18 November, 2014

क्या खत्म हो जाएगी लेखनी की दुनिया- भाग-2


कहा जाता है कि एक अच्छा ऐक्टर अपनी ऐक्टिंग से कुछ भी छुपा सकता है, पर उसकी हैंडराइटिंग उसके सारे भेद खोल सकती है । हैंडराइटिंग से व्यक्तित्व और भविष्य बांचने की कला कई सौ साल पुरानी है । अब जब हाथ से लिखना कम होता जा रहा है, तो ऐसे में हस्तलिपि में अटपटापन आएगा ही । लेखन का ताल्लुक आत्मा से है, व्यक्तित्व से है । अब चिट्ठियों को ही ले लीजिए । हाथ से लिखी सामग्री को पढ़ने पर लगता है कि शब्द प्रेम की चाशनी में घुलाकर कागज पर सहेज दिए गए हैं । पर अफसोस कि अब चिठ्ठियों लिखने की परंपरा खत्म हो रही है । अपराध और फॉरेंसिक साइंस के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैंडराइटिंग भी है । जिस तरह शातिर का सुराग कभी डीएनए टेस्ट, तो कभी फिंगर प्रिंट से लगाया जाता है, वैसे ही जरूरत पड़ने पर फॉरेसिंक साइंस एक्सपर्ट मौका-ए-वारदात पर मिली हैंडराइटिंग से अपराधी का पता लगाते हैं या किसी पेचीदा केस को सॉल्व करते हैं । पर हाथ की लिखावट तो अब गुम हो रही है । जो लोग लिख भी रहे हैं, तो उनकी हैंडराइटिंग में एकरूपता नहीं रहती ।
याद कीजिए उस दिन को जब मास्टर जी हर रोज सुलेख लिखवाते थे । वह भी नरकट की कलम से, जी हॉ, कोई 20-25 साल पहले क्लासरूम में बॉलपेन रखना बस्ते में बम रखने के समान था । दरअसल नरकट की कलम से लिखना हैंडराइटिंग अच्छी करने का सबसे कारगर तरीका होता है । क्लास में जिसकी राइटिंग सबसे अच्छी होती थी, उसके भाव चढ़े रहते थे । खराब हैंडराइटिंग वाला न सिर्फ हीनता बोध से ग्रस्त रहती थी, बल्कि इम्तिहान में नंबर भी कम आते थे । हैंडराइटिंग में फिसड्डी आशिक अपने प्रेमपत्र तक दूसरों से लिखवाते थे । अब प्रेमी और प्रेमिका भी अब हैंडराईटिंग वाले प्रेमपत्र नहीं के बराबर भेजते है । क्योंकि उनके जगह एस.एम.एस ने जगह बना लिया है । अब व्हाट्सऐप, टेलिग्राम, हाईक जैसे मैसेजिंग एप ने जगह अपना लिया है । इन एपों के माध्यम से पल-पल का हाल बिना प्रेमपत्र लिखे ही  जान जाता है । बहरहाल, दौर बदला, तो कलम भी बदल गई । नरकट की जगह पहले वॉलपेन ने ली और अब कंप्यूटर और मोबाइल वॉलपेन को भी छीनने पर आमदा है ।

14 November, 2014

धारा पर धारा


मंच पर बैठे-बैठे
बहुत देर हो गई थी,
हमारी एक टांग भी
सो गई थी ।
सो हम उठे ।    
एक कवि मित्र पूछ बैठे-
                   -कहाँ ?
हमने अपनी कन्नी उंगली उठाई-
                   -वहाँ
और मंच से उतर आए ।
उतर आए तो सोचा
हो भी आएं,
चलो इस तरफ से भी
राहत पा जाए
फिर मंच के पिछवाड़े घूमने लगे
कोई उचित, सही-सी स्थान
ढूंढने लगे ।
चलते-चलते
एक गली के मोड़ तक आ गए
सही जगह पा गए
और जब हम गुनगुनाते हुए.....करने लगे
किसी ने कमर में डंडा गड़ाया
मुड़कर देखा तो
सिपाही नजर आया
हम हैरान,
उसके चेहरे पर क्रूर मुस्कान
डंडा हटा के गुर्राया-
          चलो एक तो पकड़ में आया ।
हमने कहा-
          क्या मतलब?
वो बोला-
          मतलब के बच्चे
          पब्लिक प्लेस पर
          ............करना मना है
हमने कहा-
          ऐसा कोई कानून नहीं बना है ।
उसने कहा-
          जबान लड़ाता है
          अबे हमीं को कानून पढ़ाता है
          चल थाने ।
और हम लगे हकलाने-
सि........सि........सि.......सिपाही जी
हम कवि है,
कविताए सुनाते है
आपने गलत आदमी को छेड़ा है
वो बोला-
          पिछले दो भी
अपने आप को कवि बता रहे थे
इसलिए छोड़ा है
तुझे नहीं छोड़ूंगा
हो जा मुस्तैद
दिल्ली पुलिस ऐक्ट सैक्शन पिचानवै
सौ रूपया जुर्माना
आठ दिन की कैद
हल्ला मचाएगा
बानवै लग जाएगी,
तू तड़ाक बोलेगा
तिरानवै लग जाएगी
हमने कहा-
सिपाही जी
ये बानवै, तिरानवै, पिचानवै
क्या बलाएं हैं ?
वो मूंछो पर हाथ घुमाते हुए बोला
कानून की धाराए हैं ।
हमने सोचा-
          वाह वाह रे कानून हमारा
          अरे, धारा बहाने पर भी धारा
-         अशोक चक्रधर (हास्य कवि)



