खरीद सकते.. पर जिसके पास सच्चा दोस्त है, वो दुनिया का सबसे अमीर इंसान है.

14.   विदेश में विद्या मित्र होता है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगी का मित्र औषधि और मृतक का मित्र धर्म होता है.

15.   सच्चे मित्र हीरे की तरह कीमती और दूर्लभ होतें है, झूठे मित्र पतझड़ की पत्तियों की तरह हर कही मिल जाते हैं.

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10 May, 2020

मजदूरों के मौत के दोषी


                                        

      नमस्कार दोस्तो,  कोरोना जैसे महामारी के दौर में हमारी देश की अर्थव्यवस्था भले ही पटरी से बाहर हो गया हो पर देश की आम मजदूर पटरियों पर आ गया है. तभी तो 16 मजदूरों की मौत पटरी के नीचे आने से हो गयी. मतलब ये लोग ट्रेन पर नहीं चढ़ पाये लेकिन ट्रेन इन पर चढ़ गई.

अब प्रश्न उठता है कि इनके मौत के लिए कौन जिम्मेवार है ? सरकार के बारे में आप सोच रहे हैं तो सरकार तो बिल्कुल भी नहीं, सरकार ने तो इनके लिए बस और ट्रेन शुरू कर चुकी थी.. यहाँ तक की रोड, ट्रेन की पटरी और सड़क की पगडंडियों को भी खोल दिया गया था.. अब इनको केवल पुलिस के डंडो से बचकर आना था... अब इनमें सरकार का क्या दोष ? वो भला हो सरकार का जिसने इतनी तंगहाली अर्थव्यवस्था में ट्रेन से आये मजदूरों से 600-700 रूपये ट्रेन भाड़ा लेकर मरने वाले को पाँच-पाँच लाख रुपये दे रही है.. जिसका खर्चा सरकार दारू बेचकर निकाल रही है फिर पर कुछ लोग सरकार को ही दोष पर दोष दिये जा रही है...

तो क्या आपको लगता है कि इसके लिए मिडिया दोषी है ? नहीं, जी. बिल्कुल भी नही... हमारी मिडिया तो देशभक्त मिडिया है, जिनको पाकिस्तान की भुखमरी, बदहाली, तंगहाली दिखाई देती है वो हमारे देश के भुखमरी, बदहाली, तंगहाली, मजदूरों का पलायन और वो लोग जो हजारों किलोमीटर पटरियों पर, कुछ सड़क की पगडंडियों पर तो कुछ साईकिल से चलकर अपने घर पहुँच रहे हैं, उन्हें दिखाकर अपनी राष्ट्र भक्ति पर ऊगली उठाना थोड़े ही है.. हमारी मिडिया राष्ट्रवादी मिडिया है वो इन खबरों पर डिबेट कर अपनी राष्ट्र भक्ति कैसे भूल सकती है? भला मजदूरों को कोई धर्म होता है, जिनको अपने चैनल पर  डिबेट कराये, उनके हालात को दिखाये..

तो क्या इसके लिए कोरोना जैसी महामारी जिम्मेवार है? न, वो भी नहीं । भला कोरोना मजदूरों को क्यों मारे ?  मजदूरों को मारने के लिए यहाँ पहले से ही सैकड़ों वायरस मौजूद है, तभी तो हमेशा मजदूरों का ही शोषण, दोहन और मरना होता है... कभी भूख से, प्यास से, पैदल चलने से, ट्रक से कुचलकर, ट्रेन से कटकर, कानूनों से दबकर, सेठों के अत्याचारों से परेशान होकर, इनको मारने के लिए और कई वायरस है ही तो कोरोना क्यों मारे ?

एक बार हमारी सरकार ने कहाँ था कि हमारा सपना है कि हवाई चप्पल पहनने वाला हवाई जहाज पर घुमे । अब जब सरकार का ही सपना पूरा नहीं हुआ तो भला मजदूरों का सपना कैसे पूरा हो सकता है ?  हालाकि मजदूरों के हवाई चप्पल अभी भी पटरी पर पड़े हैं, सरकार चाहे तो पर उन्हें मरणोपरान्त सम्मान दे सकती है...  
जय भारत, जय भारती....

                              -जेपी हंस



02 May, 2020

कर्मचारी हूँ मजदूर बनने का इंतजार क्यों कर रहे हो।




दुखी हूँ महामारी से फिर भी बदहाल क्यों कर रहे हो।
कर्मचारी हूँ मजदूर बनने का इंतजार क्यों कर रहे हो।

सैलरी, डी.ए काटकर क्या मन नहीं भरा साहब।
कटे गले को हलाल करने का उपाय क्यों कर रहे हो।

एक से अधिक पेंशन लेकर कोई मौज कर रहा।
नेतृत्व घरानों पर इतना मेहरबान क्यों कर रहे हो।

महामारी की धुंध से छाई है मन में पहले से सन्नाटा।
दिल बहलाने के खातिर इतना कद्रदान क्यों बन रहे हो।

टूटे दिल की कश्ती बनाकर लड़ रहे योद्धाओं को।
अब फिर दिल टूटने का इंतजार क्यों कर रहे हो।

मत करों बेबस साहब की सड़क पर आ जाऊं।
जिंदगी में पहली बार ऐसा पालनहार क्यों बन रहे हो।
                                          -जेपी हंस

27 April, 2020

काहे भूल गई माई हमके (भक्ति गीत)


काहे भूल गई माई हमके नयना चुराई के ।
प्रीत लगाई हमके आपन शरण में बुलाई के ।

तोहरी द्वारे माई भक्त जब निहारे ।
आस के चेहरा उम्मीद के सहारे ।
तन-मन में आस दिखाई,
सबके जिंदगी बनाई के ।
काहे भूल गई...........

