हिन्दी को कामकाज की भाषा बनाने की कितनी ही दलीलें क्यों न दी जाएं
पर अच्छी नौकरियों में प्राथमिकता अंग्रेजी बोलने और जानने वालों को दी जाती है ।
ये मुट्ठीभर अंग्रेजी पढ़ने और समझने वाले ही पद पाकर देश की दशा और दिशा तय करते हैं
और हिन्दी के जानकार मन मसोस कर रह जाते हैं । आजादी के बाद का हिन्दी को
राष्ट्रभाषा बनाने का सपना आज भी अधूरा है । सरकारी संस्थान हिन्दी को तिरस्कार ही
देते आए है वहीं राजभाषा अधिनियम के चलते भले ही कुछ काम हिन्दी में करना पड़े, पर
अधिकता अंग्रेजी को ही रहती है यानि देश के अंदर आज भी हिन्दी अपनी पहचान और हक
तलाश रही है । इसकी वजह देश की भाषाई अनेकता जैसे कारण भी है यथा मिजोरम,
नागालैंड. तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक, असम, गोवा और उतर-पूर्वी राज्य खुद को हिन्दी
से नहीं जोड़ पाए है । खेद की विषय है कि राष्ट्रभाषा के नाम पर आज भी देश एकमत
नहीं है मगर समय की मांग है कि शासन के स्तर पर इस दिश में सहमति बनाते हुए सार्थक
और दृढ़तापूर्वक किया जाए ।
13 September, 2015
हिन्दी का सफरनामा
हिन्दी की संस्कृत
के अति क्लिष्ट स्वरूप और अरबी, फारसी जैसी विदेशी और पाली, प्राकृत जैसी देसी भाषाओं के मिश्रण ने व्यापक आधार प्रदान
किया है । जिस भाषा को इतनी सारी बोलियां और भाषाएं सीचें, उसके गठन की मजबूती का
अंदाजा लगाया जा सकता है । देखा जाए तो पुरातन हिन्दी का अपभ्रंश के रूप में जन्म
400 ई. से 550 ईं. में हुआ जब वल्लभी के शासन धारसेन ने अपने अभिलेश में अपभ्रंश
साहित्य का वर्णन किया । प्राप्त प्रमाणों में 933 ईं. की श्रावकवर नामक पुस्तक
अपभ्रंश हिन्दी का पहला ग्रंथ है परन्तु अमीर खुसरो हिन्दी के वास्तविक जन्मदाता
थे, जिन्होंने 1283 में खड़ी बोली हिन्दी
को इसका नाम हिन्दवी दिया । बस, तब से ही यह हिन्दवी, हिन्दी बनती गई, बढ़ती चढ़ती
गई है और पूरी दुनिया में निरंतर पल्लवित-पुष्पित हो रही है ।
17 August, 2015
ना तुने हाल जाने, ना मैंने हाल जाने ।
बन कर अनजान बेवफा, क्यों भूल गए दिवाने ।
जिंदगी में क्या बचा है, क्या रह गए तराने
।
समय बचा सोचने को शहर बीच मयखाने ।
सुबह-सुबह उठने पर, सोचते है ऑफिस जाने ।
समय का बड़ा पाबंदी है, न चलेगा कोई बहाने
।
बॉस से डॉट पड़ेगी, क्यों देर कर दी आने ।
समय बचा सोचने को शहर बीच मयखाने ।
शाम को छूटने पर, सोचते है जल्द घर जाने ।
यहाँ भी पाबंदी है, न चलेगा कोई बहाने ।
मैडम से डॉट पड़ेगी, क्यों देर कर दी आने ।
समय बचा सोचने को शहर बीच मयखाने ।
रात को कहाँ खैर है जब सो गए सिढ़ाने ।
सुबह का क्या इंतजाम है, इसे अभी है बताने
।
जिंदगी बन गई है फुटबॉल, क्यों कोई हाल
जाने ।
समय बचा सोचने को शहर बीच मयखाने ।
ना तुने
हाल जाने, ना मैंने हाल जाने ।
बन कर अनजान बेवफा, क्यों भूल गए दिवाने ।
जिंदगी में क्या बचा है, क्या रह गए तराने
।
समय बचा सोचने को शहर बीच मयखाने ।
- जेपी हंस
06 August, 2015
कैसे आजाद है हम ?