क्या खत्म हो जाएगी लेखनी की दुनिया- भाग-1

             
जी, हाँ दोस्तों हम उस चीज की बात कर रहे हैं, जिसका मानव जीवन में अति महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिसकी विद्यार्थी पूजा भी करते हैं, लेकिन उसे आज तकनीकी युग में बहुत की कम इस्तेमाल किया जा रहा है । यों तो कहे कि नही के बराबर इस्तेमाल होता है, वह है लेखनी - मतलब कलम ।
            अगर आज के जमाने में महात्मा गाँधी होते तो यह शायद इस बात का अफसोस नहीं होता कि उनकी हैंडराईटिंग बेहद खराब है । मोती जैसे अक्षर गढ़ने वाले रवींद्रनाथ टैगोर और लियोनार्दो द विंची भी इस एस.एम.एस और इमेल और चैटिंग के जमाने में जी रहे होते तो इसके लिखावट की कोई कद्र नहीं होती । जी हाँ, यह तकनीकी का वह दौर है, जिसमें यह मायने नहीं रखती कि आपकी हैंडराइटिंग कैसी है, क्योंकि हाथ से लिखने का चलन की बात दिन-प्रति-दिन खत्म होती जा रही है । कार्यालयों में कागज और कलम का उपयोग लगातार कम होता जा रहा है । मुहावरों की भाषा में कहे कि कंप्यूटर, मोबाईल और टबलेट ने हमसे हमारी कलम छीन ली है और जब कलम ही नहीं बचेगी तो कलम के जादू का क्या होगा ? कलम का क्या काम है? लिखना, पर यह तो अब सजने लगी है जेब में, शो-केस में । क्योंकि अब लिखने के लिए कलम से ज्यादा इस्तेमाल कंप्यूटर के की-बोर्ड का होने लगा है तो क्या खतरे में है हस्तलिपि का भविष्य ? जब कलम ही नहीं चलेगी तो कैसे चलेगा कलम का जादू । अब सवाल यह उठता है कि हस्तलिपि का भविष्य क्या होगा? भाषाशास्त्री इस बात के चिंतित तो है कि कंप्यूटर के दखल से कलम की कमान की-बोर्ड को सौप दी है, जिससे हस्तलिपि का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है पर वह यह बात भी बताते हैं कि आने वाले दिनों में एक बार फिर लोगों को कलम और हैंडराइटिंग की याद आएगी । भाषाविद् और केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के पूर्व निदेशक कहते है, यह सच है कि अब लोग लिखते नहीं है, उंगलियों से टाइप करते हैं , पर वह दौर भी लौटेगा, जब कलम सिंर्फ जेब से ताकेगी नहीं, बल्कि बीते दिनों की तरह फिर से आग उगलेगी ।




10 November, 2014

वक्त की पुकार

खग-मृग छोड़ मनुज तन मिला
फिर भी लाखों है शिकवे गिला
गिले-शिकवे भूलाने को
तन-मन में सपने बुनो
वक्त की पुकार सुनो, वक्त की पुकार सुनो
            सपने साकार करने में तुम्हे
            लख-लख कष्ट सहने पड़े
            कर्मवीर सेना की भाँति
            अग्नि की मशाल बनो
            वक्त की पुकार सुनो, वक्त की पुकार सुनो
कर्म-पथ दुर्गम है
वक्त भी न तेरे संगम है
समय समहित करने को
कंटिल पथ तुम सुगम मानो
वक्त की पुकार सुनो, वक्त की पुकार सुनो
            कंटिल पथ पर न लौटे अनन्तर
            सब होगा एक दिन छू-मंतर
            छू-मंतर करने में चाहे
            आसमान टुटे, पहाड़ टुटे
            अन्तर्मन की पहचान करो
            वक्त की पुकार सुनो, वक्त की पुकार सुनो
                                                                जे.पी. हंस