मन में हई विद्या की लालसा,
तन में उम्मीद की बयार ।
भाव हई बेजोड़ हमरी, 
बाकी हई माँ तेरा प्यार ।
प्यार पूरी न हो पाई ,
तोहरा के छोड़ के ।
काहे भूल गई..........

है यही इच्छा हमरी, 
नाम फैले सारा जग में ।
कोई कोना न हो बाकी,
 दिखे पग-पग में ।
पग-पग में नाम सुनाई,
 दिल के हिलोड़ के ।
काहे भूल गई..........
                           -जेपी हंस
                             

दर्शन दो मईया दर्शन दो (भक्ति गीत)



दर्शन दो मईया... दर्शन दो...
मईया दर्शन दो..............2
कि तेरा भक्त बुला रहा है।

इस जग का है कैसा नाता
कोई न भक्तन की सुधि लाता
भक्तों की है मैया यही पुकार
दर्शन दो मईया... दर्शन दो...........2

काली घटा देख मन घबराता
बीच भॅवर में कुछ न सुहाता
नित्य दिन करू मैं तेरी इंतजार
दर्शन दो मईया... दर्शन दो.......2

भाग-दौड़ का है यह जमाना
सब के सपनों का तुही खजाना
तेरी करू मैं सदा जयजयकार
दर्शन दो मईया... दर्शन दो............2
                               जे.पी. हंस



20 April, 2020

आदमी या आदमखोर

                                                                  

आज हमें यह सोचने को विवश होना पड़ रहा है कि हम किस युग में जी रहे हैं, एक तरफ कोरोना जैसे गंभीर महामारी से घिरा इंसान अपनी जिंदगी बचाने के लिए घर में कैद रहकर अपने रिश्ते-नातों/सगे-संबंधियों से दूरी बनाने को मोहताज हैं, वहीं दूसरी ओर भीड़ तंत्र घरों से बाहर निकलकर खुशहाल इंसानी जिंदगी को मौत के मुँह ढकेल रहा.

      परिवर्तन संसार का नियम है. जंगलों में रहने वाला बंदर आज घरों में रहने वाला इंसान बन गया है. ये कब हुआ बहुत समय गुजरा.

      लेकिन क्या आज इंसान किसी रूप में परिवर्तन ले रहा है, तो कहूँगा, हाँ, बिल्कुल यह इंसान  से हैवान, मानव से दानव और आदमी से आदमखोर में प्रवेश ले रहा है यह परिवर्तन तो इंसानी आंखों के सामने हो रहा है

      पर, इसके परिवर्तन के लिए दोषी कौन ?

      कुछ अनैतिक रूप से पाने के लिए इंसानों द्वारा फैलाया जाने वाला भ्रम, अफवाह, भड़काऊ युक्त बयान, पोस्ट, कॉमेंन्ट्स या दकियानुसी सोच

      यह सोचना पड़ेगा कि वर्तमान में जनमानस पर जो दूषित विचार फैला रहा हैं, वो कौन लोग है, जिन्हें इस दूषित विचार से ही केवल सुखद अहसास महसूस होता है ?

      साथ ही मिडिया चैनलो मे बैठकर धर्म और जाति के मुद्दे पर भड़काने वाले महानुभाव...जिन्हें किसी मुकदमे में नाम आते ही बचाने के लिए आने वाले परजीवी जीव...

      राजनितिक पार्टियों के आई.टी सेल, जो फर्जी अकाउंट बनाकर विरोधियों के सात पुश्तों को माँ-बहन की श्लोकोच्चारण और मंगल गीत गान करने से परहेज नहीं करते या वो जिन्हें इंसानी सेल से ज्यादा साइबर सेल पर ज्यादा विश्वास रहता है.

      इन सबके बीच यह भी सोचना पड़ेगा कि किस जगह पर असहमति के अधिकार बचे है या हर मामले में किसी से सहमत ही हुआ जा सकता है...

      क्या असहमत होने वाले ही सोशल मीडिया के बाद समाज में भीड़-तंत्र का हिस्सा बन रहे हैं ?

                हालात तो इतना तक बन रहा है कि कोई भी पोस्ट लिखने पर असहमति वाले अपनी सात पुश्तों के संस्कार को तिलांजली दे नये संस्कार को जन्म दे रहा...

      क्या नये संस्कार ही आदम युग का हिस्सा बन रहा...

      ये भी सोचना पड़ेगा कि आदमी को आदमखोर बनने की प्रवृत्ति कब से शुरू हुई...

          अंत में मशहूर शायर राहत इंदौरी के शब्दों में,

                   अगर खिलाफ हैं होने दो जान थोड़ी है

                    ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है

                                     लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,

                                       यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है

                                                            -जेपी हंस

Note: फोटो गूगल से संभार.