कैसे कहूँ कि हिन्द के वासी है आजाद ।
यूँ कहूँ कि हम पहले से ज्यादा है बर्बाद ।
फर्क तो सिर्फ इतना है ।
अब मत पूछना कितना है ।
पहले लूटते थे गोरे, आज काले लूट रहे हैं ।
महारानी राज करती थी पहले, आज नेता जी राज कर रहे हैं ।
आते हैं वे गरीबों के दर पर पंचवर्षिय योजना की भाँति ।
भेदभाव फैलाकर कहते, हम नहीं पूछते किसी का धर्म-जाति ।
गरीब जनता को चाहते है वे रखना, अनपढ़-गवार ।
ताकि यह सुनिश्चित हो, कभी न हो उनकी राजनीति हार ।
जीतने के बाद तो वे दिखते नहीं, गरीबों के किसी गाँव में ।
तड़पाते है किसी काम पर, छाले पर जाते
गरीबों के पाव में ।
विकास का कार्य सिर्फ दिखते है प्रोग्रेस
रिपोर्ट में ।
जनता का है कोई नहीं, भगवान ही है केवल सुपोर्ट में ।
गरीबों के विकास की छाया दिखती है
उसकी शक्ल में ।
आजादी के नाम पर होती बर्बादी, न घुसी
उनकी अक्ल में ।
जिस दिन अक्ल खुल जाएगी, उस दिन होगी सच्ची आजादी ।
नेता जी डर जाऐगे सब, रूक जाएगी सबकी
बर्बादी ।
31 July, 2015
डॉ कलाम को श्रद्धांजलि
देता हूँ श्रद्धांजलि
करता हूँ कोटी-कोटी नमन ।
कैसे भूल पायेगा जो
खिलाये आपने हिन्द में चमन ।
जगाया है जो आपने जन-जन
में विश्वास ।
यही बात आपको बनाता है
सबके खास ।
सर्व-धर्म-स्वभाव का जब
आपने रखा ख्याल ।
बुद्धि, विवेक और कर्म से हिन्द को किया निहाल ।
नयन चक्षु प्लावित हुआ
जब आपने जग छोड़ा ।
अन्तिम मिलन के खातिर
सबने जाति-धर्म तोड़ा ।
जो दिया आपने नवयुवको
को सफलता का मंत्र ।
बदल जाता है इससे जीवन
का सारा तंत्र ।
मानते है सब आपको जीवन
का प्रेरणास्त्रोत ।
कर्मों और विचारों से
आपके होते है सब ओत पोत ।
व्यक्तित्व, कृतित्व और सादगी ये है आपकी पहचान ।
हिन्द नहीं भूल पायेगा
जब तक रहेगा धरा-आसमान ।
22 May, 2015
काहे भूल गई माई हमके (भक्ति गीत)
काहे भूल गई माई हमके नयना चुराई के ।
प्रीत लगाई हमके आपन शरण में बुलाई के ।
तोहरी द्वारे माई भक्त जब निहारे ।
आस के चेहरा उम्मीद के सहारे ।
तन-मन में आस दिखाई, जिंदगी बनाई के ।
काहे भूल गई...........
मन में हई विद्या की लालसा, तन में उम्मीद की बयार ।
भाव है बेजोड़ हमरी, बाकी है तेरा प्यार ।
प्यार पूरी न हो पाई ,तोहरा के छोड़ के ।
काहे भूल गई..........
है यही इच्छा हमरी, नाम फैले सारा जग में ।
कोई कोना न हो बाकी, दिखे पग-पग में ।
पग-पग में नाम सुनाई, दिल के हिलोड़ के ।
काहे भूल गई..........03 February, 2015
पार्टी फंड
जीतू इन दिनों काफी परेशान
था, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? जीतू को काफी खुन-पसीना बहाने के बाद एक छोटी-सी
नौकरी मिली थी । नौकरी मिलने से वह बहुत खुश था, लेकिन ऑफिस के कर्मचारियों के
रवैये से इसे दिन-पर-दिन नफरत-सी होने लगी । जीतू जब-से ऑफिस ज्वाईन किया तब से
पार्टी शब्द उसके जेहन को खोखला करता जा रहा था । जीतू गरीब परिवार से था, उसने
कभी पार्टी के बारे में ज्यादा जाना-समझा नहीं था । बड़ी मुश्किल से मेहनत करके वह
नौकरी प्राप्त किया था । वह समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था, फिजूलखर्ची में
विश्वास नहीं करता था, लेकिन ऑफिस में ज्वाईन करने के बाद से उनसे पार्टी मांगने
की जैसे होड़ लग गई, कभी इस नाम पर तो कभी उस नाम पर । ऑफिस में स्टॉफ कम होने पर
सभी कर्मचारी मिलकर आपस में कुछ पैसे मिलाकर हफ्ते दो हफ्ते में एक बार पार्टी का
आयोजन कर ही लिया करते थे । यह सब चीजें जीतू को नापसंद था । उसने सोचा अभी अभी हम
नये है, खुलकर बोलने से सभी नाराज हो जायेंगे, लेकिन नहीं बोलने से उसे जब-तब
पार्टी के लिए पैसे देने ही पड़ते । जीतू ने मन ही मन एक उपाय सोचा, क्यों न सभी
कर्मचारियों से यह कहा जाए कि एक पार्टी फंड बनाई जाए और उससे गरीब-असहाय लोगों की
मदद की जाए । अगले दिन जीतू ने सभी
कर्मचारियों की एक मिटिंग बुलाई, कहाँ- “हमलोग जो पार्टी कर
मौज मस्ती करते है उस पैसे से एक पार्टी फंड बनाई जाए” । मेरे
मुहल्ले में कुछ गरीब और असहाय लोग रहते है, क्यों न हम सभी मिलकर कुछ पैसे हर
महीने जमा करे और उस पैसों से गरीब और असहाय लोगों की मदद की जाए ? सभी इस सुझाव से सहमत हो गए और अगले रविवार को सभी कर्मचारी उस मुहल्ले
में दाखिल हुए जहाँ गरीब-असहाय लोगों की बस्ती थी ।
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