30 October, 2014

राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी- सरदार पटेल


सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 ई. को नडियाद, गुजरात के एक कृषक जमींदार परिवार में हुआ था । वे चार भाई थे । सोमभाई, नरसीभाई और विट्टल भाई पटेल इनसे बड़े थे । उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से हुई । वे लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की और भारत आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे । महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया । स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में उनका सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा संघर्ष हुआ । गुजरात का खेड़ा स्थान उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था । पटेल ने वहाँ के वासियों के लिए कर में छुट की मांग की , जिसका अंग्रेजी शासन नें इनकार कर दिया था । सरदार पटेल, गाँधीजी और अन्य लोगों ने किसानों के साथ कर न देने के लिए प्रेरित किया अंततः अंग्रेजी शासन मान गई । यह इनकी पहली सफलता थी । वे स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की दौड़ में थे, लेकिन गाँधी जी के इच्छा के चलते वे उपप्रधानमंत्री बने और गृहमंत्री का भी कार्य संभाला ।

            गृहमंत्री रहते हुए भारत के 562 देशी रियासतों को भारत में शामिल में शामिल कराया । उन्हें इस महान कार्य में योगदान देने के कारण भारत का लौहपुरुष कहा जाने लगा । गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं बनाया । वे भारत के बिस्मार्क की तरह थे । सरदार पटेल के दो बच्चे थे, मणिबेन पटेल और दयाभाई पटेल । 31 अक्टूबर, 2013 को सरदार बल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले के सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्मारक का शिलान्यास किया, जिसका नाम एकता की मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा । यह मूर्ति स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से दुगुनी ऊँची बनेगी । यह संभवतः दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति होगी और 5 वर्ष में बनकर तैयार होगी । 31 अक्टूबर को भारत के निर्वतमान प्रधानमंत्री द्वारा एकता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई है । इनकी मृत्यु 15 दिसम्बर, 1950 को हुआ था ।

25 October, 2014

जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।



जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।       
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
वक्त का ऐसा नजारा था कि वे फिरते थे एक दिन खुले पाँव ।
उसी शख्स के चलते हमने लगा डाला था अपना सारा दाँव ।
दाँव उलटी पड़ी हम पर समझ न पाए हम उनके धंधे ।
जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
                                दुनिया ऐसी कहती है कि यहाँ हर शख्स है मददगार ।
                                उन लोगों से हम पूछतें हैं क्यों हमें दिया  दुत्कार ।
                                दुत्कारना ही था तो हमें अब तक क्यों बनाया अंधे ।
                                जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।
                                उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
वक्त फिर ऐसी आएगी
मिलेगी ना एक भी फुटी-कौड़ी ।
वो सब भुगतना पड़गा तुम्हें
जितना किया है हमने भाग-दौड़ी ।
भाग-दौड़ी से फिर पाई है फुरसत
सुन लो ये दुनिया के बंदे ।
जिन-जिन लोगों को हमने दिये हैं कंधे ।    
उन्हीं लोगों ने हमें बना डाला भिखमंगे ।
                           - जेपी हंस

19 October, 2014

दोषी कौन ?



जग्गू ने शाम के समय अपनी नौकरी पर से काम खत्म कर जैसे ही अपने किराये वाले कमरें में बल्ब का स्विच ऑन करने से पहले पैर रखा । वह इस सपने में खो गया कि मैं कहीं रात को सोये-सोये सपने तो नहीं देख रहा हूँ । जग्गू का पैर पानी से डूबा था । उसने मन ही मन सोचा कि अब तक उतराखण्ड में बाढ़, कश्मीर में बाढ़, बिहार, उड़िसा में बाढ़ तो सुना है, लेकिन मेरे दो मंजिले कमरे में बाढ़ । यह बात तो उससे हजम नहीं हो रही थी । जैसे-तैसे उसने बल्ब जलाया, थैला रखा । अब उसने देखा कि पूरा कमरा जलमग्न है । कमरे में बिखरे सामान नाव की भाँति तैर रहा है । कुछ देर के बाद पता चला कि पीने के पानी का नल खुला रहा गया था । नल के बगल में ही जग्गू का कमरा था ।  दरअसल पीने की पानी तो सुबह- शाम आती थी । आज दिन में कैसे आया ? जग्गू ने कमरा से पानी के निकास का स्थान को बंद कर दिया था, क्योंकि चूहा उसे बहुत तंग करता था । चूहा रोज इसी रास्ते से आता था । कमरे में न रहने पर तरह-तरह के सामान को बेमतलब से चुहा कुतर देता था । पानी के निकास बंद होने के कारण आज कमरे में बाढ़ आ गई थी । अगर पानी के निकास बंद नहीं होता तो पानी पूरा निकल जाता और बाढ़ नहीं आती । जग्गू ने अपने नल को खुले होने का दोष नहीं माना । उसने चुहे के ऊपर सारा दोष मढ़ दिया । अगर चुहा कमरे में तंग नहीं करता तो वह पानी का निकास नहीं बंद करता, यदि पानी का निकास बंद नहीं होता तो कमरे में बाढ़ आने की नौबत नहीं आती । साथ ही इसका दोष अपने मकान मालिक के ऊपर भी मढ़ दिया । अगर मकान मालिक दिन में पानी नहीं  दिया होता तो कमरे में बाढ़ नहीं आती ।